विश्वास के सिंहासनों से षडयंत्रों का शंखनाद

0

भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश को धर्म के नाम पर बांटकर स्वार्थ पूर्ति के प्रयास निरंतर तेज होते जा रहें। लोकसभा के चुनावों की बयार चलते ही विश्वास के सिंहासनों से षडयंत्रों का शंखनाद होने लगा है। कहीं कल्कि पीठ के पीठाधीश्वर कलयुग की काल गणना करके परमात्मा के अवतरण की घोषणा कर रहे हैं तो कहीं कर्नाटक की कांग्रेस सरकार मंदिरों पर टैक्स लगाने के लिए कर्नाटक हिन्दू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती संशोधन विधेयक 2024 को विधान सभा में पास करती है। कहीं असम की भाजपा सरकार मुस्लिम मैरिज एण्ड डिवोर्स एक्ट 1935 को समाप्त करती है तो वहां के मुस्लिम नेता शरीयत कानून के अनुसार ही सामाजिक व्यवस्था मानने की घोषणा करते हैं। कहीं मुस्लिम लीग के फरमान जारी होते हैं तो कहीं खुलेआम गजवा-ए-हिन्द को इस्लाम का अभिन्न अंग मानने के फतवे जारी होते हैं। कहीं हिन्दू राष्ट्र की मंचीय घोषणा होती है तो कहीं मिशनरी के व्दारा लालच के सब्जबाग दिखाये जाते हैं। चौराहों से लेकर चौपालों तक चर्चाओं का बाजार गर्म है। कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु में बैठकर मुख्यमंत्री सिध्दारमैया ने कांग्रेस के आलाकमान के इशारे पर हिन्दू मंदिरों को मुगुलकालीन जरिया कर जैसे चाबुकों से लहूलुहान करने हेतु विधान सभा में विधेयक पेश किया और संख्या बल के आधार पर पास भी कर लिया परन्तु विधान परिषद में भाजपा के पास अधिक सदस्य होने के कारण उसे अन्तिम रूप नहीं दिया जा सका। यह वही पार्टी है जिसके आलाकमान राहुल, सोनिया, प्रियंका गांधी चुनावी काल में दर-दर गली-गली मंदिरों में माथा टेककर हिन्दू मतदाताओं के वोट बटोने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वहीं असम की राजधानी दिसपुर में आसन जमाये मुख्यमंत्री डा. हेमंत विस्वा ने अपनी पार्टी के मुखिया के संकेत पर मुसलमानों के विवाह और तलाक की परम्परागत व्यवस्था की कानूनी मान्यता समाप्त कर दी। इस हेतु वहां के मंत्री जयंत मल्लाबरुआ ने घोषणा करते हुए कहा कि अब मुस्लिम विवाह और डिवोर्स से जुडे सभी मामले स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सुलझाये जायेंगे। दूसरी ओर इसका विरोध करते हुए असम में आल इण्डिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के मुखिया बदरुद्दीन अजमल ने मोर्चा खोल दिया जिसे आगे बढाते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा कि मुस्लिम सिर्फ शरीयत कानून को ही मानेगा। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद शहर में स्थापित दारुल उलूम मदरसा ने गजवा-ए-हिन्द को डंके की चोट पर मान्यता देते हुए फतवा जारी किया है। फतवे में कहा गया है कि भारत पर आक्रमण करने के दौरान मरने वाले महान शहीद कहलाए जायेंगे और उन्हें जन्नत नसीब होगी। यह सब कुछ देश के अन्दर बैठकर दबंगी से सोशल मीडिया की साइट पर किया जा रहा है ताकि मुसलमानों के अन्दर धार्मिक उन्माद भडकाया जा सके। इस हेतु सुन्न-अल-नसा नामक पुस्तक का जिक्र करते हुए हजरत अबू हुरैरा की हदीस का हवाला दिया गया। उसमें कहा गया कि अल्लाह के संदशवाहक ने भारत पर हमले का वायदा किया था। उन्होंने कहा था कि अगर मैं जिन्दा रहा तो इसके लिए अपनी खुद की और अपनी संपत्ति की कुर्बानी दे दूंगा। मैं सबसे महान शहीद बनूंगा। वहीं अनेक स्वयं भू हिन्दू धर्मगुरुओं के व्दारा भी हिन्दू राष्ट्र की घोषणा खुले मंचों से की जा रही है। लोगों की निजिता को सार्वजनिक करके हाल ही में लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर पहुंचने वाले ऐसे धर्मगुरु अक्सर अपने विवादास्पद कृत्यों, वक्तव्यों और संवादों से विष पौध ही रोपते रहते हैं। हिन्दू राष्ट्र का प्रचार भी गजव-ए-हिन्द की तरह ही माना जा रहा है। अन्तर केवल सोच का है। हिन्दुओं की आस्था केवल समस्या के समाधान तक ही सीमित होती है जिसे अस्थाई कहा जा सकता है परन्तु मुस्लिम आस्था को कट्टरता के रूप मे स्थापित करने के निरंतर प्रयास होते रहते हैं। नेटवर्किंग की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था के कारण ही हल्व्दानी काण्ड के मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक को लम्बे समय तक हथकडी पहनाना सम्भव नहीं हुआ। वह सुरक्षित इस्लामिक नेटवर्क के कारण ही अनेक राज्यों में अपने लोगों के घरों में न केवल ठहरा बल्कि पैसे, वाहन और अन्य संसाधन प्राप्त करता रहा। ऐसा ही कृत्य एक हिन्दू गायक ने विवादास्पद बयान देने के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए बुंदेलखण्ड में नव प्रचारित धार्मिक स्थान के समीप आश्रय लेकर किया था। देश के गरीब इलाकों में मिशनरी व्दारा लालच का सहारा लेकर निर्धन परिवारों को धर्म परिवर्तन की ओर बढाया जा रहा है। गोरों के शासनकाल के मनमाने आवंटन आज तक यथावत मालिकाना हक के रूप में स्थापित हैं जिन्हें स्वाधीनता के अनुबंध के आधार पर तत्कालीन कथित नेताओं ने मूर्त रूप देने का काम किया था। अनेक स्थानों पर तो चिकित्सालय, शिक्षालय जैसी संस्थायें आज भी आम लोगों पर लागू होने वाले कानून नहीं मानतीं हैं। विशेषाधिकारों की दुहाई पर काम करने वाले कभी मानवाधिकरों की ढाल खडी कर देते हैं तो कभी अभिव्यक्त की आजादी पर संसद में बाबरी मस्जिद जिन्दाबाद के नारे बुलंद करते हैं। यह कारक लोक सभा के चुनाव काल में सुनामी की तरह ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं ताकि अंध श्रध्दा को प्रचारित करके वोट बैंक पर डाका डाला जा सके। इन प्रयासों को असफल करने के लिए आम आवाम को स्वयं आगे आना पडेगा अन्यथा आस्था के मनगडन्त मायनों को सत्ता की परिभाषा बनाने वाले अपने षडयंत्र से भाई-भाई के बीच खूनी जंग छिडवाने का मंसूबा पूरा कर लेंगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

Share