भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

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विभागीय अडचनों में फंसी योजनाओं का करना होगा कायाकल्प
विश्व की विकट परिस्थितियों के दौर में देश की कूटनीति निरंतर सफल हो रही है। दुनिया में भारत की नीतियों-रीतियों का अनुशरण करने का प्रचलन शुरू हो गया है। अनेक देश डालर से पलायन करके रूपये को विनिमय का माध्यम बनाने लगे हैं। विदेशी निवेश के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण किया जाने लगा है। ऐसे में देश के अन्दर उपलब्ध संसाधनों को अदृष्टिगत करना उचित नहीं है। प्रशासन के माध्यम से बंद पडी इकाइयों की समीक्षा की जाना चाहिये। भारी भरकम बजट से लम्बे समय तक चलने वाली इकाइयां किन्हीं खास कारणों से घाटे का सौदा बनकर ताला बंदी की स्थिति तक पहुंच गईं हैं। हथकरघा कारखानों से लेकर कुटीर उद्योगों तक को उपलब्ध संसाधन बरबादी की कगार पर हैं। इनमें काम करने वाले अनगिनत कामगार बेरोजगारी के कारण पलायन करने के बाध्य हो चुके हैं। ग्रामीण और पिछडे क्षेत्रों में चलाई जाने वाली सरकारी योजनायें का लाभ स्थानीय माफियों व्दारा खुलकर उठाया जाता रहा है। सरकारों व्दारा विकसित औद्योगिक क्षेत्रों की अनेक बेशकीमती जमीनों पर फर्जी इकाइयों के नाम पर दंबगों के कब्जे देखे जा सकते हैं। प्रगति के मनगढन्त आंकडों के आधार पर भले ही विकास के कीर्तिमान स्थापित हो रहे हों परन्तु यह भी सत्य है कि धरातल पर सरकारी तंत्र के साथ मिलकर अवैध कब्जाधारियों की संख्या में निरंतर बढोत्तरी होती जा रही है। पात्र हितग्राहियों ने सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा-लगा कर असहाय होकर हताशा का आवरण ओढ लिया है। अब उनके पास भाग्य को कोसने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा है। समय-समय पर सरकारों व्दारा सरकारी योजनाओं, इकाइयों की स्थापनाओं, कैरीडोर निर्माण, रोजगारपरक कार्यक्रमों के लिए वास्तविक दामों से कई गुना ज्यादा का भुगतान करके जमीनों का अधिग्रहण किया जाता रहा है। अधिग्रहीत भूमि पर कब्जा लेने, इकाइयों की स्थापना करने तथा उसके लक्ष्य भेदन में हमेशा ही अडचनों का मकडजाल देखने को मिला है। उदाहरणार्थ बुंदेलखण्ड में बरेठी थर्मल पावर प्लान्ट की स्थापना हेतु आनन-फानन में मध्य प्रदेश के किसानों की जमीनों को अधिग्रहीत किया गया। धरातली कीमत से कई गुना ज्यादा रकम का भुगतान सरकारी खजाने से किया गया। इकाई के निर्माण हेतु प्राथमिक तैयारियों के नाम पर सडक, पानी और समतलीकरण जैसे आधारभूत सुविधायें जुटाईं गईं। इस हेतु भारी भरकम धनराशि खर्च भी की गई। उसके बाद परियोजना पर शुरू हुआ विभागीय अडचनों का दौर। इस परियोजना की केवल धरमपुरा साइड पर ही लगभग 1105 हेक्टेयर सुविधा सम्पन्न भूमि आज बदबादी की कगार पहुंच चुकी है। ऐसा ही स्थिति इस परियोजना की अन्य साइड्स पर भी देखने को मिलती है। एनटीपीसी की इस परियोजना को बुंदेलखण्ड के पिछडे