समाज कल्याण के नाम पर शान्ति विरोधी मिशन?

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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

विश्व मंच पर भारत की शान बढते ही विदेशों में बैठे षडयंत्रकारियों की फौज देश के संविधान की विभिन्न व्यवस्थाओं को कवच बनाकर राष्ट्रविरोधी तत्वों को सक्रिय करने की मुहिम में युध्दस्तर पर लग गई हैं। कहीं स्वयं भू समाज सुधारक का तमगा लगाने वाले अपनी संस्थाओं के माध्यम से देश में तनाव का वातावरण निर्मित कर रहे हैं तो कहीं गोरों की धरती से हमारे युवाओं को गुमराह करने के प्रयास हो रहे हैं। कहीं देश की बढती अर्थ व्यवस्था को चोट पहुंचाने की गरज से नकारात्मक संदेशों का प्रचार हो रहा है तो कहीं जातिगत मुद्दों को हवा देने की कोशिशें तेज हो रहीं हैं। विगत 6 मई 1937 में हुए हाई प्रोफाइल हिंडनबर्ग एयरशिप के हादसे के नाम बनाई गई अमेरिका की शार्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग ने इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेदिव्स को एनालाइज करने का एकतरफा ठेका लेते हुए स्वयं को फोरेंसिक फाइनेंसियल रिसर्च का मुखिया घोषित कर दिया। इस फर्म ने भारत के विरुध्द षडयंत्र करने वालों के इशारे पर विश्व के तीसरे सबसे अमीर बन चुके गौतम अडानी की कम्पनी से 88 सवाल पूछे। आखिर किस व्यवस्था के तहत फर्म को कम्पनी से सवाल पूछने का अधिकार है? सवालों की आड में स्वयं की रिपोर्ट बनाकर पेश करने वाली फर्म ने भारत को आर्थिक क्षति पहुंचाने की गरज से गौतम अडानी को संदेह के दायरे में ला खडा किया। स्वयं भू ठेकेदार बनी फर्म की रिपोर्ट ने संदेहात्मक माहौल बनाया और निवेशकों ने धडाधड अपने पैसों की निकासी शुरू कर दी। परिणामस्वरूप विश्व में धाक जमाने वाली कम्पनी को एक साथ 2,27,385 करोड का झटका लगा और गौतम अडानी विश्व के तीसरे अमीर के सिंहासन से फिसलकर सातवीं पायदान पर पहुंच गये। ऐसी ही स्थिति मुकेश अम्बानी की भी हुई। देश को आर्थिक क्षति पहुंचाने वाली विदेशी फर्म से चार हाथ आगे बढकर देश के अंदर ही आंतरिक कलह की नई इबारत लिखने वालों की कमी नहीं है। समिति, संस्था, संस्थान, ट्रस्ट, बोर्ड जैसी व्यवस्थायें हमारे संविधान में मौजूद हैं। इन्हीं व्यवस्थाओं के तहत अनेक स्वयं भू ठेकेदारों व्दारा समाज सेवा के नाम पर जनकल्याणकारी संस्थाओं का गठन करके लाभ के अवसर तलाशे जाते हैं। हाल ही में सनातन के परचम पर प्रश्नचिन्ह अंकित करने वाले महाराष्ट्र के श्याम मानव ने बुंदेलखण्ड के श्री बागेश्वर धाम सरकार पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पर अंध श्रध्दा फैलाने का आरोप लगाते हुए राज्य के जादूटोना विरोधी कानून तथा केन्द्र के ड्रग्स एण्ड मेडिकल रेमेडीज एक्ट के तहत नागपुर में प्राथमिकी दर्ज करने का प्रयास किया। श्याम मानव ने सन् 1982 में अखिल भारतीय अंध श्रध्दा निर्मूलन समिति का गठन किया और समाज को सुधारने के ठेकेदार बन गये। यह अलग बात है कि नागपुर पुलिस ने श्याम मानव की शिकायत को जांच के दौरान असत्य पाया और श्री बागेश्वर धाम सरकार पण्डित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पर लगाये जाने वाले आरोपों के सिरे से नकार दिया। इस दौरान जहां आस्थावान सनातनियों की भावनायें आहत हुईं वहीं मनगढन्त वक्तव्यों की बाढ भी आ गई। देश के विभिन्न भागों से प्रदर्शन, विरोध और तनाव की खबरें आने लगीं। विज्ञान, तर्क और प्रत्यक्षीकरण को प्रमाण की कसौटी मानने का ढोल पीटने वाले परा-विज्ञान, अनुभूतियों और परिणामों को निरंतर