एक ही विषय में बार-बार नेट पास करना दूसरों के हक पर डाका!

0

Soulofindia

यूजीसी नेट का रिजल्ट घोषित होने के बाद मीडिया माध्यमों में कुछ ऐसे लोगों के बारे में खबरें प्रकाशित हुई, जिन्होंने आठ-नौ या इससे भी अधिक बार यूजीसी का नेट एग्जाम पास किया है। मीडिया माध्यमों ने इन लोगों की इस उपलब्धि को एक प्रेरक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है, जबकि इसके पीछे का सच कुछ और है। जब कोई व्यक्ति एक ही विषय में बार-बार नेट पास करता है तो इससे उसकी किसी अतिरिक्त योग्यता की पुष्टि नहीं होती, लेकिन इसके जरिए वह उन लोगों का हक जरूर मारता है जो कुछ नंबरों से नेट की क्वालीफाइंग सूची में आने से चूक गए हैं। इस बात को समझने के लिए यूजीसी नेट एग्जामिनेशन का क्वालिफिकेशन प्रोसेस समझना जरूरी है। इस परीक्षा में पहला क्वालीफाइंग लेवल अपने आवेदित विषय में दोनों प्रश्न पत्रों में अलग-अलग 40 फीसद अंक प्राप्त करना होता है। विभिन्न रिजर्व श्रेणियों के लिए इसे 35 प्रतिशत रखा गया है। (हालांकि, यह व्यावहारिक रूप से 36 प्रतिशत है क्योंकि इस परीक्षा में हरेक प्रश्न दो अंक का है इसलिए या तो 34 प्रतिशत अंक मिलेंगे या फिर 36 प्रतिशत। निगेटिव मार्किंग न होने के कारण इस प्रतिशत को 36 से नीचे ले जाने पर 35 नहीं, बल्कि 34 ही आएगा।)
अपने विषय में जो कैंडिडेट न्यूनतम प्रतिशत के इस मानक को पार कर लेते हैं उनमें से टॉप सिक्स पर्सेंट को नेट क्वालीफाई घोषित कर दिया जाता है। चूंकि इस सिक्स पर्सेंट का निर्धारण विषयवार अलग-अलग होता है इसलिए हर एक सब्जेक्ट की मेरिट या कट ऑफ मार्क्स का लेवल भी अलग-अलग रहता है। उदाहरण के लिए इस बार के रिजल्ट में देख सकते हैं कि कुछ विषयों में कुल 300 में से 140 अंक पाने वाला व्यक्ति भी नेट पास कर गया, जबकि कुछ विषयों में 220 अंक पाने वाला भी नेट पास नहीं कर पाया। इससे केवल इतना पता लगता है कि किसी विषय के अंतर्गत कितना कंपटीशन है। जहां कंपटीशन अधिक होगा, वहां मेरिट भी ऊंची रहेगी।
अब पुनः मूल विषय पर आते हैं कि एक से अधिक बार नेट पास करने का किसे फायदा है और किसे नुकसान है। जब कोई व्यक्ति एक ही सब्जेक्ट में 8 बार, 10 बार या 12 बार नेट पास कर रहा है तो उसे इसका कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलना है क्योंकि सहायक प्रोफेसर पद या अन्य किसी समकक्ष पद पर नियुक्ति का आधार एक बार पास किया गया नेट ही बनता है। ज्यादा बार नेट पास करना लगभग वैसा है, जैसे कोई 10वीं या 12वीं के एग्जाम को अनेक बार पास करता रहे। हालांकि 10वीं-12वीं या किसी अन्य अकादमीक एग्जाम को पास करते रहने से वैसी समस्या नहीं होगी क्योंकि इनमें हर एक व्यक्ति एक न्यूनतम अंकों के आधार पर उत्तीर्ण घोषित कर दिया जाता है। जबकि एक ही विषय में बार-बार एग्जाम क्लियर करने से यूजीसी नेट के मामले में दिक्कत होगी। यदि पहले से नेट उत्तीर्ण कर चुका कोई व्यक्ति दोबारा नेट पास करता है तो उसका असर मेरिट में आने से वंचित रहे व्यक्ति पर पड़ता है।
यदि पहले से नेट उत्तीर्ण कर चुका व्यक्ति इस कंपटीशन में ना होता तो यकीनन कोई एक अतिरिक्त व्यक्ति सिक्स परसेंट के क्वालीफाइंग दायरे में आ जाता। इसलिए यूजीसी को उन सभी लोगों पर जो किसी विषय में एक बार नेट पास कर चुके हैं, उस विषय में दोबारा परीक्षा में बैठने पर रोक लगानी चाहिए। हालांकि यदि ऐसे आवेदक नेट पास करने के बाद जेआरएफ के लिए परीक्षा देते हैं तो उन्हें इसका अवसर दिया जाना चाहिए। इसके लिए नेट एग्जाम की मौजूदा व्यवस्था में एक अलग श्रेणी का निर्धारण करना चाहिए क्योंकि अभी तक जो दो श्रेणी हैं, उसमें पहली श्रेणी नेट-जेआरएफ और दूसरी श्रेणी केवल नेट है। इन दो श्रेणियों के चलते कुछ मामलों में ऐसी मजबूरी होती होगी कि जहां पहले से नेट पास कर चुका व्यक्ति जब जेआरएफ के लिए कोशिश करता है तो जेआरएफ के लिए सफल न होने पर उसे दोबारा नेट का सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है।
