कुचलना होगी लाशों पर शासन करने की कामनायें

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

मानवता की दुहाई देने वाले देशों में धर्म, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग के साथ-साथ नस्लभेद के आधार पर की जाने वाली शोषण की नई परिभाषायें लिखी जा रहीं हैं। भारत में अल्पसंख्यकों पर कथित अत्याचारों की मनगढन्त कहानियां लिखकर, दबाव बनाने का सिलसिला दुनिया के स्वयंभू ठेकेदारों ने लम्बे समय पहले शुरू कर दिया था किन्तु अब उसे युध्द स्तर पर लागू करने की कवायत होने लगी है।
अमेरिका के वैश्विक धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की रिपोर्ट ने भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ घटनाओं में इजाफा को रेखांकित किया है। उसने भारत को ब्लैक लिस्ट में डालने की सिफारिश भी की है। विगत चार सालों से वह भारत विरोधी एजेन्डा चलाते हुए हर बार अपनी रिपोटर््स में उसने जहर उगला है। मुस्लिम और ईसाई मजहबों के विरुध्द काम करने के लिए भारत की वर्तमान सरकार को आडे हाथों लिया है जबकि अमेरिका में जिस तरह से रंगभेद के आधार पर अश्वेत समुदाय को निरंतर कुचला जा रहा है, वह किसी से छुपा नहीं है। सिख समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। विदेशियों पर प्रहार हो रहे हैं। उस दिशा में आयोग मौन रहा। रिपोर्ट को आधार बनाकर विश्वमंच पर भारत के खिलाफ हल्ला मचाने वाले देशों को अमेरिका के कंधे पर रखाकर हथियार चलाने का हर बार मौका दिया जाता रहा है। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को अभियान बनाकर परोसा गया परन्तु परिणाम ढाक के तीन पात ही रहे। वास्तविकता तो यह है कि भारत में मुस्लिम, ईसाई सहित सभी धर्मावलम्बी जितने सुरक्षित, स्वतंत्र और पोषित हैं, उतने किसी अन्य देश में नहीं हैं। पडोसी पाकिस्तान, बंगलादेश सहित अनेक इस्लामिक देशों में तो वहां के अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर बरबरतापूर्ण की अनगिनल घटायें निरंतर हो रहीं हैं। निरीहों पर हो रहे सामूहिक प्रहारों पर वहां की सरकारें मौन धारण कर लेतीं हैं। हिन्दुओं की चीखों को सुनने वाला उन देशों में कोई नहीं है और न ही विश्व के कथित ठेकेदारों के कानों में जूं ही रैंगता है। वहीं भारत में तो अल्पसंख्यकों को सिर पर बैठाकर नाचने वाले हिन्दू मजहब के लोगों की कमी नहीं है। अनेक राजनैतिक दलों तथा कथित समाजसेवियों-बुध्दिजीवियों की जमातें खुलकर टुकटे गैंग तक के समर्थन में खडी हो जातीं है। इन सभी तथ्यों को नजरंदाज करके अमेरिका की दादागिरी को स्वीकारने वाले मुल्कों ने एक बार फिर वहां की कथित रिपोर्ट का हवाला देकर हंगामा करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री तो अक्सर अपने कश्मीरी राग में मुस्लिम शोषण की स्क्रिप्ट पर घडियाली आंसू बहाते रहते हैं। उन्हें पाकिस्तान में गैर मुस्लिम समुदाय का न तो जबरन किया जाने वाला धर्मान्तरण दिखाई देता है और न ही अबलाओं की चीखें सुनाई देतीं हैं। दूसरी ओर रोहिंग्या मुसलमानों ने पूर्व निर्धारित षडयंत्र के तहत भारत में फर्जी तरीके से आमद ही दर्ज नहीं की बल्कि बंगाल के रास्ते देश के कोने-कोने में