ताकत दिखाकर दुनिया को झुकाने का षडयंत्र
भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश-दुनिया में अशान्ति का वातावरण निरंतर विस्तार लेता जा रहा है। फ्रांस के हालात बेहद खराब हो चले हैं। वहां की सरकार भी कट्टरपंथियों की जामत के आगे घुटने टेकने का मन बना चुकी है। ऐसे में पोलैण्ड के प्रधानमंत्री माटुस्ज मोराविएकी ने फ्रांस पर व्यंग्य करते हुए कहा कि यूरोप में पोलैण्ड उन देशों में से एक है जहां एक भी मुस्लिम शरणार्थी नहीं है। पोलिश नेता डोमिनिक टार्जिस्की ने पहले ही घोषित कर दिया था कि पोलैण्ड ने जीरो मुस्लिम शरणार्थियों को देश में आने की जगह दी है। यही कारण है कि देश में शांति, खुशहाली और सौहार्य का वातावरण मौजूद है। हम सुरक्षित हैं। हमारे यहां कोई दंगा, आतंकी हमला या तनाव पैदा करने वाला कृत्य नहीं हुआ। उन्होंने आगे कहा कि यह सत्य है कि हमने 20 लाख यूक्रेनियों को शरण दी है जो शान्ति के यहां रह रहे हैं तथा काम कर रहे हैं। पोलिश नेता के वक्तव्य के कुछ समय बाद ही फ्रांस में पुलिस की गोली से 17 वर्षीय मुस्लिम युवक की मौत हुई और पूरा देश सुलग उठा। सुनियोजित ढंग से पूरे फ्रांस में ही दंगे नहीं भडके बल्कि दुनिया के अन्य देशों में रहने वाले मुसलमानों ने आक्रामक विरोध दर्ज करते हुए अपनी शक्ति का मनमाना प्रदर्शन किया। पूर्व नियोजित तैयारियों के साथ दुनिया भर में इस्लाम पर खतरा बताकर भडकाने वाले बयान, वीडियो और संदेश वायरल होने लगे। अल्लाह-हू-अकबर के नारे बुलन्द होने लगे। उन्माद फैलाने वाले दृश्यों को तेजी से प्रसारिक किया जाने लगा है। यूरोप के अधिकांश देश भी अब फ्रांस के हालातों के लिए मुस्लिम और अफ्रीकी शरणार्थियों को ही इसके लिए उत्तरदायी ठहराने लगे हैं। शान्ति का इमाम नाम से चर्चित इमाम तौहीदी ने विगत 09 सितम्बर 2022 को अपने वीडियो संदेश में खुलासा किया था कि इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) अधिकांश मुस्लिम देशों में अपनी गतिविधियां संचालित नहीं कर सका है। इस संगठन ने अमेरिका, यूके, कनाडा और आस्ट्रिेलिया जैसे देशों को केन्द्र बनाकर अपनी गतिविधियों को मूर्त रूप दिया है। इमाम की इस स्वीकारोक्ति और खुलासे के बाद से दुनिया में हडकंप मच गया था परन्तु तब तक देर हो चुकी थी। विश्लेषण में सामने आया है कि धरातल पर आतंकवाद को दो तरह से फैलाया जा रहा है। पहला मुस्लिम देशों में तथा दूसरा मुस्लिम देशों के बाहर। मुस्लिम देशों के बाहर लंदन, फ्रांस, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में अनेक आतंकवादी संगठनों के न केवल बैंक अकाउण्ट है बल्कि उनकी अधिकांश गतिविधियों के संचालन का मुख्यालय भी है। मुस्लिम चरमपंथी संगठनों में से हेजबोल्ला, मुस्लिम ब्रदरहुड आदि का संचालन यूरोपीय देशों से ही हो रहा है। खतरनाक होते हालातों से कुछ दिन पहले ही फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुलए मैंको ने कहा था कि इस्लामिक देश संकट में हैं। वास्तविकता तो यह है कि बोको हराम, अल कायदा और तालिबान जैसी समस्यायें अनेक राष्ट्रों ने स्वयं ही आमंत्रित की हैं। सस्ते मजदूरों के लालच में मुस्लिम देशों के लोगों को अच्छी तनख्वाय, सुविधाओं और सुखद भविष्य का सब्जबाग दिखाये जाते है। वहां के मजदूर आकर स्थानीय महिलाओं से शादियां रचाकर वहां के नागरिक बन जाते हैं। बस फिर शुरू होता है उनका कट्टरता का नंगा नाच। वे मुफ्त में सरकारों की योजनाओं का लाभ लेते हैं। वहां के कानूनों को तोडने के लिए वे कभी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अनर्गल प्रलाप करते हैं तो कभी मानवाधिकारों की दुहाई पर दुनिया का ध्यानाकर्षित करते हैं। आपराधिक गतिविधियों से सुरक्षित रहने के लिए वे कभी संविधान की दुहाई देते हैं तो कभी शरियत कानून का राग अलापते हैं। विदेशों में बैठे उनके कट्टरपंथी आकाओं से उनका सीधा संपर्क रहता है। मुस्लिम देशों से मिलने वाली सहायता का उपयोग आतंकवाद के विस्तार हेतु किया जाने लगता है। फ्रांस की घटना के