वेदोक्त मृत्युंजय मंत्र

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त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥
इस मंत्र में 32 अक्षर का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ’ लगा देने से 33 अक्षर हो जाते हैं। इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है।
मंत्र विचार
इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।
शब्द बोधक
‘त्र’ ध्रुव वसु ‘यम’ अध्वर वसु
‘ब’ सोम वसु ‘कम्‌’ वरुण
‘य’ वायु ‘ज’ अग्नि
‘म’ शक्ति ‘हे’ प्रभास
‘सु’ वीरभद्र ‘ग’ शम्भु
‘न्धिम’ गिरीश ‘पु’ अजैक
‘ष्टि’ अहिर्बुध्न्य ‘व’ पिनाक
‘र्ध’ भवानी पति ‘नम्‌’ कापाली
‘उ’ दिकपति ‘र्वा’ स्थाणु
‘रु’ भर्ग ‘क’ धाता
‘मि’ अर्यमा ‘व’ मित्रादित्य
‘ब’ वरुणादित्य ‘न्ध’ अंशु
‘नात’ भगादित्य ‘मृ’ विवस्वान
‘त्यो’ इंद्रादित्य ‘मु’ पूषादिव्य
‘क्षी’ पर्जन्यादिव्य ‘य’ त्वष्टा
‘मा’ विष्णुऽदिव्य ‘मृ’ प्रजापति
‘तात’ वषट
इसमें जो अनेक बोधक बताए गए हैं। ये बोधक देवताओं के नाम हैं।
शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-
शब्द शक्ति
‘त्र’ त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र
‘य’ यम तथा यज्ञ
‘म’ मंगल
‘ब’ बालार्क तेज
‘कं’ काली का कल्याणकारी बीज
‘जा’ जालंधरेश
‘म’ महाशक्ति
‘हे’ हाकिनो ‘सु’ सुगन्धि तथा सुर
‘गं’ गणपति का बीज
‘ध’ धूमावती का बीज
‘म’ महेश
‘पु’ पुण्डरीकाक्ष
‘ष्टि’ देह में स्थित षटकोण
‘व’ वाकिनी
‘र्ध’ धर्म ‘नं’ नंदी
‘उ’ उमा
‘र्वा’ शिव की बाईं शक्ति
‘रु’ रूप तथा आँसू
‘क’ कल्याणी
‘व’ वरुण
‘बं’ बंदी देवी
‘ध’ धंदा देवी
‘मृ’ मृत्युंजय
‘त्यो’ नित्येश
‘क्षी’ क्षेमंकरी
‘य’ यम तथा यज्ञ
‘मा’ माँग तथा मन्त्रेश
‘मृ’ मृत्युंजय
‘तात’ चरणों में स्पर्श
यह पूर्ण विवरण ‘देवो भूत्वा देवं यजेत’ के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।

साभार

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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