परा-विज्ञान के सामने अस्तित्वहीन होता तर्क का तिलिस्म

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
परा-विज्ञान के सिध्दान्तों को संदेहास्पद बनाकर सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने की गरज से सनातन पर एक बार फिर प्रश्नचिन्ह अंकित करने के प्रयास किये गये। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित श्री बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के शिष्य मण्डल ने विश्वव्यापी सनातन जागरण अभियान के अन्तर्गत महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस आयोजन में सनातन के प्रेरणादायक संदर्भों से लेकर परा-विज्ञान के प्रयोगों के माध्यम से समस्याग्रस्त लोगों को समाधान प्रदान किया गया। आयोजन की समाप्ति के बाद अंधश्रध्दा उन्मूलन समिति के सुप्रीमो ने देश-विदेश में चर्चित की मंशा तथा किन्ही खास कारणों से विश्वविख्यात पीठाधीश्वर जी पर अज्ञानता भरी टिप्पणी ही नहीं की बल्कि उन्हें सनातन की शक्ति दिखाने की चुनौती देकर देश के सौहार्दपूर्ण वातावरण को बिगाडने का प्रयास किया। जब उनकी चुनौती को पीठाधीश्वर जी व्दारा स्वीकार करके अपने अगले रायपुर वाले कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित किया तो वे बगलें झांकने लगे। सार्वजनिक स्थल पर पहुंचने से उन्हें डर लगने लगा। चुनौती देने के बाद भी वे वहां नहीं पहुंचे। इस प्रकरण पर संसार भर से प्रतिक्रियायें आने लगीं। सस्ती लोकप्रियता और सनातन को नस्तनाबूत करने के लिए विदेशी इशारों पर हो रहे इस तरह के कृत्यों को गहराई से समझने के लिए अतीत के गहरे समुद्र में डुबकी लगाना आवश्यक होगी। याद होगा कि अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में विश्व की पुरातन संस्कृति को अस्तित्वहीन करने की दूरगामी योजनाओं को लागू किया था। स्वाधीनता के बाद हमारे संविधान निर्माताओं ने गोरों की गोद में बैठकर उनकी योजनाओं को ही कानून बनाकर थोप दिया। देश की सांस्कृतिक विरासत धीमी गति से काम करने वाले इस जहर से सनै: सनै: मरती चली गई। अंग्रेजों के इशारे पर थोपे गये संविधान के प्राविधानों के तहत अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने के नाम पर मनमाने आचरण की छूट मिल गई, विभिन्न विभागों की आंतरिक संरचना के सहित उच्च और उच्चतम न्यायालयों के दरवाजे गैर अंग्रेजी वालों के लिए बंद कर दिये गये, अपराधों से जुडे विभिन्न कारकों हेतु घातक व्यवस्था दी गई, शिक्षा की नीतियों में अंग्रेजियत का पड़ला भारी रहा, स्वास्थ्य में अंग्रेजी पध्दतियों तले परम्परागत शक्तिशाली उपचार क्रियायें सिसकती रहीं, सम्प्रदाय के आधार पर आराधना के केन्द्रों की शासकीय व्यवस्था का बटवारा कर दिया गया, ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो सनातन पर कुठाराधात करने वालों के कृत्यों को चीख-चीखकर उजागर कर रहे हैं। लम्बे समय तक अंग्रेजों की दूरगामी योजनाओं के अनेक चरण लागू होते चले गये। आपातकाल के दौरान बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक बनाने हेतु उन पर नसबंदी थोप दी गई। सरकारी डंडे के बल पर जबरजस्ती बधियाकरण कराया गया। इसी श्रंखला में आरक्षण जैसे भेदकारक व्यवस्थाओं को आगे बढाया गया। संविधान से इतर गैर-संवैधानिक षडयंत्र के तहत नक्सलियों के गिरोह पैदा किये गये। आदिवासी नक्सलियों के समानान्तर शहरी नक्सलियों की फौज को संरक्षण के लिये तैयार करके कथित बुध्दिजीवियों का तमगा दे दिया गया। एक सरकार ने आरक्षण की तलवार से जातिगत वैमनुष्यता फैलाने का धरातल तैयार किया तो दूसरी ने सम्प्रदायगत सुविधाओं को हवा दी। यह सब केवल परा-विज्ञान की अतुलनीय सामर्थ से संपन्न सनातन को