शेर भी गाय की तरह बैठ जाता था सोमवारी महाराज के सम्मुख
चिमटा पकड़कर जलती हुई धूनी से निकाल दिया था कलकत्ता में मिलने वाला दुर्लभ इंजेक्शन
इस देव भूमि हिमालय में प्राचीन काल से ही साधु संतों ने अलौकिक सिद्धि की प्राप्ति कर लोगों का कल्याण किया है उनके दुःखों को दूर किया है, इन साधु महात्माओं ने अपनी सिद्धि से ऐसे चमत्कार दिखाए,जिन पर आज सहसा विश्वास नही किया जा सकता। कुमाँऊ क्षेत्र को को देव भूमि के नाम से जाना जाता है, कुमाऊँ में जो सिद्ध महात्मा हुए है, उनमें मुख्य रूप से नाग नाथ सिद्धि-ऋद्धि गिरी, मोहन बाबा, रौखड़िया बाबा, खड़खड़िया बाबा, नागा बाबा, नान्तिन महाराज, क्रमशः हेड़ाखान महाराज, सोमवारी महाराज, नीम करोली महाराज आदि के नाम प्रसिद्ध है।
सोमवारी महाराज आज से लगभग 118 वर्ष पहले भीमताल से 25-30 किलोमीटर दूर पदमपुरी में अपने आश्रम में रहते थे, उन दिनों आश्रम के चारों ओर घना जंगल था, बाबाजी के अनेक भक्त थे जो दूर -दूर से महाराज के दर्शनों हेतु आते थे, लेकिन किसी भी भक्त को उनके बारे में जानकारी अधिक नही थी, फिर भी कुछ भक्तों ने मालूम कर लिया था कि बाबाजी पंजाब के रहने वाले थे , बाबाजी के पिताजी जज थे, इतने बड़े घराने में जन्म लेने के बाद भी बाबाजी का मन वैराग्य की ओर झुकने लगा, कहते है कि उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त की थी वे बचपन से ही साधु संतों के संग रहते थे। उनके पिता राम भक्त थे कुछ भक्तों का कहना था कि बाबाजी का असली नाम नीलकंठ था। नीलकंठ यानि बाबाजी को अपनी अदभुत सिद्धि का अहसास था लेकिन उन्होंने इसका आभास किसी को भी नहीं होने दिया, बचपन में ही बाबाजी को ऐसे दिव्य संत के दर्शन जंगल में हुए जिनके मुख में तेज व शांति थी, गर्मी और सर्दी का उनको कोई प्रभाव नहीं पड़ता था उनके सामने शेर भी गाय की तरह बैठ जाता था। बाबाजी इनसे काफी प्रभावित हुए, जिस कारण महाराज को बचपन से ही वैराग्य संसार के प्रति होने लग गया था। कहते है माता की मृत्यु के बाद इनको काफी दुःख हुआ पिता के लाख समझाने के बाद भी बाबाजी ने घर छोड़ दिया। बहुत खोजने के बाद भी जब बाबाजी का कही भी पता नहीं चल पाया। एक दिन जज साहब की कुंडली देख एक ज्योतिष ने कहाँ कि आपका पुत्र जीवित है परंतु उसने संसार त्याग सन्यास ले लिया है और उन ज्योतिष ने उन्हें बताया कि एक ना एक दिन आपकी मुलाकात जीवन में अवश्य होगी , जज साहब ने दो- चार वर्ष बाबाजी की तलाश में लगाए लेकिन जब कुछ भी नहीं चला तो निराश हो उन्होंने पुत्र के जीवित होने की आशा ही छोड़ दी।
यही नीलकंठ, पदमपुरी के आश्रम में सोमवारी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए, सोमवारी महाराज के बारे में कहा जाता था कि वे सभी लोगों को सम भाव से व्यवहार करते थे, चाहे वह अमीर हो या गरीब, कोई अफसर हो या कुली,
