डॉ. शिवा अग्रवाल

एक कहावत है भूख लगी हो तो गूलर भी पकवान लगते हैं। टांटवाला स्कूल में पोस्टिंग हुई तो अलग ही कहानी पता चली गूलर पर भूत। बच्चों की अलग दुनिया है। जब आप नई जगह जाओ तो स्वभाव के अनुसार कुछ बच्चे आपसे दूर दूर रहते हैं कुछ आपसे जल्दी ही मिक्सअप हो जाते हैं। नये स्कूल में आये तीन दिन हुए थे। कुछ बच्चे मुझे आसपास की चीजें दिखाने ले गए। झिलमिल झील के नजदीक बसा टांटवाला प्रकृति का अनुपम उपहार है। दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. कलाम साहब के समय इस क्षेत्र को कंसर्वेशन रिज़र्व फारेस्ट का दर्जा दिया गया था। टांटवाला बेहद खूबसूरत है ओर चारों ओर भरपूर वन सम्पदा है। बात गूलर की हो रही थी। इसी कड़ी में बच्चों ने मुझे स्कूल के पीछे लगा गूलर का पेड़ दिखाया। उस वक़्त गूलर पर फल लगे थे। मैंने फलों का एक गुच्छा तोड़ लिया। जैसे ही मैं फल को खोलने लगा एक बच्चे ने कहा सर यह फल मत खाना इस गूलर पर भूत रहता है। उस भूत को कई लोगो ने देखा है। स्कूल की भोजन माताएं भी बच्चों के सुर में सुर मिलाने लगी। पता चला की बच्चे वहां जाने से कतराते हैं ओर तरह तरह की बातें बनाते हैं। मैंने गूलर का फल तोड़कर खाया ताकि बच्चों में उस निरपराध पेड़ के प्रति संवेदना जगे। मैंने बच्चों से कहा की कुछ ऐसे लोगो का नाम पता बताओ जिन्होंने गूलर पर भूत घूमते देखा हो। अब किसी ने देखा हो तो कोई मिले भी। कपोलकल्पित अफवाहों ने ऐसी स्थिति कर दी थी जिसके चलते उसके नीचे लगे हैंडपम्प पर बच्चे पानी पीने से भी कतराने लगे। मैंने गूलर के इस भूत को जो था ही नहीं भगाने का फैसला लिया। जिससे यहाँ का माहौल डरावना न रहे। बच्चों को कुछ वीडियो ऐसी देखी गई जो यह पुष्ट करती थी की यह सिर्फ अंधविश्वास है उससे ज्यादा कुछ नहीं। समय बीतता रहा ओर गूलर अपनी जगह खड़ा रहा। शायद वह भी इस बात को सुनकर दुखी होता होगा कि सब उस पर भूत होने का लांछन लगाकर किनारा कर रहे हैं। उधर बच्चों एवं ग्रामीणों का अपना विश्वास था। यह भी सच है कि एक बार कोई भ्रम पैदा हो जाए तो उसको ख़त्म करना आसान काम नहीं। साथी शिक्षकों से मन्त्रणा की की किस तरह इस मुद्दे को सुलझाया जाए। 09 नवंबर राज्य स्थापना दिवस नजदीक था। दिमाग़ मेँ एक एक विचार आया क्यों न इस बार कोई ऐसा कार्यक्रम हो जिससे एक पंत दो काज सिद्ध हो जायें। योजना धरातल पर उतरी ओर राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर कैंप फायर विद किड्स कार्यक्रम का आयोजन हुआ। दिन भर स्पोर्ट्स, सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए रात को सांस्कृतिक संध्या के साथ पुरस्कार एवं ख़ाने पीने का कार्यक्रम रखा गया। खास बात यह थी की शिक्षक उस रात विद्यालय में ही रहेंगे। बच्चों ने देर रात तक खूब एन्जॉय किया तथा गांव के बड़े बच्चे एवं उनके अभिभावक भी इस अनूठे कार्यक्रम में शामिल हुए। रात को कार्यक्रम आयोजन एवं रात्रि प्रवास ने कई सारे मिथक तोड़ दिए। हम बच्चों को समझाने में कामयाब रहे की गूलर पर कोई भूत प्रेत नहीं है यह सिर्फ अफवाह ओर भ्रम है। बच्चों के दिलो दिमाग़ से भय जाता रहा। गूलर भी यह देखकर खुश होगा की उसकी छाँव में अब बच्चे हैंडपम्प से पानी पी रहे हैं।
(10 जुलाई 2015 )

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