शाश्वत् धर्म की पहचान से ही अलगाव तथा उससे जन्मे आतंकवाद का अंत सुनिश्चित होगा।

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देहरादून। श्रीमद् देवी कथा के सप्तम (समापन) दिवस पर सद्गुरू आशुतोष महाराज की शिष्या भागवताचार्या कथा व्यास साध्वी अदिति भारती ने बताया कि शाश्वत् धर्म की पहचान से ही अलगाव तथा उससे जन्मे आतंकवाद का अंत सुनिश्चित होगा। ब्रह्म्ज्ञान, पूर्ण सद्गुरू द्वारा प्रदत्त वह सनातन भारतीय तकनीक है जिसे प्राप्त कर अहम् की दीवारंे गिरती हैं और माँ भगवती का दिव्य दीदार हुआ करता है। देवी का साक्षात्कार ही मनुष्य जीवन को महोत्सव बना देता है, माँ का अवतरण प्रत्येक युग में हुआ करता है। आतंकवाद का अंत करने हेतु ही माँ काली ने अवतार धारण किया था। कार्यक्रम में भजनों की रसपूर्ण प्रस्तुति से भक्तजनों को अभिभूत करते हुए मंच पर उपस्थित संगीतज्ञों द्वारा अनेक मर्मस्पर्शी भजनों का गायन किया गया। सुमधुर गढ़वाली भजन के साथ-साथ माता मनसा और महाकाली की वंदना में अनेक सुन्दरतम भजनों को प्रस्तुत किया गया।
भजनों का सारसंक्षेप प्रस्तुत करते हुए मंच का संचालन साध्वी विदुषी रूचिका भारती जी के द्वारा किया गया।
समापन दिवस की कथा में दीप प्रज्जवलित करके शुभारम्भ करने हेतु अनेक गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित हुए। कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तरखण्ड हरीश रावत, प्रदेश प्रवक्ता भाजपा उत्तराखण्ड हेमंत द्विवेदी, रिटायर्ड मेजर जनरल कुंवर दिग्विजय सिंह (वी.एस.एम.), जी.एस. पांडे (आई.एफ.एस.) उत्तराखण्ड वन विभाग, पुष्पा बड़थ्वाल पूर्व पंचायत सदस्य इत्यादि महानुभावों ने शिरकत की। आज के कथा प्रसंग में शुम्भ-निशुम्भ के अंत की गाथा का वर्णन करते हुए साध्वी ने बताया कि अहंकार रूपी इन दैत्यों का अंत करने के लिए माता भगवती ने माँ काली का रूप धारण किया और रक्तबीज नामक आतंकी सेनापति का अंत कर शुम्भ-निशुम्भ को भी समाप्त कर दिया। यह रक्तबीज कोई ओर नहीं बल्कि आज भी समाज को आतंकित करने वाला आतंकवाद ही है, इसका अंत करने के लिए एक बार फिर महाकाली का प्रकट्ीकरण मानव के अतंस में करना होगा जो कि आतंकवादी नकारात्मक सोच का समूल अंत कर दे। सद्गुरू ही ब्रह्म्ज्ञान प्रदान कर उस महाकाली को एक मानव के भीतर प्रकट करते हुए उसकी मानसिकता का समूल रूपान्तरण कर देते हैं। साध्वी जी ने बताया आशुतोष महाराज जी ने सन् 1980 के दौरान इसी ब्रह्म्ज्ञान की खड़ग से पंजाब के युवाओं में पनप रहे आतंकवाद के बीजों का अंत कर दिया और उन्हें आतंकवाद से विलग कर समाज सुधार की तरफ मोड़ दिया।
माँ गायत्री की महिमा का बखान करते हुए कथा व्यास जी ने कहा कि माँ गायत्री वह आदि नाम है जिससे यह सम्पूर्ण जीवन तंत्र स्पंदित है, माँ का शाश्वत् नाम अजपा कहते हुए उन्होंने कहा कि यह आदि नाम शब्दों तथा लिपि से परे है, यह निरंतर हमारी श्वांसों में चल रहा है, इस आदि स्पन्दन से जुड़कर ही समाज में व्याप्त भावों की अनावृष्टि का अंत सम्भव है। एक पूर्ण सद्गुरू ही मानव को उसकी सांसों में चल रहे इस अजपा जप गायत्री से परिचित कराते हैं।

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