अस्तित्वहीन करने की अंग्रेजों की योजनाओं का ही क्रियान्वयन था। कभी इस्लाम को ढाल बनाकर भाई को भाई से लडवाने की कोशिश की गई तो कभी जातिगत विभेद पैदा करके अन्तर्कलह पैदा की गई। आंकडों के अनुसार देश में आज भी गोरों व्दारा कब्जाई गई बेहिसाब सम्पत्ति देश के प्राइम लोकेशन पर मौजूद है जिसे स्वाधीनता के बाद राजसात नहीं किया गया था बल्कि गुलामी के दौर के विदेशी कब्जाधारियों को मालिकाना हक भी दे दिया गया, जो आज तक जारी है। ऐसा ही देश के काले अंग्रेजों की सम्पत्तियां भी गोरों के देश में मौजूद है ताकि विसम परिस्थितियों में वे वहां जाकर आश्रय ले सकें। देश के घोटोले बाजों के लिए आज भी गोरों का देश किसी स्वर्ग से कम नहीं है तभी तो ज्यादातर घोटोलेबाज उस ओर रुख करते हैं। सनातनी दरबार पर अंगुली उठाने वालों ने कभी भी चंगाई सभाओं पर रोक की मांग नहीं की। बारह चेलों को बुलाकर दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारियां दूर करने तथा दुर्बलताओं को भगाने का अधिकार देने वालों ने मुर्दों को जिन्दा करने, कोढिय़ों को शुध्द करने तथा दुष्टात्माओं को भगाने के काम में लगाने की घटनाओं को कभी सवालों के घेरे में नहीं लिया गया। याकूब, यर्मियाह, यशायाह, निर्गमन, लूका, मत्ती, मलाकी, मरकुस, इब्रानियों, कुरिन्थियों आदि में वर्णित चमत्कारों को कभी रेखांकित नहीं किया गया। वास्तविकता तो यह है कि देश के निर्धन, दलित और उपेक्षित वर्ग के लोगों को बरगलाकर ईसाई बनाने वालों पर विगत दिनों कुठाराघात करते हुए श्री बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर ने लालच में ईसाई बने अनेक लोगों की घर वापिसी करवाई थी, तभी से वे ईसाई मिशनरी•ा के निशाने पर थे। सनातन के स्तम्भों की भिन्नताओं के कारण यह सोच स्थापित हो गई थी कि सनातन के साधु-संतों में आपसी कटुता है। नागा पर कुठाराघात करो तो वैरागी कुछ नहीं बोलेंगे, सरस्वती पर करो तो उदासीनी कुछ नहीं बोलेंगे। श्री बागेश्वर धाम को निशाने पर लो तो श्री पाण्डोखर धाम कुछ नहीं बोलेंगे। एक शंकराचार्य को फंसाओ तो दूसरे नहीं बोलेंगे। इसी सोच के साथ ही तो देश में व्यापारी बनकर आने वाले गोरों ने स्थानीय राजा-महाराजाओं के मध्य फूट डालो, राज करो की नीति अपनाई थी। मगर इस बार पांसे उल्टे ही पड गये। सनातन के सभी स्तम्भ एक साथ खडे हो गये। विज्ञान का डीएनए विश्लेषण अप्रमाणित हो सकता है परन्तु पार-विज्ञान का वंशसूत्र आज भी शक्ति संपन्न और प्रमाणित है। तभी तो सनातन के खुले दरबार में परा-विज्ञान का परचम फहरा रहा है। रायपुर आयोजन में कैमरे की आंख के सामने अनेक समस्याग्रस्त लोगों को श्री बागेश्वर धाम के प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण हुआ। परा-विज्ञान के सामने अस्तित्वहीन होता तर्क का तिलिस्म आज विज्ञान की सीमाओं पर लज्जित हो रहा है। विदेशों के इशारों पर होने वाले देशद्रोहियों के षडयंत्र, समय-समय पर उजागर होते रहे हैं। कभी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर को चन्द एजेन्टों के माध्यम से सुलगाने का प्रयास किया गया तो कभी किसानों के आंदोलन के नाम पर देश के विकास को मौथला करने की कोशिशें हुईं। कभी जातिगत आंदोलनों को हवा दी गई तो कभी मजदूर यूनियन के नाम पर मेहनतकशों को राष्ट्रविरोधी बनाया गया। चीन का लाल सलाम और गोरों की सफेद पोशाक मिलकर देश के बढते कद को कम करने के लिए हाथ मिला चुकी है। ऐसे में राष्ट्रवादी लोगों को एक जुट होकर विदेशी षडयंत्र की जडों में मट्ठा पिलाना होगा तभी देश में सुख, शान्ति और सौहार्द का शंखनाद हो सकेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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