दर्द.. लालची बहू… छीन लिया बूढ़े पिता से उसका लाडला “विजय
एक बूढ़े पिता का दर्द
रोजमर्रा की जिंदगी में कई लोग ऐसे भी जीवन यापन कर रहे हैं, जिनके जीवन में चट्टानों की भांति दर्द ही दर्द का बसेरा है और वे जालिमों के जुल्म के शिकार चले आ रहे हैं या फिर बूढ़ी हो चली उम्र के पड़ाव में समाज के अंदर न्याय पाने की आस में अपने भाग्य की जंग लड़ रहे हैं I कुछ के लिए यह समाज उस समय बेरहम साबित हो जाता है, जब वे अपनी जंग हार जाते हैं… और कई इस दौर में अपने हौसलों को बुलंद करते हुए न्याय की दिशा में अपनी जंग जारी रखे हुए आगे बढ़ते रहते हैं तथा स्वयं में विश्वास लेकर आगे बढ़ते हुए अपनी लड़ाई में कामयाब होकर इंसाफ पाकर अटूट विश्वास को साबित कर डालते हैं I इसी तरह के दौर से उत्तराखंड राज्य में रहने वाले एक सीनियर सिटीजन प्रमोद वात्सल्य का जीवन भी ऐसी नाजुक उम्र के समय गुजर रहा है, जो कि एक सीनियर सिटीजन की परिपक्व की भांति उम्र है I अपने बेटे लाडले “विजय” को अच्छा खासा पढ़ाया-लिखाया और विदेश में पढ़ा लिखा कर एक कामयाब इंसान बनाते हुए उसको विवाह के बंधन में भी यह मानते तथा समझते हुए बांध दिया था कि वह मेरी बूढ़ी उम्र में अब मेरा सहारा बनेगा….. और तब ऐसे समय में मेरी जिंदगी का हर पड़ाव खुशियों की दहलीज से होकर गुजरता रहेगा….. और मेरी बूढ़ी जिंदगी इसी तरह खुशहाली की डगर से होकर संपन्न होते हुए अंततः ओझल हो जाएगी और मेरे मन में किसी भी तरह का दुख का समावेश नहीं होगा I
दरअसल, उत्तराखंड के निवासी एक सीनियर सिटीजन प्रमोद वात्सल्य की ओर से सुनाई गई आपबीती से काफी दर्द झलकता हुआ नजर आ रहा है I उम्र दराज हो चले प्रमोद वात्सल्य अपने बेटे विजय की संदिग्ध मौत को लेकर जहां काफी गमगीन है वहीं वे लाडले की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए पुलिस तथा न्याय के दरबार में इंसाफ पाने के लिए दर-दर भटकते हुए नजर आ रहे हैं I फिलहाल तो उनको चारों ओर से निराशा ही मिल पाई है, लेकिन वे जिस प्रकार से अपने मजबूत इरादों एवं कदमों के साथ इस बूढ़ी उम्र में आगे बढ़ रहे हैं, उससे उनके हौसलों तथा विश्वास का पता फौरी तौर पर लग रहा है I अपनी लालची बहू के कारनामे को उजागर करते हुए बेबस दिखाई देने वाले प्रमोद वात्सल्य कहते हैं कि मेरी लालची बहू ने करोड़ों की जायदाद संपत्ति हासिल करने के लिए मेरे बेटे एनआरआई अमेरिका निवासी विजय को मौत के मुंह में पहुंचा दिया है I बहुत ही मायूस और भावुक होकर तथा बेहद नम आंखों से वृद्ध सीनियर सिटीजन प्रमोद के इस दर्द को सुनकर शायद ही किसी का दिल रोए बिना रहेगा? बेटे का दाह संस्कार होता रहा! लेकिन उसमें वृद्ध पिता को शरीक होने से रोक दिया गया….. बहू के लालची चरित्र का चेहरा तो मैं देखता रहा… लेकिन अपने ही लाडले पुत्र के अंतिम दर्शन से मुझे आखिर क्यों मैहरूम रखा गया? यह सोच-सोच कर अक्सर वृद्ध पिता भावुक हो उठते हैं I बेटे की मौत से रहस्य का पर्दा उठाने के साथ ही बहू के लालचीपन व क्रूरता का पर्दाफाश करने के लिए अपनी आवाज पुलिस तथा कानून के दरबार में उठाने को प्रयासरत वृद्ध पिता में फिलहाल अपने लक्ष्य के प्रति आत्मविश्वास पूरी तरह से झलकता नजर आ रहा है I वृद्ध पिता प्रमोद को अपने लाडले की संदिग्ध मौत के मामले को लेकर इंसाफ मिलेगा अथवा नहीं? इसका तो आने वाला वक्त ही मुकर्रर है I लेकिन सीनियर सिटीजन वृद्ध पिता अपने लाडले विजय को याद करते हुए बेहद नम आंखों से यह बात कहते हैं कि उनकी लड़ाई इंसाफ मिलने तक निश्चित रूप से जारी रहेगी I इस तरह के तथा भिन्न-भिन्न कष्टदायक अनेक दुखद मामले समाज के इस दर्पण में पहले से समय-समय पर सामने आते रहे हैं, जिनमें से अनेक मामले जन आंदोलन का रूप लेते हुए सड़कों पर सार्वजनिक रूप से नजर आए हैं… तो अनेक मामले समाज में घुट-घुट कर दम तोड़ते हुए भी समाज ने अपनी आंखों से देखे भी हैं I कभी बेटी को इंसाफ दिलाने तो कभी बेटे को न्याय दिलाने के लिए एक पिता का दर्द हमेशा झलकता व छलकता हुआ समाज के दर्पण में अक्सर सभी ने समय-समय पर देखा होगा I