स्वर्णिम काल के सुखद परिणाम की दस्तक

भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
पाकिस्तान को ढाल बनाकर चीन ने अपनी चौधराहट को बढाने में एक बार फिर सफलता हासिल कर ली है। भारत की जवाबी कार्यवाही से थर्राये पाकिस्तान ने पर्दे के पीछे से चीनी मंशा के तहत अमेरिका को माध्यम बनाकर सीजफायर के प्रयास तेज किये। दुनिया पर अपनी धाक जमाने का अमेरिका को एक और मौका दिखा और उसने पहले तो आतंकी देश को अपने प्रभाव का प्रयोग करके इंटरनेशनल मानिटरी फंड से कर्जे की नई किस्त जारी करवा दी और फिर भारत पर दबाव बनाकर सीज फायर की स्थिति का निर्माण किया। सीज फायर में दौनों देशों की उच्चतमस्तर की चर्चा के बिना ही घोषणायें की जाने लगीं परन्तु जैसे ही अमेरिका को इस प्रयास हेतु पाकिस्तान ने धन्यवाद ज्ञापित किया वैसे ही पाक सेना ने पुनः भारतीय सीमा के अन्दर घुसकर आक्रमण करना शुरू कर दिया। ताबडतोड हमलों के मध्य भारत ने भी कडी जवाबी कार्यवाही की। इसी मध्य चीन ने पाकिस्तान के साथ खुलकर खडे होने की घोषणा कर दी। अमेरिका को चीन ने एक बार फिर मात दे दी। षडयंत्रों की विसात पर खेले जा रहे अमेरिका और चीन के शतरंजी खेल में पाकिस्तान के पौ-बारह हो रहे हैं। आतंक को मुख्य उद्योग के रूप में स्वीकारने वाले जिन्ना के देश ने शुरू से ही अपने विश्वासघाती कदमों से नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। मालूम हो कि मक्कार पडोसी ने चोरी-छिपे अपनी विश्वद्रोही नीतियों के अनुपालन में दोगले देश अमेरिका और चीन जैसे प्रतिव्दन्दियों का सहयोग लेकर परमाणु शक्ति प्राप्त कर ली थी और इसी की दम पर वह समूचे संसार को निरंतर ब्लैकमेल रहा है। उसने परमाणु धमकी का प्रयोग, अमेरिका का प्रभाव और असहाय की स्थित का दिखावा करके अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्जे की एक और किस्त प्राप्त कर ली। विचारणीय बिन्दु यह है कि एक आतंकी राष्ट्र को ऐसे समय में बेलआउट देने के पीछे आईएमएफ की आखिर क्या मजबूरी थी, जो युद्ध जैसे हालातों के मध्य संसार से संकलित पैसा मानवता के विरुध्द उपयोग हेतु दिया गया। उल्लेखनीय है कि सन् 1989 से लेकर अभी तक के 35 वर्षों में इस अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ने 28 बार पाकिस्तान को पैसा दिया है। आश्चर्य है कि आतंकी देश को जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु 1.3 बिलियन डालर की क्रेडिट लाइन देने पर भी विचार किया जा रहा है। समूची दुनिया जानती है कि पाकिस्तान को दिये जाने वाले पैसे का खुला उपयोग कट्टरपंथी आतंकवाद से गजवा-ए-दुनिया के लक्ष्य भेदन हेतु किया जा रहा है। संसार भर में फैले हजारों आतंकवादी संगठनों को पाकिस्तान का न केवल खुला समर्थन है बल्कि पूरा सहयोग भी रहता है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि आईएसआईएस, हिजबुल्लाह, हूती जैसे अनेक संगठनों को पाकिस्तान ने गुपचुप तरीके से परमाणु हथियार तक मुहैया करा दिये हैं जिस कारण वे अमेरिका जैसे देशों के जहाजों तक पर दबंगी से आक्रमण कर रहे हैं। वर्तमान परिदृश्य में भारत का विजय रथ निरंतर आगे बढता जा रहा है। चीनी हथियार निरंतर ध्वस्त हो रहे हैं। पाकिस्तान के प्रयास धराशाही हो रहे हैं। सीमा पर प्रयोग में लाये जाने वाले अमेरिका सैन्य साजो सामान भी भारत की साहसी सेना व्दारा नस्तनाबूत किये जा रहे हैं। ड्रैगन का एयर डिफैन्स सिस्टम और मिसाइलों के धूल में मिलाने के साथ साथ अमेरिका के एफ 16 जैसे लडाकू विमानों को अस्तित्वहीन करके भारत ने अपनी क्षमता का परचम फहरा दिया है। ऐसे में अमेरिका और चीन के हथियारों की फजीहत होने के बाद उसके अनेक शस्त्र क्रेताओं का मन बदलने लगा है। इन हथियारों के सौदागरों की छवि धूमिल हो रही है। वहीं अर्थ-व्यवस्था के क्षेत्र में ब्रिटेन जैसे देश को पछाडकर