नस्तनाबूद करने होंगे सेना का मनोबल तोडने वाले हथियार

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

ईस्टर्न जोनल काउंसिल की बैठक में बंगाल की मुख्यमंत्री ने सीमा सुरक्षा बल के अधिकारों में इजाफा करने वाले नये कानून पर खासी आपत्ति दर्ज की है। वे सुरक्षा बलों को सीमा पर मिलने वाले अधिकारों के विरोध में चिल्लातीं रहीं। बैठक में मौजूद सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों ने राज्य सरकार पर सहयोग न करने के आरोप लगाये। वास्तविकता उजागर होते ही ममता बनर्जी बौखला उठीं। कोलकता में हो रही इस बैठक की अध्यक्षता केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर रहे थे। नये कानून के तहत अब सीमा सुरक्षा बल को सीमा से 50 किलोमीटर के दायरे में कार्यवाही करने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट की जरूरत नहीं होगी जबकि पुराने नियम में यह अधिकार केवल 15 किलोमीटर तक ही सीमित था। ऐसे में इस सीमित दायरे के बाहर से दुश्मन देश के मददगार खुलकर अपनी गतिविधियां चलाते रहते थे जिसका खामियाजा सुरक्षा बलों को भुगतना पडता था। यह दायरा 15 किलोमीटर से बढकर 50 किलोमीटर होते ही ममता बनर्जी का क्रोध फूट पडा। वे पहले भी कह चुकीं है कि जबरजस्ती देश में घुस आये बांगलादशियों को भारत का ही नागरिक मानतीं हैं। घुसपैठियों को अधिकार दिलाने के लिए वे प्रयास करेंगी। इस कोलकता बैठक में बंगाल के अलावा बिहार, झारखण्ड, उडीसा और सिक्कम के मुख्यमंत्रियों या उनके प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया था। सेना के अधिकारों में बढोत्तरी होते ही ममता बनर्जी जैसी मानसिकता वालों को बौखलाहट होने लगती है। वे तो सेना को कभी घाटी के आतंकियों से पिटते हुये देखना चाहते हैं या फिर सर्जिकल स्ट्राइस के सबूत मांग कर अपनी मंशा जाहिर कर देते हैं। राहुल गांधी ने एलएसी पर सेना के साहस को सलाम करने के स्थान पर उसका मनोबल तोडने वाला वक्तव्य देकर ईस्टर्न जोनल काउंसिल की बैठक में ममता बनर्जी के लिए धरातल तैयार कर दिया था। देश के अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के पास चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी व्दारा जब एलएसी पार करने की कोशिश को भारतीय सेना ने न केवल विफल किया बल्कि मुंहतोड जबाब देते हुए उसे खदेड दिया। यह जानकारी विभिन्न संचार माध्यमों से देश को मिली। एक कथित वीडियो में भारतीय सेना के व्दारा चीनी सैनिकों को पीट-पीटकर भगाते हुए भी दिखाया गया है परन्तु कांगे्रस को यह सब उल्टा ही दिखा और राहुल गांधी ने तो भारतीय सेना के पिटने जैसे बयान जारी कर दिये। ऐसी ही स्थिति का निर्माण पाकिस्तान में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी भारतीय सेना का मनोबल तोडने के लिए कांग्रेस ने सबूतों की मांग किया था। राहुल गांधी के हालिया बयान की पूरे देश में निंदा की जा रही है। अपने ही देश को कमजोर करने की फिराक में रहने वाले राहुल गांधी वह हर मौका भुनाने की फिराक में रहते हैं जहां से देश की छवि धूमिल हो या फिर सेना का मनोबल टूट सकता हो। इतिहास के पन्नों में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पडे हैं। विपक्ष के दायित्वों में सरकार के जनविरोधी मुद्दों पर शिकायतें दर्ज करने से लेकर आम आवाम को जागरूक करने जैसे बिन्दु ही शामिल होते हैं परन्तु सरकार के कार्यों को सकारात्मकता और नकारात्मकता की तराजू पर तौले बिना ही विरोध दर्ज करने से नेतृत्व की मानसिकता का स्पष्ट बोध हो जाता है। सत्ता से बाहर होते ही कांग्रेस का यह चेहरा हमेशा ही सामने आता रहा है। सत्ता का विरोध करने के साथ-साथ कांग्रेस ने हमेशा ही देश की रक्षा में प्राण-प्रण से जुटे सैनिकों का मनोबल तोडने का ही काम किया है। केन्द्र में कांग्रेस सरकार के दौरान घाटी में आये दिन होने वाली पत्थरबाजी के अलावा सेना के जवानों को असामाजिक तत्वों के थप्पड भी सहना पडते थे। अगर कभी आत्मरक्षा हेतु किसी असामाजिक तत्व को गाडी में बांध कर सेना ने सुरक्षित