जब काल ने युवती के सिगरेट के कश को मौत के मातम में बदल दिया
हत्याकाण्ड : युवक की जान गयी और पति पत्नी को जेल
सोल ऑफ इंडिया, बेलवाल
देहरादून। गुस्सा कभी भी जान पर आफत बन सकता है, दूसरे की भी और खुद की भी। तभी तो कहावत भी बनी है कि अब पछतावत क्या होत, जब चिड़िया चुग गयी खेत। यहां किसी की बेवजह गयी जान जान की पति पत्नी के लिए फिलहाल जान की आफत बन गयी है और उनके पास अब शायद पछतावे सिवा कुछ नहीं है। मामला विपिन रावत हत्याकाण्ड कांड का है। बीते दिवस इनमुल्ला बिल्डिंग के पास घटित हुआ। विनीत अरोडा की पत्नी पार्थेविया को महिला के सिगरेट पीने पर कमेंट पास करना महंगा पडा। जहां एक ओर विपिन रावत की जान गयी वहीं अरोड़ा दंपत्ति को को जेल जाना पड गया।
विपिन रावत की मौत के बाद सभी सकते में है। अगर प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो घटना वाले दिन विपिन अपनी महिला मित्र के साथ गांधी रोड के एक रेस्टोंरेट में खाना खाने के लिए गया था तथा वहीं पर मोहिनी रोड निवासी विनीत अरोडा अपनी पत्नी पार्थेविया के साथ भोजन करने के लिए गया था। खाना खाने के बाद जब विनीत व पार्थेविया बाहर आये तो वहां पर विपिन की महिला मित्र सिगरेट पी रही थी जिसपर विनीत की पत्नी पार्थेविया ने युवती को सिगरेट पीते हुए देखकर उस पर पर कमेंट पास कर दिया यहां से विवाद की शुरूआत हुई और यह विवाद विपिन की हत्या पर जाकर रूका। इस बात का आभास न तो विपिन रावत को था और न ही उसकी महिला मित्र को तथा न ही पार्थेविया व विनीत अरोडा को इसका अभास था कि यहां उन पर काल मंडरा रहा है और मामले को शांत कर यहां से चलता बनना चाहिए। पर ऐसा नहीं हुआ, सब काल की गिरफत में थे और उसने सिगरेट के कश को मौत के मातम में बदल दिया। दून जैसे आधुनिक शहर की निवासी पार्थेविया और मोहिनी रोड जैसे हाई प्रोफाइल इलाके में निवास करने के बावजूद उसने युवती को सिगरेट पीता देखकर उस पर कमेंट पास कर दिया तो इसे समय खराब या काल की चाल ही कहेंगे कि वह कमेंट इतना महंगा पडा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। एक परिवार का चिराग सद के लिए बुझ गया और दूसरा परिवार जेल चला गया। शायद इसीलिए अब लोगों ने दूसरों को नसीहत देना छोड़ दिया है, अब अपना भला सुनने की क्षमता भी हमारे भीतर शायद नहीं रह गयी है। मौज मस्ती ही सबकुछ नजर आती है। कुछ भी हो आज हम जितने भी आधुनिक हो जाएं पर कई लोगों की नजर में महिला वर्ग खासकर युवतियों को सरेआम सिगरेट फूंकते देखा जाना गंवारा नहीं होता, शायद इतना खुलापन हमारी भारतीय संस्कृति आज भी गंवारा नहीं करती।
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