शेर की हत्या के लिए गीदडों का तेज होता षडयंत्र
भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
शेर की हत्या के लिए गीदडों का तेज होता षडयंत्रइजरायल पर आतंकी हमला करने वाले हमास को दुनिया के अनेक आतंकी गिरोहों सहित कुछ इस्लामिक देश खुलकर सहयोग दे रहे हैं। हूती के आतंकियों ने हमास के सहयोग में इजरायल के जहाजों को निशाना बनाने के साथ-साथ अब भारत को भी चुनौती देना शुरू कर दी है। हूती के चेहरे के पीछे से घात लगाकर हमला करने वाले ईरान ने लाल सागर की सीमा लांघकर अब भारतीय समुद्री क्षेत्र में जिस तरह से ड्रोन हमला करने का दुस्साहस किया है उससे आतंक का एक नया अध्याय खुलता नजर आ रहा है। पहले भी भारत आने वाले जहाज को हूती ने अगवा करके चुनौती पेश की थी और अब देश के बंदरगाह से मात्र 200 किलोमीटर की दूरी पर आक्रमण कर दिया है। अनेक इस्लामिक देश अपनी कट्टरता की दम पर प्रत्यक्ष में दुनिया के सामने ताल ठोक रहे हैं। इन देशों के मंसूबों के तले अमन पसन्द मुसलमानों का खून निरंतर बह रहा है। हमास के आतंकी हमले के प्रतिशोध ने गाजा के निर्दोष लोगों को खून में नहाने के लिए बाध्य कर दिया है। मानवता की दुहाई देने वाले देशों को गाजा के साथ हो रहे घटनाक्रम में अन्याय दिख रहा है जबकि हमास के आंतकी प्रहार से इजरायलियों की मौतों पर उनकी जुबान तालू से चिपक जाती है। बंधकों की चर्चा से परहेज करने वाले षडयंत्रकारी देश किन्हीं खास कारणों से आतंकियों के पक्ष में नारे बुलन्द करते दिख रहे हैं। उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं है कि वे जिन कट्टरपंथी आतंकियों को संरक्षण दे रहे हैं वे आने वाले समय में उन्हें भी बक्सने वाले नहीं है। वे भूल रहे हैं कि पडोसी की पीडा को नजरंदाज करने वालों की चीखों पर अपनों का भी दिल नहीं पसीजता। दूसरों के घरों की आग में हाथ सेंकने वाले जिस्म भी कई बार राख में तब्दील हो जाते हैं। मानवतावाद का ढकोसला करने वाले देशों में सुलग चुकी आतंक की चिन्गारी अभी ज्वाला नहीं बनी है। इसी कारण वे निर्दोषों के खून से रंगे हाथों को अपने मखमली बिस्तरों में छुपाने की पेशकश कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की दोगली नीतियों पर इजरायल ने खासा प्रहार किया है परन्तु उस अकेले शेर की हत्या के लिए गीदडों का षडयंत्र तेज होता जा रहा है। इजरायल पर अनेक यूरोपियन देशों ने युध्द विराम के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। युध्द विराम होते ही हमास जैसे आंतकी गिरोहों तथा उनके संरक्षणदाताओं के हौसले दुनिया को झुकाने की दिशा में उडान भरने लगेंगे। वर्तमान में निरीह लोगों को कट्टरता का जहर पिलाने वाले हमास के दिग्गज कई मुस्लिम देशों में न केवल ऐश-ओ-आराम की जिन्दगी बसर कर रहे हैं बल्कि धडल्ले से बयान भी जारी कर रहे हैं। वहीं उनकी अंधी कट्टरता का 72 हूरी जहर निरंतर अपना काम कर रहा है। उनके लडाके मरने के बाद मिलने वाले आराम की ख्वाइश में खून की दरिया बहाने पर तुले