निकलने का प्रयास भी किया, तो जान की रक्षा हेतु उठाये गये उस कदम के लिए सेना को कटघरे में खडा कर दिया गया। बंधे हाथों में हथियारों सहित मतपेटी लेकर जाते समय सैनिकों को घाटी के असामाजिक तत्वों की मार भी सहना पडती थी। बाद में उन्हीं असामाजिक तत्वों, आतंकवादियों तथा उनके पनाहगारों को मानवाधिकार के कवच तले मासूम बताकर निर्दोष साबित करने वाले खद्दरधारियों की फौज काला कोट पहन कर खडी हो जाती थी। राहुल गांधी के हालिया बयान पर पूरे देश में उबाल आ रहा है। चर्चाओं के गर्म होते बाजार में पाकिस्तानी मंत्रियों के शब्दों को राहुल व्दारा अपनी शैली देकर कांग्रेस की नीतियों-रीतियों को उजागर करने की बातें चटखारे लेकर कही-सुनी जा रहीं हैं। वैसे भी जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की टुकडे-टुकडे गैंग के साथ कांग्रेस हमेशा ही खडी रही है। राहुल गांधी के हालिया बयान पर एक बार फिर सेना को अपनी बहादुरी के प्रमाण लेकर आना पडा। पूर्वी कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलिता ने 51 वें विजय दिवस के दौरान फोर्ट विलियम ने कहा कि चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने एसएसी पार करने की कोशिश की थी, जिसका भारतीय सेना ने मुंहतोड जबाब दिया और चीनी सैनिकों को खदेड दिया। उन्होंने देश को आश्वस्त करते हुए कहा कि सेना किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। राहुल गांधी के वक्तव्य और उनके सिपाहलारों की हायतौबा करने पर सेना के कमांडर को स्वयं स्थिति स्पष्ट करना पडी। ऐसी ही स्थिति सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी निर्मित की गई थी। अतीत में भी देश के साथ गद्दारी करने वालों की समय-समय पर मौजूदगी रही है। कन्नौज के राजा जयचन्द ने पृथ्वीराज से अपने अपमान का बदला लेने के लिए बाह्य आक्रान्ता मोहम्मद गौरी हाथ मिला लिया था और सन् 1192 में मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज की पराजय हुई थी। मीर जाफर ने सन् 1757 में सिराजुद्दौला को हराने के लिए गोरों की मदद की थी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने हमें गुलामी की बेडियां पहना दीं थी। इसके बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को भी नहीं बक्सा और उसको हटाने के लिए मीर कासिम को मोहरा बनाया। टीपू सुल्तान के निकटवर्ती मंत्री मीर सादिक ने गोरों का साथ देकर अपने ही राज्य को सन् 1779 में अंग्रेजों का गुलाम बनवा दिया था। ऐसा ही महाराणा प्रताप के साथ मान सिंह ने भी किया था। मुगलों के साथ मिलकर घात करने वालों में उनका नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। देश को दुश्मनों के हाथों बेचने वाले इन पांच सबसे बडे गद्दारों को रेखांकित करने के दौरान बाह्य आक्रान्ताओं के साथ गोरों की धरती का षडयंत्र भी उजागर हो जाता है। तभी तो गुलामी के दौर में राष्ट्र भक्तों को फांसी और गोरों की धरती से दूरगामी षडयंत्र के तहत पहुंचाये गये चन्द देशवासियों को सम्मान की सौगात दी जाती रही। प्रत्येक संवेदनशील स्थिति में देश के अन्दर के गद्दार अपनी राष्ट्र विरोधी मानसिकता को किन्हीं खास कारणों से उजागर करने से बाज नहीं आते। अभी तक एक भी ऐसा वक्त नहीं आया जबकि राष्ट्रहित के मुद्दे पर सभी दलों ने समर्थन में हाथ उठाये हों। कोई लाल सलाम के साथ खडा होकर जगह-जगह लाल झंडे लगवाता है तो कोई तीन रंग के झंडे में परिवार का डंडा लगाकर स्वयं भू नेता बना जाता है। कहीं विरासत का शंखनाद होता है तो कहीं जातिवाद का जहर उडेला जाता है। सम्प्रदायवाद को चिंगारियां देने वालों की भी कमी नहीं है। अतीत की गुलामी को भुलाने वाले कृत्यों पर तेजाबी प्रहार होते हैं। सुरक्षा की कमर तोडने हेतु सेना को पंगु बनाने की कोशिशें होतीं है। ऐसे में नस्तनाबूद करने होंगे सेना का मनोबल तोडने वाले हथियार ताकि उनकी धार से अपनों का स्वाभिमान लहुलुहान न हो सके। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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