औपचारिक आमंत्रण पर न आने का आदेश

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

राजनैतिक परिदृष्य में नींव के पत्थरों को अदृष्टिगत करने का प्रयास कभी भी सुखद नहीं होता। अतीत में जो लोग लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कांटों की सेज पर सत्ता के चाबुकों से लहूलुहान हुए हो, उन्हें लक्ष्य भेदन के बाद उपेक्षित करना, किसी हत्या से कम नहीं होता। अयोध्या में होने वाले भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में ऐसा ही प्रयास श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के व्दारा किया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवानी, डा. मुरलीमनोहर जोशी को औपचारिक आमंत्रण भेजने के बाद समारोह में न आने के लिए कहने की परम्परा पहली बार देखने को मिली है। सनातन के परचम तले चम्पत राय ने यह बात श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री की हैसियत से समाज के सामने छाती ठोककर कहीं है कि आमंत्रण देने का बाद उन्हें समारोह में न आने के लिए कहा गया है। इसके पीछे बढती उम्र और स्वस्थगत कारण उत्तरदायी है। बात यहीं समाप्त नहीं होती बल्कि अतीत की दु:खद घटना को भी वे अपनी उपलब्धि के रूप में निरूपित करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को भी आमंत्रण देकर समारोह में आने से रोकने की पुरानी घटना को भी रेखांकित करने से नहीं चूके। ऐसे में सनातन की अतिथि देव भव: की परम्परा ने विकृत हो रही राजनैतिक सोच का एक और प्रहार स्वयं पर झेला। अपनों के व्दारा दिये जाने वाले जख्मों के लिए केवल राजनैतिक महात्वाकांक्षा की पूर्ति ही उत्तरदायी नहीं है बल्कि सनातन को संरक्षण देने वाले संगठनों पर अन्तर्कलह के व्दारा कब्जा करने की नीतियां भी अब बलवती होने लगीं हैं। कभी राजनीति पर धर्म की पहरेदारी होती थी ताकि आम लोगों के मध्य समानता, सामंजस्य और सौहार्य स्थापित रह सके परन्तु वर्तमान में राजनीति के व्दारा धर्म को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। सत्ता के लिए धर्म को हथियार बनाना कदापि उचित नहीं हैं। राम मंदिर के निर्माण के लिए जीवन समर्पित करने वाले निर्मोही अखाडे के सरपंच श्रीराजा रामाचार्य जी महाराज को भी राजनैतिक दिग्गजों की तरह ही आमंत्रित करने के बाद आने से मना कर दिया गया। ऐसे लोगों की लम्बी फेरिस्त बताई जा रही है। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार अयोध्या आने वालों को भी आयोजन काल में प्रतिबंधित कर दिया गया है। लोगों को अपनी एडवांस बुकिंग कैंसिल करना पडी है। आखिर देश को किस दिशा और दशा में ले जाया जा रहा है। श्री राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण का कार्य अभी पूर्ण नहीं हुआ है। अधूरे मंदिर में नूतन विग्रह की स्थापना, उनकी प्राण-प्रतिष्ठा तथा विशाल समारोह का आयोजन करने के औचित्य पर भी शास्त्रीय मंथन निरंतर तेज होता जा रहा है। संतों के अनेक संगठन इस वातावरण को देखकर अन्तव्र्यथा से पीडित हैं। पूरे समाज को राम मंदिर की भव्यता स्वमेव ही दिखाई पड रही है। धारा 370 का अस्तित्वहीन होना भी प्रत्यक्ष है। तीन तलाक का कानून भी जुल्म की दास्तां को मिटाने की कोशिश कर रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर कश्मीर के वर्तमान हालातों का सकारात्मक पक्ष भी किसी से छुपा नहीं है। जी20 सहित अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का बढता वर्चस्व भी अपनी तरुणाई दिखा रहा है। बिना युध्द के पाकिस्तान को घुटनों पर ला