रोकना होगा महिलाओं का हथियार के रूप में इस्तेमाल

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश-दुनिया में महिलाओं को हथियार बनाकर स्वार्थ का लक्ष्य साधने की हमेशा से ही कोशिशें की जातीं रहीं हैं। विषकन्यों का प्रयोग कभी दुश्मनों को समाप्त करने के लिए हुआ तो कभी भेदिया बनाकर शत्रुदल का नाश किया जाता। अतीत की गवाही, वर्तमान का घटनाक्रम और भयावह भविष्य के संकेतों को अदृष्टिगत करना किसी भी दशा में सुखद नहीं कहा जा सकता। दुश्मन देश भारत की धरती पर महिलाओं के लावण्य का खुलकर उपयोग कर रहे हैं। भारतवर्ष की संवेदनशील सामाजिक व्यवस्था के सनातनी मूल्यों पर भावनाओं के हथियार चलाने का क्रम चल निकला है। पाकिस्तान की धरती से गोपनीय दस्तावेजों के लिए सुन्दर महिलाओं का खुलकर उपयोग किया जा रहा है। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर अनुशासनविहीन बेलगाम गतिविधियां निविघ्न रूप से जारी हैं। भारतीय महिला अधिकारी बनकर सीमापार से सम्पर्क साधने वाली महिलायें निरंतर सरकारी महकमों के जिम्मेवार अधिकारियों को शिकार बना रहीं हैं। सीमा हैदर अपने चार बच्चों के साथ देश में अवैध रूप से प्रवेश करने के बाद सेलीब्रिटी बनकर उभरती जा रही है। हिंदी का शुध्द उच्चारण, बच्चों की मासूमियत और पवित्र प्यार की दुहाई पर सीमा ने योजनाबध्द ढंग से खुलेआम देश में प्रवेश किया और हमारे लचीले कानून की आड में दुश्मन के किसी संभावित लक्ष्य की ओर बढने लगी। मणिपुर में चीन की शह पर हिंसा का नया रूप देखने को मिला रहा है। देश को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान के आतंकी कैम्पों के बाद अब चीन की चालें भी उजागर होने लगीं हैं। चीन-पाक की जुगलबंदी हमेशा से ही आतंकियों को बचाने के लिए अपनी ताकत झौंकती रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ में खूनी खेल के चैम्पियनों को संरक्षण देने के अनेक उदाहरण मौजूद हैं। वीटो के साथ चीन हमेशा ही पाकिस्तान में पनपने वाले आतंकवाद को संरक्षण देता रहा है। एलओसी यानी लाइन आफ कन्ट्रोल पर खूनी इबारत लिखने वाले हरे रंग के साथ-साथ अब एलएसी यानी लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल पर लाल रंग ने पर्दे के पीछे से दस्तक देना शुरू कर दी है। भारतीय सेना के हाथों निकट अतीत में पराजित होने वाले ड्रेगर के सिपाही अब सीमावर्ती क्षेत्रों को अशान्त करने में जुट गये हैं। इस मध्य अनेक चीनी नागरिकों को अवैध ढंग से भारत में प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार भी किया जा चुका है। ऐसे ही अनेक घुसपैठियों के मणिपुर में उपस्थित होने की गुप्त सूचनायें मिल रहीं है, जो वहां पर महिलाओं को शिकार बनाकर देश को अशान्त करने की कोशिशें कर रहे हैं। आतंक के सहारे दरिन्दगी करने वाले तो सीमापार से लिखी स्क्रिप्ट पर मात्र अभिनय कर रहे हैं। कठपुतली की डोर तो सीमापर बैठे आकाओं ने थाम रखी है। किसी भी छोटी घटना को मुद्दा बनाकर भीड की आड में मनमानियों का नंगा नाच करने वालों के लिए भारत का लचीले संविधान और विपक्ष के व्दारा दिये जाने वाला खुला संरक्षण आज अभयदान बनकर काम कर रहा है। देश की सरकारों पर प्रश्नचिन्ह अंकित करने वाले विरोधी दल के दिग्गजों के लिए घटना की भयावह तस्वीर दिखाना और सरकारों को कोसना ही राष्ट्रधर्म है। बाद में इसी भीड के अनेक खद्दरधारी काला कोट पहनकर न्यायालय में आतंकियों को मासूम साबित करने के लिए जी तोड मेहनत करते हैं। आगामी चुनावों में सत्ता हथियाने की स्वार्थपरिता मेें आकण्ठ डूबे विपक्ष ने देश के प्रत्येक कठिन काल में राजनैतिक लाभ का चश्मा चढाकर ही भागीदारी