आखिर कहां से आया ‘लिट्टी-चोखा’

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‘लिट्टी-चोखा’ कैसे बन गया बिहार की पहचान….
हमारे देश के व्यजनों की खुशबू व चटकारे विश्व के हर कोने में प्रसिद्ध है। हजारों जायकेदार भारतीय व्यंजनों का मेन्यू दुनियाभर के हर महंगे होटल में बड़े शौक से पेश किए जाते हैं। ऐसे में लिट्टी-चोखा की लोकप्रियता से भला कौन किनारा कर सकता है। जी हां, चाहे वह कोई मजदूर हो या बड़े पोस्ट का अधिकारी, हर कोई लिट्टी चोखा का लुत्फ उठाना चाहता है। वैसे तो लिट्टी-चोखा देश ही नहीं, बल्कि दुनिया विदेशों में भी पसंद किया जाता है। यह बिहार का लोकप्रिय व्यंजन है, लेकिन यह व्यंजन आपको दुनिया के हर हिस्से में मिल जाएगी। लिट्टी-चोखा एक ऐसा व्यंजन है, जो परंपरा, स्वाद और सांस्कृतिक विरासत की कहानी को दर्शाता है। इस डिश को सफर का साथी भी कह सकते हैं। लोग लंबी यात्रा के दौरान लिट्टी जरूर ले जाते हैं, इसे पैक करना और खाना दोनों आसान रहता है। इसे चोखा के अलावा आचार या चटनी के साथ भी खा सकते हैं। कई लोग तो केवल लिट्टी खाना ही पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, आखिर लिट्टी-चोखा बनाने की शुरुआत कैसे हुई? तो चलिए जानते हैं इसकी रोचक कहानी।
मगध काल में हुई लिट्टी-चोखा की शुरुआत
माना जाता है कि लिट्टी-चोखा बनाने की शुरुआत मगध काल में हुई। मगध बहुत बड़ा साम्राज्य था, चंद्रगुप्त मौर्य यहां के राजा थे, इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी । जिसे अब पटना के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि पुराने जमाने में सैनिक युद्ध के दौरान लिट्टी-चोखा खाते थे। यह जल्दी खराब नहीं होती थी। इसे बनाना और पैक करना काफी आसान था। इसलिए सैनिक भोजन के रूप में इसे अपने साथ ले जाते थे। 1857 के विद्रोह में भी लिट्टी-चोखा खाने का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई के सैनिक भी लिट्टी चोखा खाना पसंद करते थे। यह व्यंजन अपनी बनावट के कारण युद्ध भूमि में प्रचलित हुआ। सैनिकों को इसे खाने के बाद लड़ने की ताकत मिलती थी।
मुगल काल से भी जुड़ा है लिट्टी-चोखा।
लिट्टी-चोखा का जिक्र मुगल काल में भी मिलता है। मुगल रसोइयों में नॉनवेज ज्यादा प्रचलित था। ऐसे में लिट्टी मांसाहारी व्यंजनों के साथ भी खाया जाता था। समय के साथ लिट्टी चोखा को लेकर नए-नए प्रयोग होते गए। आज लिट्टी चोखा के स्टॉल हर शहर में दिख जाते हैं। यह खाने में स्वादिष्ट तो होता ही है, साथ ही सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

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