बौखलाहट का परिणाम है मणिपुर का घटना क्रम
भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश के विकास पथ पर अग्रसर होते ही दुश्मनों की नई-नई चालें सामने आने लगीं हैं। पाकिस्तान के कश्मीरी मंसूबों पर पानी फिरते ही उसके आका चीन ने खुद ही मोर्चा सम्हाल लिया है। पहले म्यांमार के रोहिग्याओं को शरणार्थी बनाकर अवैध रूप से देश के कोने-कोने में भेजा और अब मैथेई-कुकी समुदाय मेें आतंक प्रशिक्षितों की घुसपैठ के माध्यम से हिंसक इबारत लिखना शुरू कर दी। चीन, म्यांमार और बंगलादेश के साथ लगने वाली मणिपुर की सीमा पर लम्बी दूरी तक फेसिंग नहीं लगाई गई है जिसका उपयोग के आतंकियों की जमातें देश के अन्दर सुगमता से प्रवेश कर लेतीं हैं। चीन ने वामपंथी विचारधारा के माध्यम से पहले देश की सांस्कृतिक विरासत को तार-तार करते हुए नक्सलियों की फौज तैयार की। इनकी एक बडी संख्या ने स्वयंभू बुध्दिजीवी बनकर अनेक राजनैतिक दलों में घुसपैठ बना ली। मजदूर संगठनों को लाभ का लालच देकर उनका नेतृत्व सम्हाल लिया। कलाकारों, रंगकर्मियों, साहित्यकारों, संगीतकारों के मध्य विष बीज का रोपण कर दिया। मनगठन्त आंकडों, बनावटी प्रमाणों और भयाभव भविष्य का सहारा लेकर अपनी विचाधारा थोप दी। यूं तो चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को ही भारत के प्रति अपने मंसूबे जाहिर कर दिये थे जब उसने अपनी तानाशाही के चलते युध्द की पहल की थी। उसके बाद तो समय-समय पर पाकिस्तान को मुहरा बनाकर वह अपना खेल खेलता रहा। पाक आतंकियों को वीटो लगाकर बचाता रहा। हथियारों से लेकर आर्थिक सहायता तक पहुंचाता रहा। पाकिस्तान के साथ भारत के होने वाले युध्दों में चीन के व्दारा दुश्मन की सहायता करने के खुले प्रमाण मिलते रहे। ज्यों ही कश्मीर से धारा 370 समाप्त हुई और शान्ति बहाल होने की स्थिति बनने लगी, पत्थरबाजों के हाथों में किताबें आने लगीं, धार्मिक यात्रायें सौहार्य के वातावरण में सम्पन्न होने लगीं, विकास के नये सोपान गढे जाने लगे तो चीन ने पाक के माध्यम से चलने वाली चालों के साथ-साथ स्वयं भी मोर्चा सम्हालते हुए अपने पुराने प्रयासों को तेज कर दिया। अतीत में वह कभी नगालैण्ड को अशान्त करता तो कभी मिजोरम की फिजां में जहर घोलता रहा। कभी पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकी संगठन तैयार करता तो कभी सीमा की शांति को भंग करता रहा। कभी हथियारों की धमकी देता तो कभी सीमा विवाद पैदा करके शक्ति का प्रदर्शन करता रहा। इसी क्रम में उसके हाथ आया मणिपुर का आरक्षण वाला मुद्दा। बस फिर क्या था। मुद्दे को चिंगारी दिखाकर 3 मई को मैतेई के आरक्षण के विरुध्द कुकी समुदाय व्दारा आयोजित किये गये प्रदर्शन को हिंसक बना दिया गया। आग भडकाने के लिए अगले ही दिन 1000 से ज्यादा लोगों की भीड एकत्रित करके अपने खास सिपाहसालारों की मदद से शर्मसार कर देने वाली घटना को अंजाम तक पहुंचाया गया। हिंसक घटनाओं के साथ लूटपाट और आगजनी जैसे काण्ड जोडे जाते रहे। ज्यों ही स्थिति नियंत्रण में आने वाली थी कि शर्मसार करने वाली घटना के वीडियो को 75 दिन बाद 19 जुलाई को सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल करवा दिया गया। पूरा देश आक्रोशित हो उठा। विपक्ष के अनेक कद्दावर नेताओं के साथ पुराने संबंधों की दुहाई पर हंगामा खडा करवाने में माहिर चीन ने विश्वमंच पर भारत की बढती साख को धूल धूषित करने की चाल चल दी। मणिपुर में अभी तक 150 से अधिक मौतें हो चुकीं है। हजारों घायल हैं। अनगिनत परिवारों के सिर से छत छिन चुकी है। शोषण का शिकार होती महिलायें घुसपैठियों के आतंक को झेल रहीं हैं। मासूम बच्चे बिना कुछ समझे अपने परिवारजनों के आंसुओं को पीकर समय से पहले ही बडे होने लगे हैं। देश के इस संवेदनशील मामले पर राष्ट्रहित को तिलांजलि देकर विपक्ष ने एक बार फिर राजनैतिक हथियारों का खुलकर उपयोग शुरू कर दिया। पहले सदन के अंदर हंगामा किया, अविश्वास की चुनौती दी और अब स्वयं स्थल निरीक्षण के नाम पर मणिपुर पहुंच गया। ऐसे कठिन समय में सरकार और विपक्ष को एक साथ बैठकर सकारात्मक पहल करना चाहिए थी, परन्तु सभी को 2024 के चुनाव दिख रहे हैं, सत्ता दिख रही है, सब्जबाग दिख रहे हैं, अपना और अपनों का स्वार्थ दिख रहा है। सूत्रों के अनुसार केवल मणिपुर में ही 2187 अवैध घुसपैठिये होने की आधिकारिक सूचना हैं जबकि मिजोरम में तो 40 हजार से अधिक होने की आशंका है। भारत की 1643 किलोमीटर लम्बी पूर्वोत्तर सीमा पर भारत के मिजोरम, मणिपुर, नगालैण्ड तथा अरुणाचल राज्य है। इन राज्यों में यूनाइटेड नेशनल लिब्रेशन फ्रंट, पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी, यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट आफ असम, नेशनल सोशलिस्ट काउण्सिल आफ नगालैण्ड जैसे अनेक संगठनों के म्यांमार में अनेक गुप्त अड्डे हैं जिन्हें चीन से लगातार सहायता, प्रशिक्षण तथा सहयोग मिल रहा है। इस पूरे क्षेत्र में लगभग 200 से अधिक समुदाय निवास करते है जो भाषा-बोली, खान-पान तथा रहन-सहन में विभिन्नताओं के आधार पर अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजे है। स्वतंत्र भारत का इतिहास खंगालें तो सन् 1950 में पहली बार यहां चीन की शह पर समुदायगत दंगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी। उसके बाद तो समय-समय पर देश के पूर्वोतर भाग को सीमापार के षडयंत्र के तहत अशान्त किया जाता रहा। देश की वर्तमान नीतियों से पाक के आतंकी हौसले पस्त होने लगे हैं, चीन की चालें नाकाम होने लगीं है और शत्रु देशों के संयुक्त प्रयासों पर लगने लगा है असफलताओं का ठप्पा जिससे बौखलाकर सभी ने एक साथ मिलकर कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों तथा बंगाल में एक साथ मोर्चा खोलकर दिया। विपक्ष ने राष्ट्रहित और संवेदनाओं की चिता सजाकर सीमापार के षडयंत्र को हवा देना शुरू कर दिया है। विदेशों में देश को कोसने वालों के साथ अन्तर्कलह धर्मियों और अलगाववादियों ने सुर मिलाकर गर्धभ राग अलापना शुरू कर दिया है। राजनैतिक सिध्दान्तों, आदर्शो और मर्यादाओं को नस्तनाबूत करने वालों के चेहरे अब नकाब के बाहर झांकने लगे हैं। ऐसे में राष्ट्र के नागरिकों को स्वयं ही मानवीय संवेदनाओं और राष्ट्रहित की वास्तविक परिभाषायें न केवल गढना पडेंगी बल्कि उन्हें चरितार्थ करने के लिए एक साथ आगे आना होगा अन्यथा सिंहासन की चमक में अंधे हो चुके खद्दरधारी धृतराष्ट्रों का दुर्योधन प्रेम हस्तनापुर को अस्तित्वहीन कर देगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।