चौकड़ी की जुगलबंदी से फिर निर्मित होने लगा भय का वातावरण

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश में एक बार फिर कोरोना के नये वैरिएंट की खबरों की बाढ सी आ गई है। ड्रग माफियों ने कोरोना के नाम पर विगत वर्षों में जमकर निरीह नागरिकों को खून चूसा था। सरकारी चिकित्सालयों में इस महामारी के उपचार हेतु भारी भरकम बिलों के माध्यम से करदाताओं के पैसों को उडाया था। निजी अस्पतालों ने भारी भरकम बिलों से अपनी तिजोरियां भरीं थीं। अंग्रेजी उपचार पध्दति यानी एलोपैथी के चन्द विशेषज्ञों के माध्यम से नवीन शोध का भौंकाल बनाया गया था। आयुर्वेद सहित अन्य पैथियों के कारगर उपचार को घातक बताकर देश के काले अंग्रेजों ने पाश्चात्य चिकित्सा पध्दति की जमकर वकालत की थी जबकि कोरोना काल के बाद एलोपैथी की अनेक अनावश्यक और घातक दवाओं के जमकर हुए इस्तेमाल के खुलासों ने वास्तविकता उजागर कर दी थी। घोटालों की तथ्यात्मक समीक्षा वाली फाइलों को लालफीतशाही ने माफियों के इशारों पर दबा दी थी। उस दौर में मुनाफाखोर ड्रग माफियों ने कथित शोध के आधार पर चिकित्सकों के साथ मिलकर देश के नागरिकों को जान का जोखिम बताकर खुलेआम लूटा था। ऐसी खबरों को मीडिया के चन्द घरानों ने किन्हीं खास कारणों से प्रमुखता से ही नहीं परोसा बल्कि देश में दहशत का वातावरण भी निर्मित कर दिया था। एम्स दिल्ली के तत्कालीन निदेशक तो सरकारी वेतन के एवज में धरातली दायित्वों की पूर्ति को नजरंदाज करते हुए दिनभर मीडिया के साथ लाइव रहते थे। खतरों, घातक खतरों और प्राणघातक खतरों को संचार माध्यमों ने जमकर परोसा गया था। सकारात्मक वक्तव्यों को हाशिये के बाहर दिया गया। आयुर्वेद के विशेषज्ञों ने वैदिक पध्दति पर गहन शोध करके कोरोना का कारगर उपचार निकाला था परन्तु उनके अनुसंधान को प्रमाणों के दायरे में तौलने के नाम पर स्वीकार नहीं किया गया जबकि एलोपैथी की अनगिनत कम्पनियों ने मनमाने फार्मूले पर दवाइयों का निर्माण किया और मूल्य नियंत्रण विभाग के कानूनों को धता बताते हुए चिकित्सकों के माध्यम से खुले बाजार में मनमाने दामों पर बेचा। अतीत के खून पिपासु षडयंत्र के सफल होने से उत्साहित ड्रग माफियों ने एक बार फिर चन्द चिकित्सकों के कथित शोधों को आधार बनाकर मीडिया के कुछ घरानों के साथ देश में पुन: दहशत का माहौल बनाने का प्रयास शुरू कर दिया है। बदलते मौसम की साधारण बीमारियों को कोरोना के नये घातक अवतार के रूप में प्रचारित करने का सिलसिला शुरु हो गया है। इस प्रचार में बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस का नया रिकाम्बिनेंट वैरिएंट एक्सबीबी.1.16 म्युटेर कर रहा है जिसका सब टाइप एक्सबीबी.1.16.1 अभी तक 113 लोगों की जान ले चुका है। इस वायरस में 90 प्रतिशत एक्सबीबी है। देश में अभी तक 6155 मरीज चिन्हित किये जाने के आंकडे भी प्रसारित किये जा रहे हैं। प्राणघातक वायरस के आक्रमण का भय पैदा किया जा रहा है जबकि हमेशा ही बदलते मौसम के साथ बुखार, खांसी, सर्दी, जुकाम, नाक बहना, सिरदर्द, शरीर दर्द, पेट दर्द, उल्टी, दस्त जैसी शिकायतें आम लोगों को होतीं रहीं हैं। उस दौरान शारीरिक व्याधियों को घातक रूप में प्रचारित करने के स्थान पर उपचार की विशेष व्यवस्था करके सरकारी चिकित्सालयों में ही पीडितों को स्वास्थ्य लाभ दिया जाता था। चिकित्सा अधिनियमों में नकारात्मक वातावरण का निर्माण करके मरीज की जीवन प्रत्याशा को समाप्त करना एक अपराध माना गया है परन्तु कानूनों के लचीलेपन का लाभ उठाकर षडयंत्रकारियों ने बीमारी से सावधान करने के नाम पर दहशत फैलाने के अपने मंसूबे को हमेशा ही पूरा किया है। इस दिशा में किन्हीं खास कारणों से मीडिया के कुछ घराने वायरस को खबरों के अलावा डिवेट, पैकेज, सिग्मेन्ट जैसे कार्यक्रमों शामिल करके उसकी निरंतरता बनाये हुए हैं। स्वाधीनता के बाद से देश की पुरातन संस्कृति से जुडी चिकित्सा की कारगर आयुर्वेदिक पध्दति अपने अस्तित्व की लडाई निरंतर लड रही है किन्तु काले अंग्रेजों ने संवैधानिक व्यवस्था के तहत एलोपैथी को महात्व देकर अनुभवी नाडी वैद्यों की श्रंखला ही समाप्त कर दी है। वर्तमान में जांच, परीक्षण तथा रिपोर्ट्स के आधार पर दवाइयां लिखने वाले अधिकांश डाक्टरों की कलम पर दवा माफियों ने कब्जा कर लिया है। ऐसे में नागरिकों की व्यक्तिगत जमा पूंजी, देश के करदाताओं के पैसा और सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं को खुलकर लूटने के लिए एक बार फिर ड्रग माफियों ने कमर कस ली है। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत कोरोना जैसी महामारी में होने वाले खर्च की जानकारी मांगने पर अभी तक परिणामों की शून्यता ही रही है। सूत्रों की माने तो चौकडी की जुगलबंदी से फिर निर्मित होने लगा भय का वातावरण। इस चौकडी में ड्रग माफियों तथा लालची चिकित्सकों के अलावा सरकारी तंत्र के अनेक उत्तरदायी अधिकारी तथा चन्द मीडिया हाउस के शामिल होने की चर्चायें चौपालों से लेकर चौराहों तक चटखारे लेकर कही सुनी जा रहीं है। बिना आग के धुंआ होना कदापि संभव नहीं हो सकता। यह अलग बात है कि आग का आकार कुछ भी हो किन्तु धुंआ का बबंडर तो चारों ओर छाने लगा है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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