जोशीमठ के भविष्य पर स्वामी शिवानंद ने उठाये सवाल

0

उत्तराखंड वासियों पर को ठहराया जिम्मेदार

हरिद्वार। जोशीमठ आपदा पर मातृ सदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि अभी जोशीमठ की अवस्था से अधिकांश लोग वाकिफ़ हैं । वहां भू-धसाव हो रहा है, मकान फट रहे हैं, ज़मीनें फट रहीं हैं, रोड पर दरार हो रहा है । कब जोशीमठ धंस जाएगा, यह किसी को पता नहीं । कारण ? अब प्रशासन को यह मानने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है कि जो नीचे से सुरंग जा रही है, उसी के चलते जोशीमठ की यह अवस्था है, और अब कहना कठिन है कि जोशीमठ बचेगा या नहीं ? अब प्रश्न उठता है कि मातृ सदन इस बात को कई वर्षों से उठा रही है, सानंद जी जैसे वैज्ञानिक ने इन परियोजनाओं को बंद करने की बात कही थी । उसमें एक तपोवन विष्णुगौड़ परियोजना भी थी । यदि उसी वक़्त इस परियोजना को बंद कर दिया गया होता, तो आज यह अवस्था नहीं आती । इसी बात के लिए स्वामी सानंद जी को मार दिया गया, ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद जी के 194 दिन के अनशन के दौरान जो प्रधानमंत्री की ओर से वादा किया गया था, उसको पूरा नहीं किया गया । उसके बाद साध्वी पद्मावती जी तपस्या पर बैठीं, लेकिन उन्हें भी विष देकर व्हीलचेयर पर बैठा दिया । तो इस ढंग से पाप पर पाप किये जा रहे हैं और अभी तक शासन-प्रशासन को इसकी चेतना नहीं हो रही है ? इतना ही नहीं, इसमें उत्तराखंड वासियों का भी दोष है । जब आवाज़ किसी संत के द्वारा उठता है, किसी आश्रम के द्वारा उठता है, जो आज जो जोशीमठ के लोग उत्तेजित होकर रोड पर निकल आए, यदि उस समय निकल आते, तो आज यह स्थिति नहीं होती । अभी भी जोशीमठ में प्रशासन ने अग्रिम आदेश तक अस्थायी रूप से निर्माण कार्य बंद किये हैं, फिर क्या पता आगे खोल दें ? और सबसे बड़ी बात है कि आज के इंजीनियर सरकारी आदेश पर काम करते हैं । IIT Consortium को 7 करोड़ रुपये में गंगाजी पर रिसर्च करने के लिए दिया गया । इनके सुझाव को सरकार के खरीदे गए मात्र 3-4 इंजीनियर द्वारा काट दिया गया, और सरकार ने उन्हीं को मान लिया । जब देश की व्यवस्था ऐसी हो जाएगी, पहले नीचे से सुझाव जाते थे, तब ऊपर कोई काम होता था, लेकिन अब ऊपर से आदेश होता है, तद्नुसार सुझाव भेजे जाते हैं, चाहे वो इंटेलिजेंस हो, या इंजीनियरिंग विभाग हो । इसलिए पुनः यह कहना आवश्यक है, आप मातृ सदन की आवाज़ को पूर्व में भी देख लें, जितने भी निर्माणाधीन या निर्मित बांध हैं गंगाजी पर, उन सबको तत्काल रोक दें, और जो निर्मित हैं उन्हें धीरे धीरे ‘decommission’ करें । इधर गंगा में खनन की विभीषिका को देखिए – राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 5 के तहत आदेश है, लेकिन हाई कोर्ट में दलील दी जा रही है कि ‘Illegal Mining’ पर प्रतिबंध है ! यह अत्यंत शोचनीय है । ‘Illegal Mining’ पर प्रतिबंध लगाने के लिए धारा 5 लगाया जाएगा ? इस दलील के लिए सरकार बड़े-बड़े वकील खड़ा कर रही है । ऐसे में पता नहीं कब NMCG के अधिकारियों को न खरीद लें जैसे CPCB के अधिकारियों को खरीद लिया,और यदि ऐसा कुछ होता है तो बड़ी विचित्र बात हो जाएगी । तो यदि उत्तराखंड को बचाना हो तो इन दरिंदों से बचाना होगा, इन भ्रष्ट नेताओं से बचाना होगा, जिन इंजीनियरों ने इस प्रोजेक्ट का सुझाव भेजा था और कहा था कुछ नहीं होगा, उन इंजीनियरों पर पहले एक्शन हो क्योंकि यहाँ काम हो जाता है, लेकिन उसके लिए जो उत्तरदायी संस्था है, उसके लिए कुछ नहीं कहा जाता है । 2013 में इन्हीं परियोजनाओं को बंद करवाने के लिए जब मातृ सदन टोक हड़ताली गांव में थी, तब इन्हीं NTPC के गुंडों ने हमें घेर लिया था ।
पहले ये देव नगरी में छोटी सी छोटी बात से लोग अनुमान लगा लेते थे कि देव या ईश्वर या प्रकृति क्या चाह रही है, वहाँ अब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है । तो यदि उत्तराखंड में हो रही त्रासदियों से बचना है, जो मातृ सदन से जो-जो आवाज़ उठ रही है, उसका अक्षरशः पालन करें, वरना गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share