अदृष्टिगत करके विदेशी इशारे पर ही अन्तरकलह का माहौल बनाने का काम कर रहे हैं। इसी श्रृंखला में ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन यानी बीबीसी ने वर्षो पहले मर चुके जिन्न को पुन: जीवित करने का प्रयास किया। न्यायालय के व्दारा गुजरात काण्ड का निर्णय सुना दिया गया है परन्तु बीबीसी ने भारत की न्याय व्यवस्था को ही कटघरे में खडा करते हुए दो भागों वाली एक डाक्यूमेन्ट्री श्रृंखला प्रसारित की जिसका नाम रखा गया इंडिया: द मोदी क्वेश्चन। गुजरात में २००२ में हुए दंगों पर आधारित है इस श्रृंखला के माध्यम से गोधारा में हिन्दू तीर्थयात्रियों को लेकर जा रही ट्रेन में आग लगाने के बाद कथित तौर पर भडकी हिंसा का मनमाने ढंग से चित्रण करके देशवासियों में नफरत के बीज बोने की विदेशी कोशिश हुई। इस कोशिश में लेफ्ट से संबंधित स्टूडेन्ट फेडरेशन आफ इण्डिया, दलित एजेन्डे पर आधारित भीम आर्मी स्टूडेन्ट्स फेडरेशन, वामपंथी विचारधारा वाले आल इण्डिया स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन, कांग्रेस का छात्र संगठन नेशनल स्टूडेन्ट्स यूनियन आफ इण्डिया, कथित प्रगतिवादी विचारधारा वाले प्रोग्रेसिव स्टूडेन्ट्स फोरम जैसे अनेक छात्र संगठनों को भी लगा दिया गया। भविष्य को संवारने के लिए शिक्षा के मंदिरो में जाने वाली प्रतिभाओं को जहर बुझे तीरों से कुण्डित करने का मंसूबा पालने वालों ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित अनेक शिक्षालयों में डाकूमेन्ट्री की स्क्रीनिंग की घोषणा की जाने लगी। भारत को विश्वगुरु के सिंहासन पर पुन: विराजमान करने की दिशा में दौड रहे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल करने के प्रयास हेतु बनाई गई यह डाकूमेन्ट्री केवल और केवल गोरों की खीज है जो वह अपने से आगे निकल चुकी भारत की अर्थ व्यवस्था के कारण निकल रही है। इस खीच में वो सारे घटक शामिल हैं जो चन्द लाभ के लिए राष्ट्रविरोधी खेमे में भिखारियों की तरह खडे हो जाते हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित अनेक संस्थानों में सक्रिय टुकडे-टुकडे गैंग को देश में आंतरिक कलह पैदा करने के लिए सक्रिय कर दिया गया है। इस गैंग को अनेक राजनैतिक दलों का खुलकर समर्थन मिलता रहा है। इन दलों के खास सिपाहसालार न्यायालय में राष्ट्र विरोधियों के लिए काला कोट पहन कर रास्ते खोजने लगते हैं। यह वही लोग हैं जो कश्मीर में सेना के जवानों पर हमले करने वालों को मासूम और निर्दोष साबित करने में जुट जाते थे। समाज कल्याण के नाम पर ठेकेदार बनने को किस व्यवस्था के तहत यह अनुमति है कि वह न्यायालय की तरह किसी से भी जबाब मांगने लगे, समाज हित के नाम पर प्राथमिकी दर्ज करवाने लगे, संगठन की आड में राष्ट्र को आंतरिक कलह की सौगात देने लगे, जातिगत दंगों की पटकथा लिखने लगे, साम्प्रदायिक ठेकेदार बनकर उकसावे की भूमिका तैयार करने लगे, आम नागरिक के विवेक को अपहरित करके उसमें सोची समझी खुराफात फरने लगे, ऐसे अनगिनत कारक है जो चीख-चीखकर समाज के स्वयं भू ठेकेदारों की नियति को उजागर कर रहे हैं। समाज कल्याण के नाम पर शान्ति विरोधी मिशन को न केवल समझना होगा बल्कि उसे नस्तनाबूत करने के लिए आम नागरिक को ही आगे आना ही होगा, अन्यथा ऐसे कथित ठेकेदार अपने विदेशी आकाओं के के इशारे पर राष्ट्रघाती सोच वालों के संरक्षण तले पतन के कटीले मुकुट से हमारा राजतिलक करने से बाज नहीं आयेंगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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