सत्तासुख की कामना पर विनाश की इबारत
भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश के राज्यों में करदाताओं के खून-पसीने से मिलने वाले अंश को मुफ्तखोरों को बढाने तथा राजनैतिक लाभ के लिए खुलकर लुटाया जा रहा है। कहीं लेपटाप बांटे जा रहे हैं तो कहीं मोबाइल फोन। कहीं स्कूटी बांटी जा रहीं है तो कहीं टेबलेट। कहीं साइकिलें बांटी जा रहीं है तो कहीं मोटरसाइकिलें। कही राशन बांटा जा रहा है तो कहीं कपडे। कहीं मकान बांटे जा रहे हैं तो कहीं दुकानें। कहीं उपकरण बांटे जा रहे हैं तो कहीं मशीनें। कहीं भूखण्ड बांटे जा रहे हैं तो कहीं खेत। कहीं भोजन बांटा जा रहा है तो कहीं पुष्टाहार। मुफ्तखोरों की जमात को बढाने के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक दायित्वों का बोझ ईमादारी से टैक्स चुकाने वालों पर लादने का काम करने वाली सरकारें वास्तव में देश के अन्दर कामचोरी, हरामखोरी और मक्कारी के विषपौधों का रोपण ही कर रहीं हैं। देश के अनेक राज्यों में कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर अनगिनत कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से आहार अनुदान योजना, मुफ्त राशन योजना, स्वच्छ भारत मिशन, मातृ वंदना योजना, आयुष्मान योजना, जीवन ज्योति योजना, सामाजिक सुरक्षा योजना, नि:शुल्क पेंशन योजना, परिवार सहायता योजना, सामूहिक विवाह योजना, कन्या अभिभावक योजना, शिक्षा प्रोत्साहन योजना, कल्याणी विवाह सहायता योजना, तीर्थ यात्रा योजना, सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना, अत्याचार अधिनियम के तहत आर्थिक सहायता योजना, मेधावी विद्यार्थी पुरस्कार योजना, दिल्ली में उच्च शिक्षा हेतु छात्रावासी योजना, अन्त्योदय उपचार योजना, छात्रवृत्ति योजना, मध्यांन भोजन योजना, विक्रमादित्य नि:शुल्क योजना, एकीकृत छात्रवृत्ति योजना, प्रतिभा किरण योजना, गांव की बेटी योजना, शुल्क वापिसी योजना, कृषक भ्रमण योजना, यंत्रीकरण विकास योजना, फसल क्षेत्र विस्तार योजना, फसल बीमा योजना, भण्डारण क्षमता वृध्दि योजना, उद्यानिकी विकास योजना, पम्प फ्लेट रेट योजना, नि:शुल्क विद्युत प्रदाय योजना, स्वयं का ट्रांसफार्मर योजना, ग्राम ज्योति योजना, उदय योजना, बिजली हर घर योजना, सौभाग्य योजना, ग्राम स्वराज योजना, अन्नपूर्णा योजना, बलराम तालाब योजना, बैलगाडी अनुदान योजना, महिलाओं की कृषि भागीदारी योजना, सूरज धारा योजना, आयोडीन नमक योजना, अभिभावक प्रोत्साहन राशि योजना, अपराध पीडित प्रतिकार योजना, उन्नत तकनीक प्रोत्साहन योजना, शव वाहन योजना, स्वाभिमान योजना, कामधेनु योजना, क्रीडांगन योजना, पंच परमेश्वर योजना, शान्ति धाम योजना, स्वजल धारा योजना, नन्दन फलोद्यान योजना, सुअर संरक्षण योजना, गोपाल प्रोत्साहन योजना, गौशाला योजना, नन्दी शाला योजना, विदेश अध्ययन योजना, छात्रगृह योजना, नीलक्रान्ति योजना, आवास योजना, चलित अस्पताल योजना, चलित पशु चिकित्सालय योजना, जननी सुरक्षा योजना, बाल शक्ति योजना, नलजल योजना, राजस्व क्षतिपूर्ति योजना, मजदूर कल्याण योजना, खेत सडक योजना, स्वर्ण जयंती योजना, अन्त्येष्चि सहायता योजना, साइकिल वितरण योजना, घुमक्कड कल्याण योजना, सुदामा योजना, इकलौती बेटी योजना आदि को रेखांकित किया जा सकता है। चुनावों के नजदीक आते ही योजनाओं के अलावा सीधा नगद भुगतान का भी रास्ता ढूंढ लिया गया है। कहीं लाडली बहिना को नगद भुगतान हो रहा है तो कहीं गोदभराई की रश्म में सरकारी भेंट पहुंच रहीं है। कहीं लाडली लक्ष्मी की गूंज हो रही है तो कहीं अनुदान, सहायता और सहयोग के नाम पर