उत्तराखण्ड का लोकपर्व ईगास बग्वाल या बूढ़ी दिवाली

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भैलो रे भैलो, काखड़ी को रैलू
उज्यालू आलो, अंधेरो भगलू
खेलु भैलो…….
उत्तराखण्ड के कई स्थानों पर दीपावली के 11दिन बाद हरिबोधनी या देवउठनी एकादशी पर ईगास बग्वाल मनाया जाता है। इसे यहां के कई क्षेत्रों में इसे बूढ़ी दिवाली के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।
ईगास का लोकपर्व भैलु खेलकर मनाया जाता है
यह चीड़ की लीसायुक्त लकड़ी से बनाया जाता है। यह लकड़ी बहुत ज्वलनशील होती है। इसे दली या छिल्ला कहा जाता है। जहां चीड़ के जंगल न हों वहां लोग देवदारए भीमल या हींसर की लकड़ी आदि से भी भैलो बनाते हैं। इन लकड़ियों के छोटे.छोटे टुकड़ों को एक साथ रस्सी अथवा जंगली बेलों से बांधा जाता है। फिर इसे जला कर घुमाते हैं। इसे ही भैला खेलना कहा जाता है।


किसी भी प्रचलित त्योहार के पीछे एक कहानी या घटना अवश्य होती है। इस त्योहार को मनाए जाने को लेकर भी कहा जाता है कि टिहरी के वीर भड़ माधो सिंह भण्डारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। इसी बीच दिवाली का त्यौहार भी था, परंतु इस त्योहार तक कोई भी सैनिक वापस न आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए राजा ने आदेश दिया की इस शोक में कोई भी दिवाली नहीं मनाएगा और इस आदेश या शोक के तहत किसी ने भी दीपावली नहीं मनाई।

लेकिन दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में दिवाली के 11 दिन बाद बूढ़ी दिवाली के रूप में इगास मनाई गई।

वहीं एक पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष बाद लंका विजय कर अयोध्या पहुंचे तो लोगों ने दिये जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्योहार के रूप में मनाया। लेकिन कहा जाता है कि संचार साधनों के अभाव के चलते गढ़वाल क्षेत्र के सुदूर स्थलों के निवासियों को इसकी जानकारी 11 दिन बाद मिली। इसलिए यहां पर दीपावली के 11 दिन बाद यह दीवाली इगास व बूढ़ी दिवाली के रूप में मनाई जाती है

मैदानी क्षेत्रों के दीपावली पर्व की भांति ही इगास पर्व के दिन लोग घरों की साफ-सफाई कर पारम्परिक पकवान बनाते है। पशुओं की पूजा की जाती है उन्हें अच्छा खिलाया पिलाया जाता ह। और रात को पूरे उत्साह के साथ गांव में एक जगह इकठ्ठे होकर भैलो खेलते। भैलो का मतलब एक रस्सी से है, जो पेड़ों की छाल से बनी होती है। इगास के दिन रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं।

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