मां भगवती धारी देवी का श्रृंगार

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मां भगवती आद्य कालीस्वरूप हैं और संपूर्ण गढ़वाल उन्हें अपनी कुलदेवी तथा ईस्ट देवी के रूप में पूजता है। गढ़वाल की कई महिलाओं पर अनेक अवसरों में उनका साक्षातभाव प्रकटीकारण होता है। उनका काली स्वरूप अप्रतिम ऊर्जा का स्रोत है। उनके चित्र दर्शन मात्र से भी शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है। उनका रूप और श्रृंगार इस तरह से है कि उससे काला रंग संसार में और कोई होता ही नहीं है। उन्हें धारी की कालिंका के रूप में इस स्वरूप के कारण भी जाना जाता है ।
उनके इसी काली प्रचंड रूप के सामने स्वयं महाकाल भगवान शिव तक विनम्र हो जाते हैं । वहीं उनका उदार स्वरूप मां लक्ष्मी और सरस्वती जी जैसा है। धारी गांव के पुजारी पांडे लोग उनका बड़े भक्ति भाव से श्रृंगार करते हैं। उनका श्रृंगार प्रतिदिन किया जाता है। भक्तों के बीच यह भी धरणा है कि देवी 24 घंटे में तीन स्वरूपों में दृष्टिगत होती है। नारी श्रृंगार में केवल गढ़वाल में ही नहीं अपितु पूरे उत्तराखंड में नाक की नथ और यहां की हिमाल नारियों का अटूट संबंध है । इस नथ से उनके सौंदर्य में चार चांद लग जाते हैं। यह पहाड़ी संस्कृति का मुख्य परिचायक भी है। सौन्दर्य के इसी भाव से मां भगवती धारी देवी को नथ भी पहनाई जाती है और सजाई जाती है। नथ हमेशा वांयें नाक की ओर पहनी जाती है क्योंकि वह वामांगी है उसे वामा भी कहा जाता है। नथ अखण्ड सौभाग्यवती का प्रतीक भी है।
भद्र पुजारीजनों से यह भी विनम्र आग्रह है कि मातेश्वरी कालिंका का श्रृंगार करते हुए हर प्रकार से सावधानी रखी जाए।
जय मां धारी देवी ।
डॉ० हरिनारायण जोशी अंजान

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