समानान्तर स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम के मामले को भी तूल दिया जा रहा है। इस्लामिक देशों के संगठन ने सऊदी अरब स्थित जेद्दा मुख्यालय में तो आपात बैठक बुलाकर दुनिया पर दबाव बनाने की पहल शुरू कर दी है। पाकिस्तान ने अपने फटेहाल न देखते हुए मुसलमानों का मसीहा बनकर स्वीडन के विरुध्द संयुक्त राष्ट्र संघ में गुहार लगाई। मोरक्को ने विरोध जताते हुए स्वीडन से अपने राजदूत को अनिश्चितकाल के लिए वापिस बुला लिया है। इस सारे घटनाक्रम के पीछे कुरान के जलाने तथा एक मुस्लिम युवक को गोली लगने का कारण नहीं है बल्कि दुनिया को इस्लाम की ताकत दिखाकर झुकाने का षडयंत्र है। मुस्लिम देशों में गैर मुसलमानों के हालातों पर कभी दुनिया के ठेकेदारों ने गौर नहीं किया। सरेआम गैर मुस्लिम युवतियों को जबरन इस्लाम कुबूल करवाने, अपहरण करके निकाह करने, कत्लेआम करने, सम्पत्ति हडपने, लूटपाट करने, इस्लाम की तौहीनी तथा ईश निन्दा के नाम तुगलकी फरमान से लेकर फतवा तक जारी करने, आतंकित करके इस्लाम कुबूल करवाने जैसी अनगिनत घटनायें हमेशा ही सामने आती रहतीं हैं परन्तु कभी भी संगठित रूप से इस मुद्दे पर गैर मुस्लिम राष्ट्रों ने आवाज ही नहीं उठाई। मानवता, भाईचारा, शन्तिप्रियता जैसे शब्दों को बोलकर उदारता दिखाने वालों की कभी कमी नहीं रही है। यही कारण है कि कट्टरता का नंगा नाच अब चौराहों से लेकर चौपालों तक होने लगा है। विस्तार से समझने के लिए दुनिया की मौजूदा स्थिति को जान लेना आवश्यक है। आज दुनिया में 57 मुस्लिम देश हैं। सन् 2015 में किये गये अध्ययन के अनुसार इस्लाम के अनुयायियों की कुल आबादी 1.7 बिलियन थी जो तब दुनिया का कुल आबादी का 23 प्रतिशत थी। अध्ययन के बाद इसमें बेहद तेजी से बढोत्तरी हुई है। अध्ययन में स्पष्ट किया गया कि इस समूची आबादी में शिया सम्प्रदाय मात्र 12 प्रतिशत के करीब है जबकि शेष सुन्नी सम्प्रदाय के हैं। मध्य एशिया, मध्य पूर्व सहारा, उत्तरी अफ्रीका, अफ्रीका का हार्न के अलावा कुछ अन्य हिस्सों में मुस्लिम अनुयायियों का बाहुल्य है। दुनिया भर की मुस्लिम आबादी का 12.7 प्रतिशत इंडोनेशिया में, 11 प्रतिशत पाकिस्तान में तथा 10.9 प्रतिशत भारत में मौजूद है। अरब देशों तथा मुस्लिम देशों तो इनकी आबादी का बाहुल्य ही है। इन देशों में सीरिया, सूडान, गबन, यमन, अजरबैजान, आइबरी कोस्ट, मोरक्को, ट्यूनीशिया, बहरीन, बुर्किना फासो, अफगानस्तान, गुयाना, गिनी, अल्बानिया, किर्गिस्तान, इराक, टोगो, युगांडा, मारिटानिया, बेनिन, सूरीनाम, ताजिकिस्तान, सेनेगल, मोजाम्बिक, लेबनान, चाड, कैमरून, जार्डन, फिलिस्तीन, कोमोरोस, गिनी-बिसाऊ, मालदीप, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ओमान, मिस्र, कतर, कजाकिस्तान, लीबिया, गाम्बिया, सिएरा लियोन, नाइजर, सोमालिया, तुर्की, बांग्लादेश, ब्रनेई, जिबूती, माली, कुवैत, नाइजीरिया, अल्जीरिया, मलेशिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान, इंडोनेशिया तथा ईरान शामिल हैं। इन देशों में अनेक देश विश्व के अमीर देशों में शामिल हैं जहां से अन्य मुस्लिम देशों को निरंतर मदद पहुंचती है। दुनिया के सम्पूर्ण 204 देशों में से 57 ने अपने राष्ट्र को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया है। वर्तमान समय में ईसाइयों के बाद मुसलमानों की आबादी सर्वाधिक है जिसने अपना डाटावेस तैयार करके अपनी दूरगामी नीतियां निर्धारित कर लीं है। दुनिया में सर्वाधिक ईसाई मतावलम्बियों को होने के बाद भी दूसरी पायदान पर खडी मुस्लिम जमात ने फ्रांस और स्वीडन की घटनाओं मुद्दा बनाकर दुनिया के सामने शक्ति प्रदर्शन का बिगुल फूंक दिया है ऐसे में गैर मुस्लिम समुदायों मुसलमानों व्दार किये जा रहे अत्याचारों को भी दमदार ढंग से उठाया जाना चाहिए अन्यथा आने वाले समय में मुस्लिम समाज के कथित ठेकेदारों की शह पर होने वाली क्रूरता पर लगाम लागना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य होगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।