क्षेत्र में स्थापित करने की परिकल्पना वास्तव में एक अनुकरणीय कार्य था परन्तु सरकारी तंत्र में लम्बे समय से आपसी जंग छिडी है। परियोजना खटाई में पहुंच चुकी है। ऐसे में यदि इस भूभाग को आईटी पार्क के रूप में विकसित कर दिया जाये तो निश्चय ही बुंदेलखण्ड के लाखों प्रोफेसनल्स को अपनी ही धरती पर रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं। संकलित की गई जानकारी के आधार पर केवल 2017 लेकर 2022 के मात्र 5 वर्षों में इस क्षेत्र विशेष ने 2,20,100 से अधिक आईटी प्रोफेसनल्स को तैयार किया है। जिसमें छतरपुर ने 8100 से अधिक, टीकमगढ ने 3500 से अधिक, दमोह ने 5000 से अधिक, पन्ना ने 5000 से अधिक, सागर ने 16000 से अधिक, दतिया ने 3000 से अधिक, विदिशा ने 5500 से अधिक, सतना ने 26000 से अधिक, ग्वालियर ने 140000 से अधिक, ललितपुर ने 3000 से अधिक, महोबा ने 4000 से अधिक प्रोफेसनल्स दिये हैंं। इसमें टेलीकाम इंजीनियर, नेटवर्क इंजीनियर, फील्ड इंजीनियर, डाटा साइंटिस्ट, बिजनेस एनालिस्टिक, गेम डिवलपर, डिजिटल मार्केटिंग, सप्लाई चेन मैनेजमेन्ट, ह्यूमन रिसोर्स, एसएपी, सिस्टम एडमिन, आनलाइन इंडस्ट्री, साइबर सिक्यूरिटी, इन्फोर्मेशन सिक्यूरिटी, डिजिटल सेल्स सहित आईटी के अनेक क्षेत्रों से जुडी प्रतिभायें शामिल हैं जो देश-विदेश में बडी जुम्मेवारी सम्हाल रहीं हैं। विश्व प्रसिध्द खजुराहो के समीप होने के कारण बरेठी पहुंचने के लिए हवाई, रेल और सडक मार्ग की बेहद आरामदायक सुविधायें उपलब्ध हैं। ठहरने के लिए बजट होटल्स से लेकर पांच सितारा होटलों तक की लम्बी श्रंखला है। ऐसे में यदि बुंदलखण्ड की आईटी प्रतिभाओं को स्थानीय स्थल पर अवसर प्राप्त होने लगेगा तो उनकी घर वापिसी ही संभव नहीं है बल्कि उनके व्दारा सरकारी मदद से विकास के नये मापदण्ड स्थापित होते देर नहीं लगेगी। महानगरों पर निरंतर बढ रहा बोझ, ऐसे ही उपायों से कम किया जा सकता है। सरकार की अनेक बीमार तथा मृत हो चुकी इकाइयों को भी क्षेत्रीय विश्लेषण के आधार पर समय की मांग के अनुरूप विकसित किया जा सकता है। छोटी जगहों पर सरकारी संसाधनों का सकारात्मक उपयोग करने के लिए वहां पर तैनात प्रशासनिक तंत्र की सकारात्मक मंशा का होना बेहद जरूरी है अन्यथा कागज के घोडे सरकारी आख्याओं की हवा में उडकर नित नयी कीर्तिमानी घोषणायें करते रहेंगे। स्वाधीनता के बाद से निरंतर विधायिका पर विकास और पतन की जिम्मेवारी डालकर कार्यपालिका सुरक्षित रहकर आवश्यकता से कहीं अधिक वेतन मुस्तैदी से पा रही है। वर्तमान समय में देश के अन्दर 18,900 से अधिक बीमार या मृत हो चुकी इकाई और योजनायें अपने श्रंगार के लिए तरस रहीं हैं। विभागीय अडचनों में फंसी योजनाओं-इकाइयों का करना होगा कायाकल्प तभी रोजगार की संभावनायें धरातल पर अवतरित हो सकेंगी और अनुकरणीय हो सकेगा विश्व के लिए भारत यह नया स्वरूप। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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