दर्ज की है। बंगाल की चुनावी हिंसा पर खामोश रहने वाले लोग आज मणिपुर पर गला फाडकर चिल्ला रहे हैं। राजस्थान में सच का आइना दिखाने वाले अपने मंत्री को ही वहां के मुख्यमंत्री ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। विदेशों में देश के लोकतंत्र को कोसने वाले देश की सरकारी नीतियों पर हमेशा ही प्रश्नचिन्ह अंकित करते रहे हैं। महिलाओं का सम्मान करने का ढोंग करने वाले अनेक दलों के कद्दावर नेताओं पर महिलाओं के साथ अभद्रता करने, शोषण करने तथा अपमानित करने के आरोप लगते रहे हैं परन्तु शायद ही कभी इन आरोपों पर उनके दलों ने कोई आन्तरिक जांच समिति बनाई हो, समिति की आख्या पर निष्काषित किया हो। वर्तमान में भीड का सहारा, महिलाओं पर अत्याचार और वीभत्स घटनाक्रम का प्रचार करके संवैधानिक व्यवस्था को तार-तार करने का फैशन चल निकला है। खानदानी जमातें राजनीति के गलियारे से सत्ता पर काविज होने का बहाना ढूढ रही हैं। उनके लिए देश का अमन, चैन और तरक्की मायने नहीं रखती। एकता, अखण्डता और सम्पन्नता अर्थविहीन हो जाती है। विश्वमंच पर उभरते तिरंगे की गगनचुम्बी रौनक भी अदृष्टिगत ही रहती है। जब हमारा ज्ञान विदेशों से नालेज बनकर वापिस लौटता है तब वे उस आयातित कारक के लिए पलक पांवडे बिछा देते हैं। उनके लिए ज्ञान तो केवल जाहिलों, अंधविश्वासियों तथा रूढवादियों की तुच्छ मानसिकता है। महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाने वाले अनेक लोग वास्तव में महिलाओं को ही हथियार बनाकर स्वयं के स्वार्थपरिता वाले लक्ष्य का भेदन करने में ही जुटे हैं। तटस्थ रहकर समीक्षा करें तो दिखता है कि अनेक संवेदनशील विवादास्पद मुद्दों को शान्ति के साथ निपटा लिया गया है। दूसरी ओर आज भी पत्थरबाज युवाओं के पीछे महिलाओं को खडाकर के संरक्षण देने वाले षडयंत्रकारियों की जमातें अतिक्रमण की जमीन पर बने आलीशान आशियानों में पनाह पा रहीं है। महिलाओं को बांदी, दासी या फिर उपयोग की वस्तु मानने वाले उन्हीं की आड में कभी शाहीन बाग पर तम्बू लगाते हैं तो कभी दिल्ली की तंग गलियों में आक्रमण की पटकथा लिखते हैं। ऐसे में पांच साल के लिए आने वाली सरकारों को कोसने वाले कभी भी 60 साल तक कुर्सी से चिपके रहने वाली कार्यपालिका के नुमाइंदों को निशाने पर नहीं लेते क्यों कि उसे दुश्मनी लेकर सत्ता हासिल करना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। स्वविवेक से जनहित में अमलीजामा पहनाने के लिए स्वतंत्र रहने वाली लालफीताशाही हमेशा ही आरोपों से सुरक्षित और संरक्षित रही है। हमेशा ही सरकार-विपक्ष के मध्य ही आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चलता है। महिलाओं को हथियार बनाकर कभी सत्ता हथियायी गई तो कभी सत्ता सुरक्षित की। ऐसा करने का क्रम देश में वाह्य आक्रान्ताओं की आमद के बाद से ही तेज हुआ है। पहले यदाकदा ही ऐसी घटनायें देखने-सुनने में मिलती थीं। समय रहते रोकना होगा महिलाओं का हथियार के रूप में इस्तेमाल अन्यथा ममता की मूर्ति को कभी खून के आंसुओं से अस्मिता के दाग धोने पडेंगे या फिर विषकन्या बनकर दूसरों के मंसूबों के लिए मरने की पीडा झेलना पडेगी। इसके लिए केवल सरकार के प्रयासों को ताकना, कोसना या फिर शब्दों की जुगाली करना ही पर्याप्त नहीं होगा बल्कि राष्ट्रभक्ति के चक्र से राष्ट्रद्रोहियों को नस्तनाबूत करने वाले संकल्प के साथ प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रधर्म निभाना होगा। तभी शान्ति, सहकार और सौहार्य स्थापित हो सकेगा। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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