प्राचीन चिकित्‍सा पद्धतियां आयुर्वेद, सिद्धा और यूनानी विश्‍व स्‍तर पर बना रहीं पहचान

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सोल ऑफ इंडिया ,ऋषिकेश
भारत की प्राचीन चिकित्‍सा पद्धतियों आयुर्वेद, सिद्धा और यूनानी को विश्‍व स्‍तर पर बड़ी पहचान मिलने जा रही है.

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन अब भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन के अंतर्गत आने वाली बीमारियों यानि डिसऑर्डर्स और पैटर्न को अपनी सबसे पॉपुलर सीरीज इंटरनेशनल क्‍लासिफिकेशन ऑफ डिजीज में दर्ज करने जा रहा है.

१० जनवरी को आयुर्वेद ,सिद्धा,यूनानी चिकित्सा पद्धतियों पर आधारित रोगों से संबंधित डाटा और शब्दावलियां विश्व स्वास्थ्य संगठन के आई सी डी ११ वर्गीकरण में शामिल हो जायेंगी ऐसा पहली बार होने जा रहा है और यह भारत ही नहीं बल्कि देश की चिकित्‍सा व्‍यवस्‍था के लिए बहुत बड़ी बात होगी- यह व्यक्तव्य अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद विशेषज्ञ एवं नवजीवनम् आयुर्वेद संस्थान ऋषिकेश के प्रमुख चिकित्सक डॉ डी के श्रीवास्तव ने बताया । उन्होंने ने कहा कि
वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोगों के वर्गीकरण के लिए ‘इंटरनेशनल क्लेसिफिकेशन ऑफ डिजीज़’ नाम की एक वर्गीकरण सीरीज तैयार की जाती है. जिसमें अभी तक के बायोमेडिसिन के माध्यम से इलाज करने वाली स्वास्थ्य सेवा पद्धतियों का ही डेटा दर्ज था. भारत में मौजूद आयुष चिकित्सा पद्धतियों जैसे आयुर्वेद, सिद्ध , यूनानी प्रणालियों पर आधारित रोगों से संबंधित डेटा और शब्दावलियों का वर्गीकरण इस सीरीज में शामिल नहीं था. हालांकि अब इन तीनों पद्धतियों से जुड़ी 529 डिसऑर्डर्स और पैटर्न को शामिल किया जा रहा है.
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि चिकित्‍सा पद्धतियों में बीमारियों को इस सीरीज में लिस्‍ट करना काफी महत्‍वपूर्ण होता है. इसका अर्थ है कि अब विश्व स्वास्थ्य संगठन का सदस्य होने के नाते भारत अन्य देशों के लिए, अपने देश में मौजूद संचारी और गैर संचारी रोगों से जुड़े प्राइमरी और सेकेंडरी डेटा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सूचीबद्ध कराने के लिए मौजूद है और यह भी बताने के लिए मौजूद है कि इन रोगों का इलाज भारत की इन चिकित्‍सा सेवाओं में उपलब्‍ध है.
जिसे डॉक्यूमेंटेशन के साथ चिकित्सा वैज्ञानिक चिकित्सा करने में समर्थ हैं।
इस लिस्‍ट में मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारी और ‘दीर्घकालिक अनिद्रा’ जैसी जीवन शैली संबंधी बीमारियों को भी शामिल किया जा रहा है. यह पहली बार है जब शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक बीमारी को भी ICD11 के इस वर्गीकरण में शामिल किया गया है.
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी, तीनों पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों द्वारा आमतौर पर जानी जाने वाली बीमारी जैसे वर्टिगो गिडिनेस डिसॉर्डर (पेरेंट नाम) यह बीमारी एक नर्वस सिस्टम डिसॉर्डर है जो आयुर्वेद में ‘भ्रमः’ सिद्ध में ‘अजल किरुकिरुप्पु’ और यूनानी में सद्र-ओ-दुवार के नाम से जानी जाती है, इसे भी शामिल किया जा रहा है.
ICD-11 के तहत ऐसी शब्दावलियों की एक अन्तराष्ट्रीय कोडिंग हो सकेगी और आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा के प्रचलित बीमारियों के नाम और डेटा टीएम 2 मॉड्यूल के माध्यम से अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कोड में सूचित हो जाएंगे. इसके बाद इन सभी पर भी अन्‍य बीमारियों की भांति रिसर्च हो सकेगा. वहीं इन बीमारियों के इलाज के लिए भी लोग भारत की तरफ रुख करेंगे और यहां की ट्रेडिशनल चिकित्‍सा का लाभ ले सकेंगे.
इतना ही नहीं इस कोशिश से भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण व्यवस्था, शोध, आयुष बीमा कवरेज, अनुसंधान और विकास, स्‍वास्‍थ्‍य नीति-निर्माण व्यवस्था और अधिक सशक्त और विस्तृत होगी. वहीं कई गंभीर बीमारियों पर अंकुश लगाने के लिए भविष्य की रणनीतियों के निर्माण में भी इन कोड्स का उपयोग किया जाएगा ।
आयुष मंत्रालय ने पहले से ही नेशनल आयुष मोरबीडिटी ऐंड स्टंडरडाइज्ड इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल (NAMASTE) के माध्यम से आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी रोगों के लिए कोड विकसित कर लिया है. इसके लिए आयुष मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ एक अनुबंध भी संपादित किया है. ।

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