देने की मिशालें भी दी जा रहीं है। उपलब्धियों के आकाश में चमकते नक्षत्रों की निरंतर बढ रही संख्या के मध्य अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा, आमंत्रित करने के बाद न आने का आदेश, जातिगत समीकरणों को बढावा, आरक्षण को संरक्षण जैसे ग्रहण लगाने का प्रयास करना, किसी भी हालत में सुखद नहीं कहा जा सकता। यूं तो अधिकांश राजनैतिक दल अपने स्थापन काल के आदर्शों को तिलांजलि दे चुके हैं। अवसरवादियों के लिए पलक पांवडें बिछाने वाले खद्दरधारियों ने अब धर्म को ढाल और जाति-प्रथा को हथियार बनाना शुरू कर दिया है। कोई अयोध्या आयोजन के आमंत्रण को धर्म की निजिता का मुद्दा बताकर अस्वीकार कर रहा है तो कोई आमंत्रण न मिलने से आहत है। कहीं हिन्दुत्व का झंडा उठाकर शेर की तरह दहाडने वाले मिमयाने लगे हैं तो कहीं टोपी-जनेऊ-मोमबत्ती की जुगलबंदी दिखाई जा रही है। धर्म की चौखट पर राजनीति का मकडजाल निरंतर बढता ही जा रहा है। देश का ठेकेदार बनने की ललक ने कभी मंदिर में माथा टेकने पर विवस पर दिया तो कभी मजार पर चादर चढाने के लिए पहुंचा दिया। कभी गिरजाघरों में मोमबत्तियां जलाईं तो कभी रूमाल बांधकर गुरुव्दारे में सेवा कराई। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोगों ने अब श्रध्दा के आयामों को भी अपने ही रंग में रंगना शुरू कर दिया है। कहीं घुसपैठियों को देश का नागरिक घोषित कराने की मुहिम शुरू हो गई है तो कहीं आतंक की फसलें तैयार की जा रहीं हैं। चारों तरफ सत्ता के लालची भेडियों की भीड अपने-अपने हथियारों से अपनों का ही खून बहाने के लिए आतुर है। धर्म के क्षेत्र में भी सत्ता सुख का लालच उबाल लेने लगा है। मठ, मंदिर, गिरजाघर, गुरुव्दारा, मजर जैसे आस्था के केन्द्रों में भी राजनैतिक दखलंदाजी होने लगी है। धर्म के पवित्र स्थानों का व्यवस्था तंत्र भी सरकारों के इशारों पर गठित होने लगे हैं। प्रभावशाली लोगों के इशारों पर ट्रस्ट, समितियां, संस्थायें बनाई जाने लगीं है। पुरानी संस्थानों के अन्दर भी षडयंत्र की विष-बमन किया जाने लगा है। राम जन्म भूमि पर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान गर्भ गृह में चारों शंकराचार्यो, 51 शक्तिपीठों के पीठाधीश्वरों, 13 अखाडों के प्रमुख आदि के स्थान पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत तथा प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के आचार्य का ही प्रवेश निर्धारित किया गया है। कर्मकाण्ड के अनेक विव्दानों ने इस प्रारूप के विरोध में स्वर मुखरित किये हैं परन्तु सत्ता के आक्रोश तले उनकी आवाज दबती चली गई। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल को संवैधानिक पदेन व्यवस्था का अंग मान भी लिया जाये तो संघ के प्रमुख को गर्भगृह में प्रवेश का अधिकार दिया जाना अपने आप में यक्ष प्रश्न बनकर खडा हो जाता है। इस तरह के अनेक प्रश्नों आज अपने उत्तरों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। वहीं दूसरी ओर देवता के रूप में अतिथि को स्वीकार करने वाली परम्परा को स्थापित करने का दावा करने वाले ही अब औपचारिक आमंत्रण पर न आने का आदेश दर्ज करने लगे हैं। ऐसे में आमंत्रण पत्र, उसका भावभरा संदेश और पधारने का आग्रह एक साथ अस्तित्वहीन हो जाते हैं जब फोन पर न आने का आदेश जारी किये जाते है। बुलाने का सम्मान और न आने देने का अपमान एक साथ पहली बार देखने को मिल रहा है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ पुन: मुलाकात होगी।

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