इस दिन श्रीहरि की पूजा और कथा सुनने से हर समस्या का अंत हो जाता है।

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। यह हिंदू माह भाद्रपद के दौरान चंद्रमा के बढ़ते चरण के चौदहवें दिन मनाया जाता है। ये पर्व हिंदुओं और जैनियों द्वारा मनाया जाता है।इस दिन न सिर्फ 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव का समापन होता है बल्कि विष्णु भगवान की पूजा भी की जाती है।अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश उत्सव पर्व का पूर्णता की जाती है और विसर्जन भी किया जाता है।
इस दिन श्रीहरि की पूजा और कथा सुनने से हर समस्या का अंत हो जाता है।
पौराणिक कथा के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु ने *14 भुवन* की रक्षा करने के लिए चौदह रूप धारण किए थे, इसलिए यह पर्व खास माना जाता है।
यही वजह है कि इस दिन विष्णु जी के अनंत रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही 14 गांठ वाला सूत्र कलाई पर बांधा जाता है।
इस दिन अनंत भगवान *(भगवान विष्णु)* की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है। ये कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं।
यह दिन सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है जो भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए समर्पित है, जो इस ब्रह्मांड के संरक्षक हैं।

*इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता है।* कहा जाता है कि जब पाण्डव धृत क्रीड़ा में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्तसूत्रधारण किया। *अनन्तचतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए।*

व्रतकर्ता प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करें। शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें।
कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके बाद *’ॐ अनन्तायनम:’* मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधि से पूजा करें।

पूजनोपरांत अनन्तसूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें-
*अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।*
*अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥*

पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें। कथा का सार-संक्षेप यह है – सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

कहते हैं जो *अनंत चतुर्दशी की कथा सुनने मात्र से सारे दुख दूर हो जाते हैं. अनंत फल की प्राप्ति होती है.*

अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तिथि है। *यह मुख्य जैन त्यौहार, पर्यूषण पर्व का पूर्णता का दिन होता है।*

अनंत चतुर्दशी व्रत के दिन अगर आप श्री *विष्णु सहस्त्रनाम* स्तोत्र का पाठ करते हैं तो इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। साथ ही *यह व्रत धन-संपति, सुख-संपदा और संतान की कामना के लिए भी किया जाता है। *अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई पद, प्रतिष्ठा, सम्पदा तथा समृद्धि को पुन:प्राप्त होता है* ऐसी दृढ़ मान्यता सदियों से चल रही है। ऐसी ही श्रद्धा और विश्वास इस व्रत को और लोकप्रिय भी बनाती है।
———————————–
आचार्य राजेश लखेडा
मायापुर हरिद्वार
9897206290

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share