उत्तराखण्ड और सामान्य आर्थिक संसाधन

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उत्तराखण्ड एक राज्य, जिसकी गंगा-जमुना नदियाें में जल नहीं अमृत बहता है। ऐसा वेद, शास्त्र, पुराण ही नहीं कहते, आज के प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं कि समझ हाे ताे उत्तराखण्ड की आर्थिक समृध्दि के लिए यही नदियाें काफी हैं। गंगा के नाम पर हर वर्ष कराेड़ाें यात्री आता है। वह आध्यात्मिकता की संवाहिका और समृद्धशालिता की देवी है। बदरी केदार ताे राज्य की आर्थिक समृध्दि काे भी स्वर्णिम बना दें। लेकिन शराब की फैक्ट्रीज के दीमाग से अलग साेचना पड़ेगा। यदि इस तरह की फैक्ट्रीज का साेचते हैं ताे ये समृध्दि पीछे हाे जायेगी। मालदीव पर्यटन प्रधान और यहां तक कि पर्यटन आश्रय देश है लेकिन यहां पूरे देश में सक्ति से शराब प्रतिबंधित है और अर्थव्यवस्था एकदम सही है।
उत्तराखंड का तो धार्मिक और आध्यात्मिक इतिहास इतना समृद्ध है कि त्रेतायुग में भगवान राम गुरू वशिष्ठ के साथ देवप्रयाग आये। देवनदी अलकनंदा बदरी नारायण के चरण पखारती हुई राजा भगीरथ के प्रताप से पृथ्वीलाेक आई स्वर्गनदी भगवती गंगा से यहीं पर मिलन करती हैं। इसलिए यह विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक स्थल है। उत्तराखण्ड में आर्थिकी के अलग मायने हैं यहां पहाड़ाें में बड़े उद्याेग नहीं लग सकते लेकिन जाे अन्यत्र नकली मिनरल वाटर के डिब्बे भरे जाते हैं, वह उद्याेग यहां असली लग सकता है। पहाड़ जल के रूप में औषधि देते हैं। पहाड़ाें में सबसे सरल है खेती जिसका विचार ही पलायन से समाप्त हाे गया। काैणी, झंगाैरा, काेदा, मरछा यहां बहुत आसानी और कम मेहनत में उगता है। जाे अनाज नहीं औषधि है। लेकिन बाबा रामदेवजी से सीखना हाेगा कि गाय के दूध से भी ज्यादा महत्वपूर्ण गायमूत्र है।
मेरे पिता सीढीनुमा खेताें की दिवाराें पर दाल के बीज डाल देते थे। दाल के एक पाैधे से किलाे से अधिक दाल निकलती थी। जंगल की तरफ वाले खेताें में लगे पेड़ाें में वे सेम के कुछ बीज बाेते थे। बेल पूरी पेड़ाें पर फैलती थी और कुन्तलाें राजमा तैयार हाेती थी। गाय भैंस के गाेबर इक्ट्ठा करने वाले स्थान के नीचे जहां उसका रस बह कर आता है वहां लाैकी, ताेरी आदि के बीज राेप देते थे और बेल के लिए छप्पर बना देते थे। बेतहाशा शब्जी उगती थी। ऐसा कम मेहनत और बिना देखभाल के हाे जाता था। राई का पत्ता ताे एक फीट चाैड़ा हाे जाता और अरबी का पत्ता बाेरी बराबर। माेटे गुलगुले केले मिठास और स्वाद से भरपूर। अनेक स्वादिष्ठ फल। पहाड़ में उगने वाली जड़ी बूटी ही नहीं हर भाेज्य पदार्थ औषधि है। लेकिन समझना पड़ेगा। याेजना बनानी हाेगी। सामान्य तथ्य है कि आलू अन्य से दस रूपया मंहगा बिक जाता है। इतनी वानिकी, उद्यानकी, पर्यटन, तीर्थाटन और लघु उद्याेगाें तक की इतनी असीम सम्भावनायें हैं कि यह प्रकृति प्रदेश आर्थिक रूप से सभी प्रदेशाें में अग्रणी हाे सकता है। लेकिन संकल्प सरकार काे ही दिखाना हाेगा। अन्यथा ये सारे विचार शून्य हैं और वहां असुविधाओं के साथ जंगली जानवराें का अधिपत्य है।
डॉ० हरिनारायण जाेशी अंजान

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