कितना व्यापक है सनातन, कितना उदार है हिंदुत्व

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यह बात समझने की है कि हिंदुत्व संकीर्णता से कोशों दूर और व्यापकता का घर है। उसमें भी बहुत अधिक सरलता। वृक्ष को भी देवता मान लिया और उसकी पूजा करने लगे। उसकी छांव में परमात्मा का आशीर्वाद पाने लगे। फलों में, फूलों में देवत्व। घास और लकड़ियों में पवित्रता का एहसास। फसल के लिए खेत खोदने, बोने और फसल काटने से भी पूर्व पूजा अर्चना। परमात्मा से अनुमति। पूजनीय वृक्षों से पत्ते तोड़ने से पहले उनकी स्वीकारोक्ति। पशुओं में भी देवत्व के दर्शन कर लिए। पहाड़ों में, घाटियों में, मैदानों में स्थान स्थान पर देव निवास मान लिया। उसकी पूजा अर्चना करने लगे। और तो और पत्थर को भी भगवान मान लिया। प्राण प्रतिष्ठा कर स्नान करा दिया। गंगा जल चढ़ा दिया। धूप दीप नैवेद्य से पूजा कर दी। कितनी बड़ी आस्था और कितना बड़ा विश्वास। प्राण प्रतिष्ठा वाला पत्थर भक्त और भगवान के बीच का सीधा माध्यम। हाथ पत्थर पर और मन परमेश्वर के चरणो में।
अपने मन में बसी परमेश्वर की तस्वीर को मूर्तियों में डाल दिया। और फिर एक निष्ठा भाव से उसकी पूजा में मगन हो गए। यदि यह भी कठिन हो तो गाय के गोबर का गणेश बना दिया। उस पर दूर्वा घास रख दी और पूजन कर दिया।
धरती की पूजा, जल की पूजा, वायु की पूजा, अग्नि की पूजा, आकाश की पूजा, सूर्य और सभी नव ग्रहों का पूजन। प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों में मातृत्व का प्रत्यक्ष दर्शन करना। पशु और पक्षियों की पूजा। देव वाहनों के रूप मे पशु और पक्षियों की पूजा । उनके दर्शन देवत्व प्राप्ति जैसा। और तो और जहरीले विषधरों की भी पूजा । उनके नाम पर पर्वों और त्योहारों की संरचना। कितना अद्भुत और विशाल है यह सोच कि जीव मात्र की रक्षा किस प्रकार हो। खेत में अन्न काटने से पहले पशु पक्षियो के भरण पोषण की व्यवस्था। शिव की पूजा करो, शक्ति की पूजा करो, चाहे वैष्णव हो जाओ। केवल हनुमान जी को अपना इष्ट मान लो और राम जी को प्रसन्न समझो। गणेश जी की पूजा कर लो और सब देवों को प्रसन्न मान लो। तुलसी और अन्य ऐसे बहुसंख्यक बिटपों को केवल औषधीय पौधा न मान कर देवत्व के रूप में श्रद्धा पूर्वक नियमित पूजन अर्चन गायन और प्रार्थना।
यही नहीं 33 कोटि देवी देवताओं की पूजा भी एक साथ और समान भाव से हो जाती है। शिव शाक्त वैष्णव एक साथ भी और भिन्न-भिन्न मतांतर की पूर्ण स्वतंत्रता भी। अलग-अलग गांव कस्बे और शहरों में अलग-अलग परिवारों के अपने अलग-अलग इष्ट देवता, कुल देवता, ग्राम देवता, क्षेत्र देवता और इसी प्रकार अन्य आराध्य देव हैं जिनकी पूजा अर्चना पूरे तन्मय हृदय से की जाती है। देवताओं के समान ही अपने पूर्वजों की पूजा, उनके लिए अनुष्ठान, तर्पण। स्वर्ग गमन और मोक्ष प्राप्ति के साथ-साथ उनके आशीर्वाद की अपने लिए भी कामना। रास्ते चलते चलते कोई अन्य धर्म समुदाय का धार्मिक स्थल दिखे मिले तो उसकी भी पूजा कर दिया वहां भी शीश झुका दिया। प्रार्थना कर दी । प्रभु दर्शन मानकर संतुष्ट हो गए। कितनी विशालता कितनी उदारता और कितनी स्वतंत्रता । धन्य ।
डॉ हरिनारायण जोशी अंजान

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