सर्वधर्म समभाव का जयघोष है समान नागरिक संहिता

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश में समान नागरिक संहिता को लेकर बहस जोर पकडने लगी है। एक देश-एक कानून को लागू करने के लिए केन्द्र ने मन बनाया तो विपक्ष ने तुष्टीकरण की आड में वोट बैंक बढाने के लिए दाव-पेंच आजमाने शुरू कर दिये। अल्पसंख्यकों के हितों की दुहाई देने वाले वर्तमान में देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप अप्रासांगिक हो चुकी शोषणकारी परम्पराओं को निरंतर बनाये रखना चाहते हैं। महिलाओं के दमन, कट्टरता को बढावा तथा मजहब को थोपने वाले कृत्यों को अभिव्यक्ति की आजादी के रूप में परिभाषित करने वाले समान नागरिक संहिता का चीख-चीखकर विरोध कर रहे हैं। कथित अल्पसंख्यकों को भडकाने के लिए मनगढन्त किस्से-कहानियां गढी जा रहीं हैं। भविष्य के डरावने सपने दिखाये जा रहे हैं। जबकि समान नागरिक संहिता का वास्तविक उद्देश्य सभी धर्म, रीति-रिवाजों और परम्पराओं पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को सभी के लिए एक समान करना है यानी कि विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत पाने जैसे मुद्दों पर एक कानून ही लागू होगा। सामाजिक व्यवस्था में समरूपता आयेगी। इतिहास गवाह है कि सन् 1835 में गोरों के शासनकाल में अपराधों, साक्ष्यों सहित अनेक विषयों पर समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही थी। वहीं डा. भीमराव अम्बेडकर ने भी सन् 1948 में संविधान सभा की बैठक में इसे भविष्य के लिए महात्वपूर्ण बताया था। तत्कालीन परिस्थितियों में वे अनेक राजनैतिक व्यक्तित्वों के साथ समान नागरिक संहिता के प्रस्तावक भी बने थे। गोवा में यह कानून पहले से ही लागू है। उत्तराखण्ड, असम तथा गुजरात सरकारों ने लागू करने की दिशा में पहल शुरू कर दी है। ईमानदारा बात तो यह है कि कट्टरपंथियों को संतुष्टि करने के लिए ही राजनैतिक दल तथा छदम्मवेशधारी संस्थायें समान नागरिक संहिता को इस्लाम में दखल मानतीं है। उदाहरण के लिए यदि तीन तलाक को ही ले लें जो इस्लाम में अवश्यक अंग निरूपित किया जाता रहा है तो फिर इंडोनेशिया, कतर, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देशों में क्यों नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्दारा समान नागरिक कानून की आवश्यकता पर बल देते ही देश में विपक्ष ने तरकश से तीर निकालने शुरू कर दिये। टीवी चैनल्स से लेकर सोशल मीडिया तक में नित नई जानकारियां देने के नाम पर प्रमाणित-अप्रमाणित सामग्री परोसी जाने लगीं। बहस के दौर शुरू हो गये। धर्म के ठेकेदार बनकर चर्चित होने की लालसा से लालायित लोगों की भीड दिखने लगी। गर्मागर्म संवादों से समाज में आक्रोश वातावरण निर्मित होने लगा। मनमानी दलीलें, संभावनायें और परिस्थितियों को रेखांकित किया जाने लगा। लोगों ने इस ओर से आंखें फेर ली कि अफगानस्तान में कट्टरता का परचम फहरते ही आतंक की आग में पूरा संसार झुलस रहा है। दहशत की दम पर सल्लनत हथियाने के मंसूबे कटीला झाड बनकर इंसानियत को तार-तार करने लगे हैं। दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था के समानान्तर इस्लामिक पध्दतियां तेजी से पैर पसाने लगीं हैं। निजिता से जुडी आस्था को दूसरों पर थोपने की आदत अब साम्राज्य विस्तार की आकांक्षा बनकर ठहाके लगा रही है। मानवता के विरुध्द चल रहे इस सुनियोजित षडयंत्र ने विस्फोटक मुहाने पर दस्तक देना शुरू कर दिया है। जनबल, धनबल और आतंकबल के समुच्चय ने जनसंख्या विस्तार के चरम पर पहुंचते ही अपना दमन चक्र तेज कर दिया है। रूढवादिता की घातक परिभाषाओं की जहरीली व्याख्यायें आत्मघाती समाज का विस्तार करने में जुटी हैं। कहीं ७२ हूरों का लालच दिखाया जाता है तो कहीं जन्नत के सपने दिखाये जाते हैं। कहीं इस्लाम खतरे में है, का नारा बुलंद किया जाता है तो कहीं खुदा का वास्ता देकर काफिरों पर टूट पडने के लिए उकसाया जाता है। पूरी दुनिया पर राज करने का मंसूबा पालने वाले वाले अब दुनिया को ही खत्म करने पर तुले हैं। ऐसे में सत्ता से बाहर रहने वाले लोगों की जमातें उनके साथ कंधे से कंधा लगाकर खडी हो रहीं हैं। सिध्दान्तों, आदर्शों और मर्यादाओं को तार-तार करते हुए राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक संस्थायें अपना और अपनों की स्वार्थपरिता तक ही सीमित होकर रह गईं हैं। ऐसे में विश्व को शान्ति, भाईचारे और सौहार्द का पाठ पढाने वाले भारत ने एक नये अध्याय का शुभारम्भ किया है। विपरीत विचारों वाले रूस-अमेरिका के मध्य समान रूप से सम्मानित होना सहज नहीं है। मगर देश ने वह सब कर दिखाया जो असम्भव नहीं तो कठिनतम अवश्य था। दुनिया ने आज भारत को विश्वगुरु के रूप में पुन: स्वीकारोक्ति दी है। ऐसे में तुच्छ राजनैतिक मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस के एक खानदानी नेता ने विदेशों में अपने ही देश का मान घटाने, आलोचना करने तथा लोकतंत्र की सुव्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले वक्तव्यों की झडी लगा दी जिसे विदेशी सरकारों ने खुद ही आइना दिखा दिया था। इस तरह की बचकानी हरकतों पर अनेक बार देश-दुनिया खिलखिला चुकी है। क्षेत्रफल के सापेक्ष जनसंख्या विस्तार का मापदण्ड आज भारत को शीर्ष पर स्थापित कर रहा है। देश के आन्तरिक स्वरूप को सुदृढ करने की सकारात्मक दिशा में बढने वाला एक और कदम निश्चय ही समान नागरिक संहिता है जिसके लिए विधि आयोग ने आगामी 15 जुलाई तक नागरिकों से राय मांगी है ताकि संविधानात्मक व्यवस्था, सामाजिक आवश्यकता और आम आवाम के हितों के आधार पर निर्णय लिया जा सके। संविधान के आर्टिकल 44 के भाग 4 में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्वों में से एक है जिसके तहत राज्य अपने नागरिकों के लिए समस्त भारत में एक समान नागरिक संहिता प्रदान करने का प्रयास करेगा। ऐसे में समान नागरिक संहिता को सर्वधर्म समभाव का जयघोष कहना अतिशयोक्ति न होगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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