नगद भुगतान हो रहा है। दूसरी ओर विकास के नाम पर भी देश की जमा पूंजी खुलकर लुटाई जा रही है। कहीं रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प हो रहा है तो कहीं धार्मिक स्थलों के कैरीडोर निर्मित हो रहे हैं। कहीं सडकों को आइने की तरह चमकाने का काम चल रहा है तो कहीं सुविधाओं के नाम पर वाहनों की जमकर खरीदी हो रही है। नवीन भवनों के निर्माण से लेकर उपकरणों की खरीदी पर भी दौनों हाथों से पैसे उडाये जा रहे हैं। विज्ञापनों का तो जैसे स्वर्णिम काल ही आ गया है। मंहगाई पर चिन्ता व्यक्त करने वाले लोग सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के वेतन, भत्तों, सुविधाओं से लेकर पेंशन तक में निरंतर बढोत्तरी कर रहे हैं। वेतन ने चार अंकों की सीमा तो कब की पार कर ली थी अब तो पांच और छ: अंकों में भी इजाफा किया जा रहा है। धरातल पर काम करने वाले न्यूनतम वेतनभोगी एक संविदाकर्मी की लगाम कसने के लिए दर्जन भर स्थाई नौकरी वाले अधिकारियों की जमातें अपने वातानुकूलित चैम्बरों, आलीशान बंगलों और लग्जरी कारों में बैठकर आंकडों की बाजीगरी करके सरकारों को अपनी पीठ ठोकने का मौका देतीं हैं। महानगरों से लेकर गांवों की गलियों तक में रास्तों को सुगम बनाने के नाम पर लगभग हर पांच वर्षीय योजना में सडकों का प्रस्ताव पास होता है। बिजली के तारों को दुरुस्त करने, ओवरलोड से निपटने तथा आपूर्ति की निरंतरता के लिए हमेशा ही बजट की मांग बनी रहती है। यही हाल सभी जाने-अनजाने महकमों का है। अनजाने इसलिये कि उनका बजूद और व्यवहारिक औचित्य सरकारों के अलावा केवल कोषागार ही वेतन भुगतान के दौरान जानता है। जिले में संचालित सभी योजनाओं के नाम तो शायद ही किसी जिलाधिकारी को याद हों। जबकि सरकारी दस्तावेजों की वार्षिकी में सभी की उपलब्धियों सहित कथित प्रमाणित जानकारी आंकडोंवार दर्ज होती है। रुष्टीकरण की चिन्ता को दूर करने के लिए तुष्टीकरण के हो रहे हैं उपाय। ऐसे उपायों से विकास के स्थान पर विनाश का धरातल धीरे-धीरे तैयार हो रहा है जिसे आम आवाम के संगठित प्रयासों से ही रोका जा सकता है। कहीं हाथ उठाकर ठहाके लगाने के बाद माथा पकडकर रोना न पडे। लाखों करोड की परियोजनाओं का शिलान्यास, भारी भरकम बजट की कल्याणकारी योजनाओं का शुभारम्भ और मुफ्त में सामग्री बांटने का दावा करने वाले शायद आने वाले समय के लिए किसी विकराल दावानल को ही आमंत्रित कर रहे हैं। देश की आय को बचाकर संपन्नता के ग्राफ भी तो ऊंचा किया जा सकता है। विदेशी मुद्रा के साथ-साथ स्वदेश के स्वर्ण भण्डार को भी बढाया जा सकता है। मानव शक्ति का उपयोग करके उत्पादन क्षमता को चरम पर पहुंचाया जा सकता है। आवश्यकता के अनुरूप वेतन निर्धारण करके स्थाई सरकारी सेवक से सरकारी अधिकारी बन चुके लोगों को भी जमीनी सच्चाई से अवगत कराया जा सकता है। अनुशासन को कडाई से लागू करके कर्तव्यपरायणता को विकसित किया जा सकता है। स्थाई, अस्थाई, संविदा, दैनिक वेतनभोगी, सेवा प्रदाता जैसी विसंगतियों पर लगाम लगाकर सरकारी सेवकों में एक रूपता लाई जा सकती है। अनावश्यक पदों में कटौती करके उनका उपयोग खाली पदों पर समायोजन करके किया जा सकता है। ऐसे अनेक कारक हैं जिनसे धरातली विकास की संभावनायें परिलक्ष्ति हो सकतीं है अन्यथा सत्तासुख की कामना पर विनाश की इबारत लिखना देशहित में तो कदापि नहीं कहा जा सकता, भले ही वो पार्टी हित, परिवार हित या व्यक्तिगत हितों की परिभाषा को अक्षरश: साकार करता हो। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
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