एक समय की बात है कि नैनीताल के कमिश्नर का एक ही पुत्र था वह बीमार रहता था, उसकी उम्र तब 14-15 वर्ष की थी उसको असाध्य रोग हो गया था कि वह इंजेक्शन लगाने से ही जीवित था, जो दवा इंजेक्शन से दी जाती थी वह कलकत्ता में किसी बड़े दवा विक्रेता के पास ही मिलती थी, कमिश्नर ने पुत्र के इलाज के लिए एक प्राईवेट डॉक्टर हमेशा अपने पास रखे थे जो हर तीसरे दिन लड़के को इंजेक्शन लगाते थे, वह जब भी टूर पर जाते थे पुत्र को भी अपने साथ ले जाते थे। एक बार कमिश्नर टूर के लिये जा रहे थे तब डॉक्टर साहब ने बताया कि लड़के का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और इंजेक्शन भी दो ही है, कही आपके टूर में देर हो गयी तो इंजेक्शन समाप्त होने में लड़के की जिंदगी से खतरा हो सकता है। टूर में जाना आवश्यक था तो वह बीमार लड़के व डॉक्टर को साथ लेकर टूर पर निकल गये एक इंजेक्शन तो टूर पर लगा दिया था लेकिन कुछ संयोग ऐसा हुआ कि दूसरा इंजेक्शन जल्दबाजी में कमिश्नर की पत्नी से टूट गया, वह घबरा गयी क्योंकि नैनीताल लौटने तक अगर कुछ हो गया तो यह सोच वह घबराकर कमिश्नर के पास जाकर इंजेक्शन टूटने की बात बोल दी यह जान कमिश्नर दो दिन पहले ही लौट गए।
जब वह घोड़े में बैठ कर पदमपुरी के रास्ते वापस नैनीताल लौट रहे थे तो लड़के की तबीयत खराब हो गयी वह बेहोश हा घोड़े से नीचे गिर गया, उसकी तबीयत चिंताजनक हो गयी, कमिश्नर की पत्नी रोने लगी, डॉक्टर का मुँह भी सूख गया, कमिश्नर ने डॉक्टर से पूछा कि अब क्या होगा? डॉक्टर ने कहाँ कि केवल दवा वाले इंजेक्शन से ही जान बचाई जा सकती हैं और वो है नहीं, यह निश्चित था कि दवा ना होने के कारण कुछ भी हो सकता था। यह जान लड़के की माँ जोर -जोर से रोने लगी, रोने की आवाज सुनकर जंगल में घास व लकड़ी काट रही गाँव की महिलाए वहाँ पहुँच गयी और उन्होनें महाराज जी के आश्रम की जानकारी देते हुए बोला कि महाराज अवश्य ही कुछ ना कुछ करेंगे, महिलाओं की बात सुन कमिश्नर गुस्सा हो गया और बोला जिसे डॉक्टर ठीक नहीं कर पा रहा है उसे बाबा क्या ठीक करेगा कमिश्नर ने बाबाजी के लिए कुछ अपशब्द भी कह दिए,इधर बच्चे की तबीयत और भी सीरियस हो गयी, नैनीताल ले जाकर भी क्या करते एक तो वहाँ इंजेक्शन का ना होना और दूसरा वहाँ ले जाने तक तो मर ही जाता, डॉक्टर ने भी अपनी असमर्थता प्रकट कर दी।
पर माँ की ममता जागती है तो वह सब कुछ करने को तैयार हो जाती है वह सीधे बच्चे को उठाकर महाराज के आश्रम में ले आती है वहाँ पुत्र की हालात देख महाराज बोले क्यों वो कमिश्नर व डॉक्टर नहीं आये? वह ताज्जुब में पड़ गयी कि महाराज को कैसे मालूम, थोड़ी देर में कमिश्नर व डॉक्टर दोनों भी आश्रम में पहुँच गए, उन्हें देखते ही महाराज बोले कि क्यों,कमिश्नर अभी तो तू मुझे गाली दे रहा था, अब कैसे आया मेरी कुटिया तक, तब महाराज ने