पसर गये। अनेक शहरों की आबादी अचानक बढती चली गई। सरकारी जमीनों पर अवैध बस्तियों की बाढ सी आ गई। अतिक्रमण को हटाने पहुंचने वाले सरकारी अमले पर हमले होने लगे। विपक्ष का वोट प्रेम जाग उठा। मानवता की कसमें खाईं जाने लगीं। अतिक्रमण को वैध ठहराया जाने लगा। अवैध कब्जाधारियों को सरकारी सुविधायें मुहैया करने की मुहिम चल निकली। ईमानदार करदाताओं के खून-पसीने की कमाई को मुफ्तखोर षडयंत्रकारियों पर लुटवाने के लिए सत्ता सुख की चाहत पालने वाले खद्दरधारी लोगों की जमात वकील बनकर खडी होने लगी। वास्तविकता तो यह है कि विश्व के किसी भी देश में भारत की तरह का मानवतावादी वातावरण देखने को नहीं मिलता है जहां पर कट्टरता के पर्याय बनाकर ठूसे गये विदेशियों को भी संविधानिक संरक्षण के अलावा खद्दरधारियों का खुला समर्थन प्राप्त हो। ऐसे देश पर अमेरिका की शातिराना रिपोर्ट को झूठ के पुलन्दे के अलावा महात्व नहीं दिया जाना चाहिए। भारत को छोडकर समूची दुनिया में कट्टरता का नंगा नाच हो रहा है। बहुसंख्यकों के जुल्मों तले अल्पसंख्यक कुचले जा रहे हैं। वर्चस्व की जंग में जीवन की आहुतियां दी जा रहीं है। जमीन के टुकडों पर खून की इबारत लिखने वाले परमाणु हथियारों के जखीरे तैयार किये जा रहे हैं। गुलाम बनाने की गरज से क्रूरताओं के अन्तहीन अध्याय में नित नये संवाद जोडने वाले खुलकर ठहाके लगा रहे हैं। आक्रोशित करने वाले दृष्टांतों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करके जन्नत के सुख की लालसा पैदा की जा रही है। संसार से सुख, सहकार और सौहार्द का पलायन होता जा रहा है। चारों ओर मारकाट, धमाके और दहशत का माहौल फैला है। दूसरों पर शासन करने की नियत से नियंत्रित होने वाले लोग अब कट्टरता को हथियार बनाकर उपयोग में ला रहे हैं। ऐसे में कुचलना होगी लाशों पर शासन करने की कामनायें अन्यथा सांसों के सौदागरों के मंसूबे पूरे होते देर नहीं लगेगी।
अल्पसंख्यक की वास्तविक परिभाषा, परिस्थिति और परिवेश को विश्लेषित किये बिना उस पर हल्ला मचाना निश्चय ही षडयंत्र की परिधि में प्राप्त होने वाला परिणाम ही होगा। अमेरिका हमेशा से ही भारत के विरोध में विष वमन करता रहा है। उसके इस अभियान में ब्रिटेन जैसे अनेक राष्ट्रों ने भी कन्धा लगाने का काम किया है। उपकरण के रूप में पाकिस्तान जैसे मुट्ठीभर देशों का हमेशा से ही उपयोग होता रहा है। अंग्रेजों की सोची समझी चाल को, देश में उनके पालतू सिपाहसालारों ने स्वाधीनता के बाद संविधान के रूप में स्थापित कर दिया था, जो आज तक नासूर बनकर बह रहा है। दुनिया की आवाम यह सभी चालें समझ चुकी है तभी तो भारत एक बार फिर विश्वगुरु के सिंहासन की ओर बढ चला है जबकि नागरिकों की एक बडी संख्या आज भी व्यक्तिगत लाभ के दायरे से बाहर नहीं निकल पाई है। यही कारण है कि देश में लालच, लाभ और लोलुपता के मोहपाश में फंसे लोग तत्काल मिलने वाले फायदे को ही जीवन का लक्ष्य मान बैठते हैं। दूरदर्शिता, दीर्घकालिक परिणाम और देशभक्ति के आधार पर निर्णय लिये बिना राष्ट्र के आन्तरिक हालातों में गुणात्मक सुधार आना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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