भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

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हरामखोरी पर लगाम लगाते हुए राष्ट्रहित को करना होगा अंगीकार

विश्व मंच में भारत का मान निरंतर बढने से अनेक राष्ट्रों के माथे पर सिलवटें गहराने लगीं हैं। अमेरिका की स्वयं भू रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग के माध्यम से देश को आर्थिक क्षति पहुंचाने का षडयंत्र गहराता जा रहा है वहीं आन्तरिक हालातों में भी फलीदा लगाने वालों की कमी नहीं है। स्वदेशी कम्पनियों के विश्व व्यापी विस्तार से परेशान भितरघातियों की जमात अपनी घातक हरकतों से बाज नहीं आ रही है। अनेक राजनैतिक दल अपने विदेशी आकाओं के इशारों पर मनमाने आरोपों को लेकर मैदान में कूद गये हैं। निवेशकों के मध्य जो भूमिका हिंडनबर्ग ने निभाई है उसी किरदार को सदन में चीखने-चिल्लाने वालों ने जीवित किया है। अतीत की खूनी इबारत से लिखे गये सबक, आज देश को लहूलुहान कर रहे हैं। कहीं आरक्षण का दावानल जातिगत विभेद पैदा कर रहा है तो कहीं अल्पसंख्यक हो चुके बहुसंख्यकों को सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खाना पड रहीं है। मुफ्तखोरी की आदतों में जकडता जा रहा देश आज निकम्मेपन के नये कीर्तिमान गढने में लगा है। कोरोना काल कब का समाप्त हो गया है परन्तु हरामखोरों की फ्री सुविधाओं पर पूर्ण विराम लगता नहीं दिख रहा है। लम्बे समय से कथित गरीबों को राशन सहित अनेक तोहफे लाल गलीचे पर सजा कर दिये जा रहे हैं। गरीबों के घरों के बाहर खडी लग्जरी गाडियां, अन्दर के विलासता वाले सामानों की भीड और हेकडी दिखाने की मानसिकता तले सरकारें बौनी होती जा रहीं हैं। वोट बैंक का तिलस्म देश को खोखला करने पर तुला है। कहीं रामचरित मानस को निशाना बनाया जा रहा है तो कहीं कुरान की बेअदबी हो रही है। हिन्दू को हिन्दू से लडवाने, मुस्लिम को मुस्लिम का दुश्मन बनाने तथा खालिस्तान के नाम पर पंंजाबियों के मध्य विषबीज बोने की चालें विदेशी धरती से निरंतर चलीं जा रहीं हैं। अनेक मुस्लिम संगठन स्वाधीनता के 100 साल पूरे होने तक देश को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं जिसमें अनेक राजनैतिक दलों की समय-समय पर भागीदारी भी दर्ज होती रहती है वहीं अब हिन्दू राष्ट्र का मुद्दा भी तेजी से उभरकर सामने आने लगा है। कट्टरता के नाम पर सपने सजाने वाले पडोसी पाकिस्तान ने कटोरा पकड लिया। अति महात्वाकांक्षा के पालने में झूलने वाले श्रीलंका का हाल बेहाल हो चुका है। बांगलादेश की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। मिश्र बुरा हाल है। दुनिया के अनेक देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे हैं ऐसे में नितांत व्यक्तिगत धार्मिक पक्ष को लेकर कट्टरता का बिगुल फूंकना कदापि सुखद नहीं कहा जा सकता। आय से अधिक संतानों को पैदा करना जहां घातक भविष्य की पदचाप बन जाता है वहीं हरामखोरी की आदत से निकम्मों का बाहुल्य होने की स्थिति पनपने लगती है। इन दिनों देश के अनेक भागों से कथित गरीबों पर आंखें फाड देने वाली खबरें निरंतर देखने-सुनने को मिल रहीं हैं। एक ही छत के नीचे से गरीबी की रेखा के नीचे वाले अनेक राशनकार्ड मिल रहे हैं। आलीशान जिंदगी जीने वालों के हाथों में मुफ्त सुविधाओं का गारंटीकार्ड अतिरिक्त आय के स्रोत बनकर आ चुके हैं। अब हरामखोरों के घरों पर नि:शुल्क सामानों की बोरियां बंद होते ही उनका प्रकोप उसी रूप में फूटेगा जैसे अयोग्य को आरक्षण की आड मेें मिलने वाली नौकरियों पर लगाम लगाने पर सामने आया था। गरीबी का लबादा ओढे एक वर्ग विशेष के ज्यादातर लोगों की जमात सरकारी सुविधाओं को अधिकार मान बैठती है। मुफ्त में राशन, मुफ्त