स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दोनों अंतरिक्ष यात्रियों का किया आभार और अभिनन्दन

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💥अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर का धरती पर अभिनन्दन
💥परमार्थ निकेतन में अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर की सुरक्षित घर वापसी हेतु किया विशेष यज्ञ
✨स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर को घर वापस लाने हेतु किये इंतजाम के लिये एलन मस्क और राष्ट्रपति ट्रंप को दिया धन्यवाद

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज एक ऐतिहासिक अवसर पर परमार्थ निकेतन में एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर की अविश्वसनीय यात्रा और उनकी साहसिकता को सम्मानित किया गया। स्वामी जी ने उनके दीर्घकालिक संघर्ष और धैर्य की सराहना करते हुये कहा कि उन्होंने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर 9 महीने बिताए। यह उन दोनों वैज्ञानिकों की अदम्य इच्छाशक्ति और समर्पण के कारण ही सम्भव हो सका।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमारी सोच और जीवन जीने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। अंतरिक्ष के अज्ञात और रहस्यमय क्षेत्र में कदम रखना, यह कोई साधारण कार्य नहीं है। सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर जैसे वैज्ञानिकों ने केवल अपने देश का नाम ही नहीं रोशन किया, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया।
स्वामी जी ने यह भी कहा कि इन वैज्ञानिकों की यात्रा केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि ही नहीं है, बल्कि यह समर्पण, साहस और धैर्य की पराकाष्ठा का प्रतीक भी है। 9 महीने तक अंतरिक्ष में रहते हुए इन वैज्ञानिकों ने जो कठिनाइयां झेलीं, वह किसी के लिए असाधारण है। इसके बावजूद, उन्होंने न केवल अपनी उम्मीदें बनाए रखीं, बल्कि नये अनुसंधानों और खोजों के जरिए वैज्ञानिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने इस बात पर जोर दिया कि विज्ञान और अध्यात्म दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा, अध्यात्म व विज्ञान केवल भौतिक पदार्थों और तकनीकी विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर के ज्ञान और चेतना का विस्तार भी है। सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर ने जो कुछ भी हासिल किया, वह उनकी कठिनाइयों से पार पाने की मानसिक शक्ति और विश्वास का परिणाम है।
स्वामी जी ने भारतीय दर्शन के योग और ध्यान को भी वैज्ञानिक कार्यों में जोड़ते हुए यह कहा कि यदि हम आंतरिक शांति और समर्पण के साथ कार्य करें, तो कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। यह ठीक उसी तरह है जैसे एक योगी अपनी साधना में लगकर कठिनतम कार्य को भी सहज बना लेता है।
स्वामी जी ने बताया कि यह विशेष यज्ञ केवल सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर को सम्मान देने के लिए ही नहीं था, बल्कि यह समाज में वैज्ञानिक सोच और परिश्रम के महत्व को भी रेखांकित करने के लिए भी है। आज के समय में जब हम हर क्षेत्र में निरंतर विकास की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे में हमें धैर्य और साहस को प्रेरणा बनाने की जरूरत है। सभी अपने जीवन में भी कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहें और हमेशा अपने कर्तव्यों को सर्वोत्तम तरीके से निभाएं।
स्वामी जी ने कहा कि जैसे सुनीता विलियम्स और बटच विलमोर ने अंतरिक्ष में अपनी यात्रा पूरी की, वैसे ही अब हमें पृथ्वी पर भी नये वैज्ञानिक प्रयासों का स्वागत करना चाहिए। इन वैज्ञानिकों ने न केवल अपनी यात्रा से नया ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए नई दिशा भी दी। उनका यह कार्य एक प्रेरणा है, जिसे आने वाली पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी।
स्वामी जी ने यह भी कहा, हमारे वैज्ञानिक कार्य और मानवता के प्रति समर्पण हमें यह सिखाता है कि अगर हम सच्चे मन से अपने काम में लगे रहें, तो कोई भी मुश्किल हमें रोक नहीं सकती। उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि वे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और मानवता के इस संगम में योगदान दें और अपने देश और पूरी दुनिया को महान बनाने के लिए अपने कर्तव्यों को निभाएं।
हमारे पास तकनीकी ज्ञान और विज्ञान है, लेकिन अगर हम अपने आंतरिक संसार को शुद्ध नहीं करेंगे, तो हम बाहरी दुनिया में वास्तविक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। हम सब को मिलकर इस संसार में शांति, समृद्धि और धैर्य की स्थापना करनी है ताकि समाज को एक सकारात्मक दिशा प्राप्त हो सके।

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