नव वर्ष 2024 में चले आइए यहां:
हिंदू मान्यता के अनुसार प्रकृति की गोद में बसे इसी मंदिर कभी महादेव और माता पार्वती ने रात्रि बिताई थी.यहाँ का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूँदें भी मुक्ति के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं।

मदमहेश्वर मंदिर ; का महात्म्य चंद्रशेखर जोशी संस्थापक अध्यक्ष मां पीतांबरा श्री बगुलामुखी शक्तिपीठ मंदिर बंजारावाला देहरादून के द्वारा:

देवों के देव महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है, जिसकी हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा मान्यता है क्योंकि यहां पर भगवान शिव के बैल स्वरूप की नाभि की पूजा का विधान है.

मदमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में चौखम्बा पर्वत की तलहटी पर स्थित है. जहां पर जाने के लिए ऊखीमठ से कालीमठ और फिर वहां से मनसुना गाँव होते हुए 26 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है.

उत्तराखंड के पंचकेदार में भगवान शिव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. भोले के भक्त केदारनाथ में बैलरूपी शिव के कूबड़ की, तुंगनाथ में भुजाओं की, रुद्रनाथ में मस्तक की, मदमहेश्वर में नाभि की और कल्पेश्वर में जटाओं की पूजा करके पुण्यफल प्राप्त करते हैं.

हिंदू मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति मदमहेश्वर मंदिर में जाकर भगवान शिव की नाभि का दर्शन और पूजन करता है, उस पर महादेव की असीम कृपा बरसती है, जिसके पुण्य प्रभाव से वह सुखी जीवन जीता हुआ अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है.

उच्च ऊंचाई वाली ग्लेशियर झीलों में से एक, कंचनी ताल मध्यमहेश्वर से लगभग 16 किमी की दूरी पर स्थित है और केवल ट्रेकिंग करके ही पहुंचा जा सकता है। झील समुद्र तल से लगभग 4200 मीटर ऊपर है। ट्रेकिंग मार्ग हिमालय के फूलों और झील के दृश्य प्रस्तुत करता है।

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