गंगा में अस्थियों के विसर्जन का महत्व

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हरिद्वार। सनातनी परंपरा में मरणोपरांत पार्थिव शरीर का दाह संस्कार किया जाता है और अस्थियों का गंगा में विसर्जन। इसके पीछे क्या रहस्य है। यूवा पीढ़ी के लिए अस्थि विसर्जन का वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझना जरूरी है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अस्थियों का गंगा में विसर्जन उचित है क्योंकि गंगा जल में पारा अर्थात (मर्करी) विद्यमान होता है। ऐसे में हड्डियों में मौजूद कैल्सियम और फास्फोरस पानी में घुल जाता है। यह जलीय जंतुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। हड्डियों में गंधक (सल्फर) विद्यमान होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण होता है..इसके साथ-साथ यह दोनों मिलकर मरकरी सल्फाइड साल्ट का निर्माण करते हैं। हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम, पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है। धार्मिक दृष्टि से पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंततःशिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते हैं…

वहीं वेदों और पुराणों में पतितपावनी मां भागीरथी गंगा को देव नदी कहा जाता है। राजा भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ और उनके पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त हुआ। जिन्हें कपिल मुनि ने अपने श्राप से भस्म कर दिया था।‌ मान्यता है कि गंगा स्वर्ग से धरती पर आई है। गंगा श्री हरि विष्णु के चरणों से निकली है और भगवान शिव की जटाओं में आकर बसी है..श्री हरि और भगवान शिव से घनिष्ठ संबंध होने पर गंगा को पतित पाविनी कहा जाता है। गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है।

पौराणिक कथा
एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली,” प्रभु ! मेरे जल में स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी? मेरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करूंगी?” इस पर श्री हरि बोले,”गंगा! जब साधु, संत, वैष्णव आ कर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभी पाप घुल जाएंगे..गंगा नदी इतनी पवित्र है की प्रत्येक हिंदू की अंतिम इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए लेकिन यह अस्थियां जाती कहां हैं? इसका उत्तर तो वैज्ञानिक भी नहीं दे पाए क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगा जल पवित्र एवं पावन है। गंगा सागर तक खोज करने के बाद भी इस प्रश्न का पार नहीं पाया जा सका..सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। यह अस्थियांं सीधे श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ जाती हैं..जिस व्यक्ति का अंत समय गंगा के समीप आता है उसे
मरणोपरांत मुक्ति मिलती है। इन बातों से गंगा के प्रति हिन्दुओ की आस्था तो स्वभाविक है।

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