उत्तराखण्ड में फूलदेई का त्याैहार केवल कल ही नहीं था। हां कल चैत्र संक्राति से प्रारम्भ हुआ है और मासांत तक चलेगा अर्थात पूरे 30 दिन।
यह मास विशेष हाेता है। ये परमात्मा के राम रूप में अवतरण का मास है और नवदुर्गा रूप में आद्यशक्ति के पूजन का मास भी । पूरा माह उत्सव का रहता है। पहले गांव के आवर्जी लाेग ढाेल दमाऊं के साथ गांव गांव में नाच गाना करते थे और मुंहमांगा इनाम पाते थे। एक बड़ी विशेषता यह थी कि इस जाति के लाेग अपने गांव की लड़की (धियाण) के ससुराल उन्हें समृध्दि की शुभकामनाऐं देने जाते थे और फिर वहां सामर्थ्यानुसार बड़ा उत्सव मनाया जाता था। जिसे वड़ाें अर्थात बधाई त्याेहार भी कहा जाता है। इससे गांवाें का आपसी साैहार्द और एक दूसरे से गहरे सम्बन्ध बने रहते थे।
अब ये लाेक परम्परा भी विलुप्त जैसे हाे रही हैं। किन्तु जब ये परम्परा पूरी तरह से जीवित थी ताे ऐसा लगता था कि जैसे सारी धरती फूलाें, काेंपलाें, भंवराें, तितलियाें से खिली हुई है, उसके पर्वत और जंगल भी ढाेल दमाऊं की थाप पर नर्तन कर रहे हैं। और साक्षात परमात्मा भी उसका दर्शक है। और उस नृत्य संगीत में सहभागी है। कमाल की साेच थी हमारे पूर्वजाें की। धन्य-धन्य। नमन है।

डॉ० हरिनारायण जाेशी “अंजान”

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