वस्तुतः इस व्यक्ति को दोबारा नेट के सर्टिफिकेट की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि इसका मूल उद्देश्य जूनियर रिसर्च फैलोशिप (जेआरएफ) प्राप्त करना है। अब यदि यूजीसी ऐसे लोगों को बार-बार नेट का सर्टिफिकेट देगी तो इसका असर उन लोगों पर पड़ेगा जो कुछ अंकों से टॉप सिक्स पर्सेंट में आने से रह जाते हैं। जो लोग शौकिया तौर पर बार-बार नेट पास करते हैं उन पर तत्काल रोक लगाना कोई बहुत बड़ा मामला नहीं है। इसे आसानी से रोका जा सकता है। चूंकि यूजीसी नेट एग्जामिनेशन की सारी प्रक्रिया ऑनलाइन और कंप्यूटरीकृत है तो पहले से नेट उत्तीर्ण कर चुके लोगों को आसानी से चिन्हित किया जा सकता है। यदि इनमें से कोई व्यक्ति पुनः आवेदन करता है तो उसका आवेदन स्वतः ही निरस्त होना चाहिए, केवल उन लोगों को छोड़कर जो जेआरएफ के लिए अप्लाई कर रहे हैं। चूंकि यूजीसी ने जेआरएफ के लिए सामान्य वर्ग के लिए 30 साल और अन्य वर्गों के लिए 35 साल की अधिकतम आयु निर्धारित की हुई है तो इससे अधिक आयु का पहले से नेट कर चुका व्यक्ति यदि दोबारा इस परीक्षा में बैठता है तो उसे अवसर दिए जाने का अर्थ है-दूसरे लोगों का हक मारना। अलबत्ता, यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे विषय के लिए नेट परीक्षा में शामिल होता है तो उसे अवश्य अवसर मिलना चाहिए। लेकिन कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं, जब व्यक्ति ने चार या पांच विषयों में नेट उत्तीर्ण कर लिया। (मेरे साथ उत्तराखंड संस्कृत यूनिवर्सिटी, हरिद्वार में एक शिक्षक थे जो चार विषयों में नेट उत्तीर्ण थे। बाद में उन्होंने शिक्षण छोड़कर संन्यास ले लिया।)
ऐसे उदाहरण संबंधित व्यक्ति की विशिष्ट योग्यता के द्योतक हो सकते हैं, लेकिन ये यूजीसी नेट परीक्षा के स्तर पर सवाल खड़ा करते हैं क्योंकि कोई व्यक्ति कितना भी ज्ञानी क्यों ना हो, क्या वह एक समय में चार या पांच विषयों में स्नातकोत्तर स्तर पर इतना ज्ञान रखता है कि वह इनमें से किसी में भी नेट पास करके सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त का पात्र हो सकता है! दो या तीन विषयों तक में नेट उत्तीर्ण किए जाने की बात मानी जा सकती है क्योंकि कुछ विषयों का कंटेंट और उनकी प्रकृति दूसरे विषयों से मिलती हुई होती है। जैसे, हिंदी और अंग्रेजी विषयों के बहुत सारे लोग पत्रकारिता-जनसंचार में नेट क्लियर कर लेते हैं। इसी तरह से सोशियोलॉजी के कई लोग अपने विषय के अतिरिक्त समाज कार्य या अपराध विज्ञान आदि में भी नेट पास कर लेते हैं, लेकिन यदि कोई व्यक्ति योग के साथ-साथ इतिहास में, इतिहास के बाद संस्कृत साहित्य में और संस्कृत साहित्य के बाद राजनीति विज्ञान में भी नेट पास कर जाए तो या तो उसे ईश्वर ने चरम योग्यता का वरदान दिया है या फिर सिस्टम इतना बोगस है कि कुछ टेक्निक्स जानने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी भी सब्जेक्ट में नेट पास कर सकता है।
फिलहाल, मूल प्रश्न को देखते हैं। चूंकि यूजीसी नेट का परिणाम टॉप सिक्स पर्सेंट के आधार पर निर्धारित किया जाता है इसलिए इस परीक्षा से उन लोगों को दूर रखने की आवश्यकता है जो एक ही विषय में पहले से ही एक से अधिक बार पात्रता प्राप्त कर चुके हैं। जहां तक नेट और जेआरएफ को अलग रखने की बात है तो इस मामले में सीएसआईआर नेट एग्जाम को उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। (देश में यूजीसी के अलावा सीएसआईआर और आईसीएआर क्रमशः विज्ञान विषयों और कृषि से संबंधित विषयों के लिए अलग परीक्षा कराते हैं। यह व्यवस्था भी परीक्षार्थियों के लिए किसी बोझ से कम नहीं है क्योंकि इन दोनों संस्थाओं ने पात्रता प्राप्त करने के लिए अलग मानक तय किए हुए हैं।)
सीएसआईआर की नेट परीक्षा में तीनों विकल्प मौजूद हैं। यानी केवल नेट पास करना, नेट के साथ जेआरएफ क्लियर करना और केवल जेआरएफ क्वालीफाई करना। सीएसआईआर की नेट परीक्षा व्यवस्था में 4 वर्षीय स्नातक प्रोग्राम के अंतिम वर्ष के छात्र छात्राओं को भी जेआरएफ का अवसर दिया जाता है ताकि वे रिसर्च के लिए पहले से ही मन बना लंे। इसी प्रकार की व्यवस्था यूजीसी नेट एग्जाम में भी की जानी चाहिए ताकि जो युवा रिसर्च की तरफ जाना चाह रहे हैं, उन्हें स्नातक के अंतिम वर्ष अथवा स्नातक परीक्षा पास करने के तत्काल बाद जेआरएफ में बैठने की अनुमति दी जाए। इन बदलावों से न केवल यूजीसी नेट परीक्षा की क्वालिटी बढ़ेगी, बल्कि एक ही विषय में बार-बार नेट पास करने के शौक पर भी रोक लग सकेगी।
सुशील उपाध्याय
9997998050

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share