अधिकारियों की कर्तव्यनिष्ठा पर अंकित होते प्रश्नचिन्हों

0

भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश को अस्थिर करने के लिए सीमा पार से निरंतर षडयंत्र हो रहे हैं। इन षडयंत्रों में अभी तक पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश, म्यांमार के नागरिकों की खासी भागीदारी देखने को मिलती है। प्रमाणों की उपलब्धि होने के बाद भी उन राष्ट्रों ने अपनी धरती से हो रही आतंकी गतिविधियों पर कभी लगाम नहीं लगाई।
दूसरी ओर इन राष्ट्रों ने भारत को घेरने के लिए कभी कश्मीरी राग अलापा तो कभी मानवाधिकार के मनगढंत मुद्दे बनाकर ढुमके लगाये। कभी जातिगत वैमनुष्यता को हवा दी तो कभी सम्प्रदायगत वातावरण को रेखांकित किया। वर्तमान परिदृश्य में मणिपुर और हरियाणा की रक्तरंजित घटनायें नित नये रूप में सामने आ रहीं हैं। कभी कश्मीर के कुलगाम में घात लगाकर सेना पर हमले होते हैं तो कभी मणिपुर की इंफाल घाटी में विरोध प्रदर्शन के दौरान खून खराबा किया जाता है। कभी हरियाणा के नूंह में पहाडियों से गोलियां दाग कर श्रध्दालुओं को निशाना बनाया जाता है तो कभी दिल्ली में ही खूनी इबारत लिखने की कोशिशें होतीं है।
सभी घटनाओं में सीमापार से होने वाले षडयंत्र के सबूत चीख-चीखकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश और म्यांमार में बैठकर आतंकी स्क्रिप्ट लिखने वालों को वहां की सरकारें खुलेतौर पर सहायता, सुरक्षा और संरक्षण दे रहीं हैं। चीन तो कई बार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के आतंकी सरगनाओं को बचाने के लिए वीटो तक इस्तेमाल कर चुका है। बाह्य परिदृश्य की समीक्षा से पहले हम अपनी आन्तरिक व्यवस्था पर गहराई से नजर डालें तो कार्यपालिका के अनेक उत्तरदायी अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह अंकित होते हैं। दायित्वों की पूर्ति के लिए उन्हें भारी भरकम तनख्वाय, सुविधायें, भत्ते और सेवा के उपरान्त बिना काम के भी पेंशन के नाम पर बडी धनराशि दी जाती है, जो निश्चय ही देश के ईमानदार करदाताओं की खून पसीने की कमाई से भुगतान होती है। जब अवैध कब्जे, अवैध हथियारों, अवैध मादक पदार्थों की खेती, अवैध निवास, अवैध निर्माण, अवैध परिवहन जैसे अनगिनत अवैध कृत्य संपन्न होते हैं, तब वे उत्तरदायी अधिकारी कहां होते हैं। सब कुछ खुलेआम होता है। देश के लगभग सभी शहरों-कस्बों में षडयंत्र के तहत पहले सरकारी भूमि पर कब्जा होता, फिर तंग गलियों में ऊंचे मकानों का निर्माण किया जाता है, और फिर उन अवैध बस्तियों से राष्ट्रद्रोही षडयंत्रों की व्यवहारिक परिणति की घटनाओं को मूर्त रूप दिया जाता है। ऐसी बस्तियां ज्यादातर पहडियों, रेलवे लाइन के पास, गंदे नाले के किनारों, नदी-नहर के दौनों ओर, पाश कालोनियों के समीप, मुख्य बाजार के नजदीक, सडक के किनारे, लावारिश पडी सरकारी जमीनों, खण्डहर हो चुकी सरकारी परियोजनाओं की भूमि आदि पर बनायी जातीं है। इन बस्तियों में रहने वाले ज्यादतर लोगों के बारे में कभी छानबीन नहीं होती बल्कि वोटबैंक के लालच में खद्दरधारियों की रौब पर, अधिकांश को देश का गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाला नागरिक घोषित कर दिया जाता है। वर्तमान समय में यही बस्तियां रोहिग्याओं के साथ-साथ अवैध ढंग से देश की सीमा में घुसपैठ करने वालों के लिए शरण स्थली बनी हुईं हैं। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में अवैध घुसपैठियों को चिन्हित करके उनके विरुध्द कार्यवाही की गई है। ऐसी कडाई सभी राज्यों को शुरूआत में ही करना चाहिये। बंगाल प्रांत की मुख्यमंत्री तो अवैध घुसपैठियों को वैध बनाने के सारे हथकण्डे स्वयं ही अपना रहीं हैं। वहां के दंगे, उनके लिए सरकार के हाथ मजबूत करने का हथियार बनते जा रहे हैं। मणिपुर में म्यांमार के घुसपैठियों व्दारा प्रायोजित भीड के साथ संगठित रूप से ड्रोन, बम, अत्याधुनिक हथियारों से आक्रमण करने, रोहिंग्याओं व्दारा पाकिस्तान में बैठे आकाओं के दिशा निर्देश पर आतंकवादियों की तरह पूर्व निर्धारित योजना के तहत नूंह में पहाडियों से गोलियां चलाने, कुलगाम में अलगाववादियों व्दारा घात लगाकर सेना पर हमला करने जैसे अनेक उदाहरण सामने आते हैं। ऐसे में विपक्ष अपने सत्ता सुख की लालसा से देश के हित में न खडा होकर आलोचनात्मक रुख अख्तियार करता है। वह कभी आरोपियों को मासूम बताता है तो कभी उनके बचाव में मानवता की दुहाई देने लगता है। इतने पर भी काम नहीं चलने पर गिरफ्तार किये गये आरोपियों को सलाखों से बाहर निकालने के लिए धरना, प्रदर्शन सहित न्यायालयों तक में पैरवी करने लगाता है। विपक्ष के खद्दरधारियों का अभी तक ज्यादातर उद्देश्य सीमा पार से पोषित हो रहे आतंक, अलगाव और अशान्ति के षडयंत्र को संरक्षण देना ही रहा है। कभी माहौल को शान्त करने, घटना की तह तक जाने तथा उत्तरदायियों को चिन्हित करने में विपक्ष की रुचि देखने को कम ही मिली है। ऐसे में सरकार और विपक्ष की जंग में अनेक उत्तरदायी अधिकारी बच निकलते हैं। ज्यादा माहौल गर्म होने पर उन्हें स्थानान्तरित कर दिया है। बहुत ज्यादा हायतोबा होने पर उनके ही किसी वरिष्ठ अधिकारी को जांच का जिम्मा देकर मामले को टाल दिया जाता है। जबकि कार्यपालिका के ऐसे अधिकारियों की कर्तव्यनिष्ठा पर अंकित होते प्रश्नचिन्हों का उत्तर ढूंढना होगा। दूसरी ओर उत्तरदायी अधिकारियों की नाक के नीचे ही अवैध ढंग से आधार कार्ड, अवैध ढंग से मतदाता पहचान पत्र, अवैध ढंग से राशन कार्ड, अवैध ढंग से ड्राइविंग लाइसेंस, अवैध ढंग से निवास प्रमाण पत्र, अवैध ढंग से जाति प्रमाण पत्र, अवैध ढंग से मार्कशीट, अवैध ढंग से पासपोर्ट, अवैध ढंग से भू स्वामी दस्तावेज आदि निरंतर बनाये जा रहे हैं, जिनके आधार पर जहां विदेशी घुसपैठिये अपने स्थानीय गिरोह के सदस्यों के सहयोग से देश में स्थाई निवासी बन जाते हैं वहीं अपात्र व्यक्तियों को पात्र लोगों के हितों पर डाका डालने का भी मौका मिल जाता है। यह सब खुलेआम हो रहा है और हम सत्ताधारी दल – विपक्ष के आरोपों-प्रत्यारोपों में ही उलझे रहते हैं। पांच साल के लिए सत्ता पर काबिज रहने वाले दलों को वास्तव में कार्यपालिका के कुछ बेहद चतुर लोग ही चलाते हैं। कानूनी पेंचों को सुलझाने से लेकर उलझाने तक में इनकी महती भूमिका होती है, परन्तु कोई भी राजनैतिक दल या व्यक्ति खुलकर इनसे पंगा लेकर स्वयं की शान्ति, सुख और सम्पन्नता को तिलांजलि देने का साहस नहीं जुटा पाता। ऐसे में राष्ट्र के आम आवाम को ही आगे आकर संगठित रूप से गवर्नमेन्ट सर्वेन्ट से गवर्नमेन्ट आफीसर बन गये अनेक लोगों को पुन: उनके मूल स्वरूप में वापिस लाना होगा, तभी राष्ट्र में शान्ति, सौहार्य और सुख की बयार बह सकेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share