में शिक्षा, मुफ्त में मकान, मुफ्त में दुकान, मुफ्त में दवाई, मुफ्त में आपरेशन, मुफ्त में बिजली, मुफ्त में यात्रा, मुफ्त में सामान, मुफ्त में कम्बल, मुफ्त में भोजन, मुफ्त में तीर्थयात्रा, मुफ्त में आनन्दम्, मुफ्त में वकील, मुफ्त में जानकारी, मुफ्त में पानी, मुफ्त में जमीन, मुफ्त में फ्लैट, मुफ्त में विवाह सामग्री, मुफ्त में नगदी, मुफ्त में निकाह, मुफ्त में पंजीकरण जैसे अनगिनत कारक है जो अनेक वास्तविक गरीबों से आज भी दूर है किन्तु अधिकारियों की मेहरबानी से कथित गरीबों को बेरोकटोक मिल रहे हैं। कहीं कथित किसानों की भीड एकत्रित करके उनके हितों के ठेकेदार पैदा हो जाते है तो कहीं कथित छात्रों के कल्याण की दुहाई पर राजनैतिक दलों की घुसपैठ होने लगती है। राजनीति का दिखने वाला चेहरा पर्दे के पीछे से सत्ता सुख की खातिर दांव पर दांव चल रहा है वहीं प्रशासनिक तंत्र के अनेक अधिकारी, अपनी आने वाली सात पीढियों के लिए सम्पत्ति का संचय करने में जुटे हैं। यही तंत्र है जो नेता से जनप्रतिनिधि बनने वालों को चुनावी खर्चे निकालने, लाभ कमाने और भविष्य निधि जोडने के गुर सिखाते हैं। इस पाठशाला के प्रधानाध्यापक बने मठाधीश अपने नवागन्तुक छात्रों को बिल्ली की तरह ही ज्ञान देते हैं ताकि शेर के झपट्टे से हमेशा ही सुरक्षित रहा जा सके। वर्तमान समय में विधायिका की स्थिति बेहद सोचनीय होती जा रही है जो ऊपर से न्यायापालिका और नीचे से कार्यपालिका के दबाव से उबर नहीं पा रही है। तिस पर स्वयं के बजूद को बचाये रखने की चुनौतियां भी नित नये पैतरे दिखा रहीं हैं। ऐसे में विश्व मंच पर तीसरी बार निरंतर सर्वाधिक लोकप्रिय नेता का खिताब पाने वाले नरेन्द्र मोदी निश्चित ही अग्नि परीक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। विपक्ष के मनमाने आरोप, विश्व षडयंत्र के प्रहार, आंतरिक हालातों से सामना, संसार की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की परीक्षा, सीमापार के दुश्मनों की चालें, पार्टी के अन्दर की गुटबाजी, विश्वयुध्द की कगार पर पहुंच चुके हालातों में सामंजस्य, साम्प्रदायिकता का कट्टरवादी जहर, जातिगत विद्रोह की दस्तक, वामपंथियों के राष्ट्रघाती निशाने, गुमराह युवाओं को मुख्यधारा से जोडने जैसे अनगिनत कारक सुरसा बनाकर खडे हैं तिस पर अतीत में खडा किया गया तुष्टीकरण का निरंतर बढते दानव का तीव्र होता अट्ठास। अमेरिका से लाल गेहूं मंगाने वाला राष्ट्र यदि आज दुनिया को गेहूं भेज रहा है, विदेशी हथियारों पर आश्रित रहने वाला राष्ट्र यदि आज स्वदेशी हथियारों का निर्यात कर रहा है, आयातित तकनीक पर निर्भर रहने वाला राष्ट्र यदि स्वदेशी तकनीक को अन्य देशों को बांट रहा है, अंग्रेजी दवाओं का आयात करने वाला राष्ट्र यदि कोरोना काल में संसार का मसीहा बनने के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधियों का निर्यात कर रहा है, अमेरिका-ब्रिटेन-फ्रांस-चीन जैसे देशों की कृपा पर टिकने वाला राष्ट्र यदि उनकी आंखों में आंखे डालकर बात करने के साथ-साथ अपनी शर्तो पर दुनिया के कथित आकाओं को झुका रहा है, गोरों की गुलामी तले संविधान लिखने वाला राष्ट्र यदि उसकी अर्थ व्यवस्था को पछाडकर आज दुनिया की पांचवीं सबसे बडी अर्थ व्यवस्था बन रहा है तो देश के भितरघातियों के पेट में दुश्मनों की तरह ही तो दर्द होना स्वाभाविक ही है। इन सब स्थितियों की समीक्षा तले यह स्पष्ट हो जाता है कि हरामखोरी पर लगाम लगाते हुए राष्ट्रहित को करना होगा अंगीकार तभी देश को एक बार फिर विश्वगुरू के सिंहासन पर आसीत होने का अधिकार मिल सकेगा। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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