नीले रंग से होली खेलता समुद्र

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मालदीव से – डॉ० हरिनारायण जोशी अंजान

ऐसा नीलाम्भ हो गया है जैसे नीले रंग से होली खेली हो। कृष्ण का सखा बन गया हो समुद्र। और कृष्ण की सखी गोपियों ने इसको भी नीले रंग में डुबो दिया हो या कभी स्वत: ही कृष्णमय हो जाता हो। जैसे राधा की झांई पड़ने से श्रीकृष्ण श्यामल नीलवर्ण के हो जाते हैं। यह विशाल उन्मत्त समुद्र भी इन्हीं सब कलाओं से परिपूर्ण लगता है।

समुद्र! उफ्फ यह नीला रंग। गहरा नीला आसमान से भी नीला। जैसे नीले रंगत वाले कृष्ण की संगति में सराबोर हो गया हो या कृष्ण का नीला रंग चुरा लिया हो। श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं जल रूप में समुद्र हूं और सचमुच यह समुद्र कृष्णमय हो जाता है। उनके नीलवर्ण के गात से अपना स्वरूप रंग लेता है। हिमालय की भांति ही यह समुद्र भी ईश्वरीय देह प्रतीत होता है। कहा गया है कि जो हिमालय की तरह धैर्यवान और समुद्र की तरह गंभीर है वही राम है। अर्थात निश्चित यह ईश्वर का ही स्वरूप है।
कृष्ण के प्रिय पक्षी मोर ने भी इस रंग को पाने के लिए कुछ विशेष ही किया होगा। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल भी कुछ इसी रंग का स्वामी हो गया। हों सकता है कृष्ण ने स्वयं ही यह रूप धारण कर लिया हो। भगवान कृष्ण भी अपने भक्तों के वश में होते हैं और गोपी बनने में भी उन्हें बड़ा आनंद आता है। कुछ भी हो यह समुद्र अथाह है। अनंत भी है। इसकी सीमाएं दिग दिगंत तक हैं। इसका खूबसूरत और आकर्षक नीला रंग मंत्रमुग्ध कर देने वाला सौंदर्य समेटे हुए है। अपने वक्षस्थल से अमृत के साथ हलाहल निकालकर यह भगवान शंकर के कंठ को नीला करने की सामर्थ भी रखता है। श्रीकृष्ण के मूल स्वरूप भगवान विष्णु भी इसके जामाता हैं ही। इसकी लहरें और धाराएं इसके नीले स्वरूप में चार चांद का काम कर रही हैं। कभी-कभी जोर से ऊपर उठती कुछ लहरें अनायास ही श्वेत वर्ण हो जाती हैं। समुद्र जितना विशाल है उतना ही इसका स्वरूप सौंदर्यमय और आह्लादित करने वाला है। जै हिंद।

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