भारत ने तीसरी पायदान पर कब्जा कर लिया है जिससे ब्रिटेन की विरासत को शर्मनाक चोट लगी है। समूचे परिदृश्य के आधार पर यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि विश्वासघाती अमेरिका, धूर्त चीन, मक्कार ब्रिटेन जैसे देश आज भारत के बढते विश्वास, ऊर्ध्वमुखी विकास और विद्वान नेतृत्व की क्षमताओं से न केवल आहत है बल्कि अपने-अपने स्तर पर षडयंत्र करने में जुटे हैं। ऐसे में भारत को निशाना बनाया जाना स्वाभाविक ही है। ज्ञातव्य है कि पूर्व में अमेरिका ने बंगला देश में सत्ता परिवर्तन कराके हिन्दुओं और भारत विरोधी वातावरण निर्मित किया ताकि भारत-बंगला देश युध्द को धरातल पर उतारा जा सके। ऐसा ही प्रयास चीन ने भी मालदीप, श्रीलंका और नेपाल की धरती का उपयोग करके किया था। सभी प्रयासों के असफल होने के बाद भारत को सम्प्रदाय की आग से जलाने हेतु नापाक धरती का मास्टर स्टोक के रूप में पुनः उपयोग हुआ। पहलगाम की घटना से समूचा देश आन्दोलित हो उठा। शत्रुओं की चाल थी कि हिन्दु-मुस्लिम के इस कार्ड से देश के अन्दर आन्तरिक युध्द के हालात पैदा हो जायेंगे और सीमापार से सेना को आम मुसलमान के वेश में न केवल घुसेडा जायेगा बल्कि भारत के अंदर पहले से मौजूद भितरघातियों, घुसपैठियों और अघोषित शरणार्थियों सहित भूमिगत एजेन्टों को सक्रिय करके भीड की शक्ल में खडा करके हिन्दुओं का कत्लेआम करवा दिया जायेगा।मगर यह मंसूबे पूरे नहीं हो सके। मुस्लिम देशों से भी बेहतर हालातों में विलासतापूर्ण जीवन जीने वाले भारतीय मुसलमानों ने मोदी के पारदर्शी नेतृत्व को खुलकर समर्थन दिया। विपक्ष ने भी एक स्वर में साथ खडे होने की घोषणा की। समूचा देश पहलगाम का बदला लेने के लिए आक्रोशित हो उठा। भारत की प्रतिशोधात्मक कार्यवाही को अवसर मानकर चीन के पिट्ठू भिखारी पाकिस्तान ने अपनी दोगली नीतियों के तहत अमेरिका पर डोरे डाले। उसे दुनिया का सबसे ताकतवार देश मानने का दिखावा करके सहयोग की याचना की। सिठिया चुके ट्रंप ने आतंकी देश के ड्रामे को वास्तिवकता मानकर उसे न केवल आईएमएफ से कर्जे की किस्त दिलवायी बल्कि भारत पर दबाव बनाकर सीज फायर की घोषणा भी करवा दी। यह सब चीन की चालबजियां थी जो पाकिस्तान के सिर चढकर बोल रहीं थीं। ज्यों ही मुट्ठी में पैसा आया त्यों ही चीन के रंग में रंगे आतंकी देश ने अपना असली रुप दिखाना शुरू कर दिया। अमेरिका की सत्ता सम्हालते ही ट्रंप ने रूस-यूक्रेन और इजरायल-गाजा जैसे युद्धों को समाप्त करवाने की घोषणा की थी जिसमें वह पूरी तरह असफल रहे। यही हाल भारत-पाकिस्तान के मुद्दे पर भी हुआ। चीन की चालाकियों के तले बूढे ट्रंप की अकल जमती जा रही है जबकि ड्रैगन ने एक तीर में तीन निशान साथे हैं। दुनिया के सामने अमेरिका की औकात दिखा दी, पाकिस्तान की विश्वसनीयता के चीथडे उडा दिये और भारत की अर्थ व्यवस्था को सीधी चोट पहुंचाई। ऐसे में चीन छोडकर भारत आने की घोषणा कर चुके अन्तर्राष्ट्रीय औद्योगिक घराने अपने निर्णय पर पुनः विचार करने के लिए बाध्य हो गये हैं। पाकिस्तान को युध्द की आग में झौंकने के बाद चीन उसे खुलकर सैन्य सहयोग तो करेगा परन्तु वह अपने सैनिकों जंग में नहीं उतार सकता। वर्तमान में भारत की स्थिति न केवल मजबूत है बल्कि उसके पक्ष में विश्व के ज्यादातर देश खडे हैं जो बाह्य और आन्तरिक रूप से सहयोग करने का दम भर रहे हैं। आज समूचा देश एक है। सेना का आत्मविश्वास चरम सीमा पर है। ऐसे में चीन और अमेरिका के बीच चल रहे शह-मात के खेल सहित ब्रिटेन की कलाबाजियों से दूर रहकर केवल और केवल राष्ट्र गौरव को विश्व के सर्वोच्च सिंहासन पर पुनः स्थापित करन हेतु उपलब्ध हुए स्वर्णिम काल का सुखद परिणाम प्राप्त करना ही चाहिए। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
Dr. Ravindra Arjariya
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