डॉक्टर से पूछा कि बच्चा कैसे ठीक होगा तब डॉक्टर ने कलकत्ता की कंपनी का नाम बता दिया महाराज ने बोला कि दवा कहाँ मिलेगी डॉक्टर बोला कलकत्ता ही मिलेगी, महाराज बोले कितने की आती है? ला पैसे निकाल डॉक्टर ने कुछ रुपये व चार छः आने महाराज को दिए, महाराज ने वह रुपये धूनी में डाल दिए, कमिश्नर, उसकी पत्नी, डॉक्टर और बहुत से भक्तगण यह सब बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे, बाबाजी ने चिमटा पकड़ा और धूनी व राख के बीच कुछ खोजने लगे, क्षण भर में ही महाराज ने जलती हुई धूनी में एक पैकेट निकाला, और डॉक्टर को देते हुए बोले, ये ही है तेरा इंजेक्शन, डॉक्टर ने इंजेक्शन लगाया लड़का स्वस्थ हो गया कमिश्नर की पत्नी महाराज के चरणों में गिरकर माफी माँगने लगी हाथ फैलाकर बोली -बाबा आप ही हमारे बच्चे को ठीक कर सकते हो पहले तो महाराज झल्लाये,फिर बोले एक महीने बाद आना, लेकिन उस कमिश्नर के बच्चे को मत लाना, ये अपने आप को समझता क्या है?
नैनीताल जाकर कमिश्नर की नींद उड़ गयी उसे अभी विश्वास नही हो रहा था कि भयानक आग में दवा का पैकेट कैसे आया
कमिश्नर ने तुरंत उस इंजेक्शन के बारे में उस दिन की विस्तृत जानकारी बैच नम्बर व स्टॉक की जानकारी टेलीग्राम द्वारा पूछी तो जब दो दिन बाद जब कंपनी का जबाब मिला कि उस स्टॉक में कितनी दवा बिकी,और बताया कि हमें आपको यह सूचना देने में आश्चर्य हो रहा है कि ताला लगा अलमारी में रखे इंजेक्शनों में से एक पैकेट गायब है लेकिन उसके पैसे वहाँ रखे हुए पाये गये हैं, यह कैसे हुआ? हम भी नहीं जानते है लेकिन इस मामले में जबरदस्त खोजबीन शुरू कर दी है, उत्तर पड़ते ही कमिश्नर महाराज जी के अनन्य भक्त बन गए और महाराज के जीवन पर एक किताब भी लिखी, इस प्रकार सोमवारी महाराज ने अनेक चमत्कार दिखाने लोक मंगलकारी कार्य भी किए।
एक बार महाराज बदरीनाथ के दर्शन कर ज्योर्तीमठ में थे भक्तों की अपार भीड़ थी, महाराज के पिताजी भी वहाँ आए थे उन्हें जानकारी मिली की कोई सिद्ध महात्मा आए हुए हैं, तो वो भी महाराज के दर्शन करने महाराज की कुटिया में पहुँचे जैसे ही महाराज की नजर पड़ी तो महाराज अपने पिताजी को पहचान गये और फुर्ती से आसन छोड़ उठे और स्वयं प्रणाम करने लगे उपस्थित भक्त भी कुछ ना समझ पा रहे थे, तब महाराज ने सबको अपने पिताजी के बारे में बताया, जज साहब तो उनको गले से लगाकर रोने लगे और बोले तूने तो हमारे गोत्र का उद्धार कर दिया उसके बाद महाराज के पिताजी ने वहाँ भंडारा किया और उस समय उनके पिताजी को ज्योतिष की बात भी याद आ गयी जो उन्होनें कहाँ था कि जीवन में अवश्य ही मुलाकात होगी, इस तरह लोगों की भलाई करते हुए परम पूज्य सिद्ध सोमवारी महाराज पोष शुल्क एकादशी 1919 के दिन पदमपुरी के आश्रम में पदमासन की अवस्था में ही ब्रह्मलीन हो गये..
साभार प्रस्तुति संतोष कुमार बहुगुणा