हैं। ऐसे ही घटनाक्रम की परिणति देश के अन्दर होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। पडोस का कंगाल पाकिस्तान अपनी पीठ पर चीनी हथियार लादकर भारत की ओर मुंह खोले खडा है। नरसंहार के विरुध्द जल रहे बलूचिस्तान में जुल्म ढाने वाले नापाक इरादे बहुत पहल से ही लाल सलाम का गुलाम बनकर काम कर रहे हैं। आईएसआईएस जैसे गिरोहों की केरल से घुसपैठ कराने वाले भितरघातियों ने अब देश के कोने-कोने में रोहिंग्याओं, बंगलादेशियों, पाकिस्तानियों को अवैध रूप से बसाकर भारतीय नागरिक होने के दस्तावेज मुहैया कराना शुरू कर दिये हैं। चोर रास्तों से कट्टरपंथियों की जमातें देश में निरंतर दाखिल हो रहीं हैं। यहां की कार्यपालिका के अनेक लालची अधिकारियों की कृपा से अवैध लोगों को वैध बनाने की सिलसिला अब बेलगाम होकर दौडने लगा है। विकास के साथ कदमताल करने वाले कश्मीरियों के बीच में आयातित कट्टरपंथियों की जमातों को आतंक की दम पर पैवस्त करके हमलों की फसलें पैदा की जा रहीं हैं। गाजा की तरह ही देश के अनेक मदरसों में आतंक की पौध विकसित की जा रही है। कुछ धार्मिक संस्थानों में निजिता की आड लेकर गजवा-ए-हिन्द का षडयंत्र फलफूल रहा है। तार-तार हो चुकी राजनैतिक नैतिकता ने देश को बरबादी की कगार पर पहुंचा दिया है। दबंग, बाहुबली, धनबली, खरीदबली, पहुंचबली, परिवारबली जैसे अनेक लोगों के संसद में पहुंचकर अपने अतीत के चरित्र की बानगी के साथ क्रियाकलाप शुरू कर दिये हैं। पैसा, प्रतिष्ठा और परिचय को सशक्त बनाने की फिराक में रहने वाले अनेक लोगों ने जनप्रतिनिधि का तमगा लगाकर अपनी निर्धारित कार्य योजना पर काम शुरू कर दिया है। ऐसे लोग ही देश-हित के कामों में अडंगा ही नहीं लगाते बल्कि राष्ट्र-द्रोहियों को बचाने का काम भी करते हैं। अतीत गवाह है कि सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगने से लेकर टुकडे-टुकडे गैंग को सुरक्षा कवच देने वाले कभी आतंकियों को मासूम लोगों के गुमराह होने की परिभाषा देते रहे हैं तो कभी नक्सलियों को आंदोलनकारी निरूपित करते रहे हैं। मीर जाफर, मीर कासिम की गद्दारी की कहानियों से चार कदम आगे बढकर फणीन्द्र नाथ घोष ने तो देशभक्त भगत सिंह को अपनी गवाही की दम पर फांसी के फंदे तक पहुंचाया था। इन लोगों को आदर्श मानने वाले अनेक लोग अपनी कारगुजारियां करने से बाज नहीं आ रहे हैं। वर्तमान में संसदीय मर्यादा को तार-तार करने वाले अनेक चेहरे तो संवैधानिक अवमानना की दिशा में नये कीर्तिमान गढने में लगे हैं। कुछ ही समय में उन्होंने संसदीय अनुशासन तोडने का नया रिकार्ड बनाना शुरू कर दिया है। ऐसे में दुनिया के साथ-साथ देश के चारों ओर मडऱाने वाले आतंक को नजरंदाज करना किसी भी हालत में समाचीन न होगा। कट्टरता की फसल को फल लगने से पहले ही नस्तनाबूत करना नितांत आवश्यक है अन्यथा आने वाली पीढियों को समस्याओं के दावनल में पिसना ही होगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
Dr. Ravindra Arjariya
Accredited Journalist