जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का बड़ा ध्यान रखा जाता था पर्वतीय क्षेत्रों में बने घरों में
आज की चिंता
पुराने जमाने में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बनाये जाने वाले घरों में जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का बड़ा ध्यान रखा जाता था। पत्थरों और लकड़ी से बने इन घरों में सामने की ओर ठीक छत के नीचे पूरी लंबाई में लकड़ी के पैनल पर चिड़ियों के घोंसले बनाने के लिए छेद और पार्श्व या दक्षिण-पश्चिम में दीवार पर मधुमक्खियों के लिए आले रखे जाते थे। नीचे प्रदर्शित 1952 में अल्मोड़ा जिले के एक छोटे-से गांव में बने हमारे पैतृक घर में प्रवेश द्वार के दोनों ओर गौरेया के ऐसे अनेक नियमित घोंसले थे। हम बच्चे वहां आती-जाती गौरेया और एक अन्य प्रजाति की चिड़िया गोंत्याली को बड़े गौर से देखते और खुश होते थे।
घर की पश्चिमी दीवार पर एक आला मधुमक्खियों के लिए बनाया गया था, जिसे भीतर की ओर से तख्ते के टुकड़े से बंद रखा जाता था जिसे हमारी दादी शहद निकालने के लिए ठीक समय पर खोलती थीं। वहां पर काम शुरू करने से पहले मधुमक्खियों के डंक से बचाने के लिए हमें वहां से बाहर कर दिया जाता था। फिर हल्का-सा धुआं करके और मुंह पर कपड़ा लपेट कर वे मधुमक्खियों के छत्ते से शहद निकाल लेती थीं। इस तरह वे प्रतिवर्ष चैत्र व कार्तिक मास यानी साल में दो बार शहद प्राप्त करती थीं और फिर गुड़ की एक डली वहां रखकर उसे बंद कर देती थीं। कभी-कभी तो सारी मधुमक्खियां वहां से दूर चली जाती थीं और फिर बड़े अंतराल के बाद होने वाली उनकी पुनर्वापसी हमारे लिए खुशी का मौका होती थी।
इधर विषय विशेषज्ञों के अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में मधुमक्खियां तेजी से गायब हो रही हैं। जबकि ये जैव विविधता के संरक्षण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मधुमक्खियों से परागण में मदद मिलती है और कई फसलें , सब्जियां और फलदार पेड़ परागण के लिए मधुमक्खियों पर निर्भर होते हैं। अकेले मधुमक्खियों की मदद से 80 प्रतिशत तक परागण किया जाता है। अतः इनका गायब होना मानव अस्तित्व के लिए अहितकर है।
बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण और विभिन्न कारणों से बड़े पैमाने पर घटते जंगलों से हरित क्षेत्र में कमी आती जा रही है। यह पृथ्वी की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है।
हम में से अधिकांश लोग मधुमक्खियों के व्यवहार के बारे में बहुत कम जानते हैं। वे अपना उपनिवेश बनाने के लिए प्रायः वसंत के मौसम की शुरुआत में अपना घर छोड़कर ऊंचे-ऊंचे पेड़ों, ऊंची इमारतों या घरों के नुक्कड़ आदि सुरक्षित जगहों पर चली जाती हैं। यदि कभी ये आपके निकट एकत्र हों तो डरें नहीं, हिलें नहीं और उन्हें मारें नहीं। उन्हें परेशान न करें और उनके करीब जाने से बचें। ये आपको कोई नुक्सान नहीं पहुंचाएंगी। ये सिर्फ 24 घंटे वहां रुकती हैं। यदि आप मदद करना चाहते हैं, तो एक सपाट प्लेट या ट्रे में चीनी का घोल तैयार कर उनके निकट रख दें। वे उसे पीकर खुद उड़ जाएंगी।
दरअसल प्रकृति ने मनुष्य तथा अन्य जीव-जंतुओं के बीच समन्वय स्थापित किया हुआ है जिसमें मनुष्य इन पर निर्भर है लेकिन ये जीव मनुष्य पर निर्भर नहीं बल्कि उसके लिए लाभदायक हैं। हमारा भोजन, औषधियां, सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र, कृषि आदि पशु-पक्षियों व अन्य जीव-जंतुओं पर आधारित हैं जबकि हम इनके लिए कुछ भी नहीं करते। बल्कि हम अपने अल्पकालिक लाभ के लिए इनका विनाश करते जा रहे हैं। जो अंततः हमारे अपने लिए ही भयानक संकट बनने वाला है। ■
साभार- श्याम सिंह रावत
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